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Hindi Newsगठिया, त्वचा रोग ही नहीं कोरोना के इलाज में भी कारगर है ये दवा, 31 देशों ने मांगी भारत से मदद

गठिया, त्वचा रोग ही नहीं कोरोना के इलाज में भी कारगर है ये दवा, 31 देशों ने मांगी भारत से मदद

कोरोना वायरस के इलाज में मददगार साबित हो रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल पिछले करीब एक सदी से हो रहा है। मलेरिया के लिए खोजी गई यह दवा आज शरीर की प्रतिरोधी क्षमता पर असर डालने वाले तमाम रोगों...

गठिया, त्वचा रोग ही नहीं कोरोना के इलाज में भी कारगर है ये दवा, 31 देशों ने मांगी भारत से मदद
हिन्दुस्तान ब्यूरो,नई दिल्लीTue, 07 Apr 2020 08:15 PM
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कोरोना वायरस के इलाज में मददगार साबित हो रही हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इस्तेमाल पिछले करीब एक सदी से हो रहा है। मलेरिया के लिए खोजी गई यह दवा आज शरीर की प्रतिरोधी क्षमता पर असर डालने वाले तमाम रोगों के इलाज में काम आ रही है। अब तक 31 देशों ने भारत से इसकी मांग की है।

कैसे क्लोरोक्विन बनी हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन- 
द्वितीय विश्व युद्ध में हुईं मौतों से ज्यादा लोगों को लील चुके मलेरिया को मात देने के लिए जर्मनी के वैज्ञानिक जोहानन हैंस एंडरसैग ने 1934 में क्लोरोक्विन दवा तैयार की थी, जो काफी कारगर साबित हुई। इसका इस्तेमाल बाद में प्रतिरक्षा तंत्र पर बुरा असर डालने वाले रोगों के इलाज में होने लगा। गठिया, त्वचा रोग और कई अन्य बीमारियों में इसका अच्छा असर पाया गया। पहले यह सिर्फ क्लोरोक्विन के नाम से बिकती थी। लेकिन कई शारीरिक दुष्प्रभाव के कारण इसमें बदलाव किया गया और इसे हाइड्रोक्सी क्लोरोक्विन कहा जाने लगा। 

अपनी मर्जी से न करें प्रयोग-
इस दवा का बिना किसी लक्षण या डॉक्टरी सलाह के इस्तेमाल करना सही नहीं है। ऐसा करने से सिरदर्द, चक्कर आना, भूख मर जाना, मतली, दस्त, पेट दर्द, उल्टी और त्वचा पर लाल चकत्ते भी हो सकते हैं। कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकती है। 

अभी चर्चा में क्यों-
जयपुर में कोरोना के मरीजों के इलाज में इसका इस्तेमाल किया गया था। हाल में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया कि इससे कोरोना के मरीजों का इलाज संभवे है। उन्होंने अमेरिका में हुए शोध के नतीजों के हवाले से ये दावा किया था। चीन, फ्रांस और स्पेन ने भी इस दवा के इस्तेमाल से संक्रमित मरीजों का इलाज किया और उसमें कुछ ठीक हुए थे। 

भारत सबसे बड़ा उत्पादक-
भारत में हर साल बड़ी संख्या में लोग मलेरिया की चपेट में आते हैं इसलिए इस दवा का सबसे ज्यादा उत्पादन भारत में होता है। वर्ष 2019 में देश ने 51 लाख डॉलर कीमत की इस दवा का निर्यात किया था, जो देश के कुल औषधि निर्यात (19 अरब डॉलर) का एक बड़ा हिस्सा था। हालांकि भारत घरेलू उपयोग से ज्यादा इस दवा का निर्यात करता है।  

पड़ोसी देशों से लेकर यूरोप तक चाह रहे दवा-
कई देशों ने भारत से इस दवा की मांग की है। अफगानिस्तान, श्रीलंका, नेपाल, मालदीव, बांग्लादेश, अमेरिका, इटली, फ्रांस, इंडोनेशिया,जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, ब्राजील, खाड़ी और अफ्रीकी देशों सहित कुल 31 देशों ने भारत से  हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की मांग की है।  

चीन और ब्राजील से आता है कच्चा माल-
एक महीने में 20 करोड़ टैबलेट के उत्पादन की क्षमता रखने वाली आईपीसीए लैब्स, जाइडस, मंगलम ड्रग्स एंड ऑर्गेनिक, वैलेस फर्मा, कैडिला जैसी भारतीय कंपनियां इस दवा को बनाने के लिए जरूरी कच्चा माल चीन और ब्राजील से खरीदती हैं। 

अफ्रीका बड़ा बाजार- 
भारत और उप सहारा अफ्रीका के 15 देशों में मलेरिया के 80 फीसदी मामले सामने आते हैं। 2017 में मलेरिया से सबसे ज्यादा प्रभावित अफ्रीकी देशों में नाइजीरिया, कांगो और मेडागास्कर जैसे देशों में तकरीबन 35 लाख मामले बढ़े हैं। ऐसे में भारत अफ्रीकी देशों को इस दवा का सबसे ज्यादा निर्यात करता है। 

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