बच्चों को नुकसान पहुंचा रहा है स्मार्टफोन, स्क्रीन टाइम कम करने के ये हैं तरीके
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में टीवी, टेबलेट, लैपटॉप और मोबाइल पर घंटों ताकने वाले बच्चे देखे जा सकते हैं। कुछ बच्चों को उनके माता-पिता संभालने का वक्त नहीं होने के कारण फोन, टीवी या कम्प्यूटर...
भारत ही नहीं पूरी दुनिया में टीवी, टेबलेट, लैपटॉप और मोबाइल पर घंटों ताकने वाले बच्चे देखे जा सकते हैं। कुछ बच्चों को उनके माता-पिता संभालने का वक्त नहीं होने के कारण फोन, टीवी या कम्प्यूटर पकड़ाने का आसान तरीका निकाल लेते हैं।
दुर्भाग्य से यह आसान तरीका बच्चों की आगे की जिंदगी को शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य के लिहाज से बहुत बड़ी मुश्किल में डाल देता है। अमेरिका में हाल ही अमेरिकी बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बच्चे वहां औसतन दिन में तीन घंटे का वक्त टीवी देखने में गुजार रहे हैं। इसमें मोबाइल, लैपटॉप, टेबलेट के वक्त को मिला लिया जाए तो यह समय 5 से 7 घंटे तक पहुंच जाता है। प्रत्यक्ष तौर पर इसके दो नुकसान हैं, बच्चों का मैदानी खेल-कूद जैसी शारीरिक गतिविधियों से दूर होना, उनकी सोचने-समझने की क्षमता सीमित होना और स्क्रीन पर कुछ न कुछ देखने की लत। तीनों ही उनके शरीर और दिमाग के विकास के लिहाज से बेहद नुकसानदेह हैं। सामान्य जिंदगी जीने के लिए जरूरी संवाद का कौशल भी उनके बूते की बात नहीं रहता।
दरअसल स्क्रीन पर चिपके रहने के दौरान वह किसी और की बात को सुनते या देखते रहते हैं, जिसमें उनके अपने विचारों का कोई आदान-प्रदान नहीं हो पाता। ऐसे में वह लोगों के साथ घुलना-मिलना पसंद नहीं करते और यह आगे चलकर उनके लिए मुश्किल का सबब बन सकता है। उनकी श्रवण शक्ति, आंखें भी वक्त से पहले खराब हो सकती हैं। बची-खुची कसर ऑनलाइन गेम्स पूरी कर देते हैं।
ऐसा नहीं है कि बच्चों के ऑनलाइन उपस्थिति के समय में बढ़ोत्तरी के लिए केवल अभिभावक ही जिम्मेदार हैं। अनेक स्कूलों में अब होमवर्क और अधिकांश पढ़ाई ऑनलाइन होने लगी है। इसकी वजह से बचपन से ही विद्यार्थियों की आंखों पर बेहद ज्यादा जोर पड़ रहा है। चश्मा, आंखों में दर्द, सिरदर्द, आंखों में सूखापन अब बचपन से ही देखने को मिल जाता है।
स्कूल में ब्लैकबोर्ड से दूर बैठने वाले बच्चों की साफ न दिखने की शिकायत अब नई बात नहीं बची है। अभिभावकों को बता नहीं सकने वाले बच्चे कई बार केवल इस वजह से ही पढ़ाई में पिछड़ने लगते हैं।
स्क्रीन पर बहुत ज्यादा वक्त के दुष्प्रभाव
बच्चे को रात को नींद आने में दिक्कत
एकाग्रता कम होकर चिंता,अवसाद बढ़ सकता है
मोटापे का खतरा बढ़ जाता है
शारीरिक गतिविधियों में कमी के अन्य असर भी
टीवी या मोबाइल पर विज्ञापन से खान-पान की गलत पसंद
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अगली पीढ़ी पर आए संकट को भांपते हुए कुछ दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसके मुताबिक बच्चों को दो वर्ष तक की उम्र तक किसी भी तरह की स्क्रीन का सामना करने से टाला जाए। 2 से 5 वर्ष तक के बच्चों को भी दिन में ज्यादा से ज्यादा एक घंटे ही स्क्रीन टाइम दिया जाए।
उन्हें खेलने-कूदने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। सवाल केवल यही है कि बेहद व्यस्तता का रोना हरदम रोने वाले अभिभावक डब्ल्यूएचओ के इस बेहद महत्वपूर्ण सुझाव को कितनी गंभीरता से लेते हैं। एक सही फैसला उस बच्चे का बचपन, यौवन और पूरी जिंदगी को ही नई जिंदगी दे जाएगा।
स्क्रीन टाइम कम करने के तरीके
बच्चे के बेडरूम से टीवी या कम्प्यूटर हटा दें
भोजन या होमवर्क के समय टीवी देखने पर रोक
टीवी या कम्प्यूटर पर काम के वक्त खाने की आदत पर रोक
घर में पूरी तरह से शांति बनाए रखें या बहुत ही हल्की आवाज में रेडियो लगा दें
पहले से टीवी या मोबाइल पर कार्यक्रम देखने की योजना बनाएं
पसंदीदा टीवी कार्यक्रम देखते ही टीवी बंद करने की आदत लगाएं
बच्चे के साथ पजल्स, चेस, कैरम खेलें या फिर उसे लेकर वॉक पर जाएं
जितना वक्त टीवी स्क्रीन पर बिताया हो उतना ही शारीरिक गतिविधियों पर सुनिश्चित करें
एक अभिभावक के तौर पर उदाहरण पेश करें।
खुद का स्क्रीन टाइम 2 घंटे तक सीमित करें
परिवार के सदस्यों पर तय अवधि तक टीवी या किसी भी तरह की स्क्रीन से दूर रखने की चुनौती दें
जैसा कि साफ हो ही चुका है कि आपके बच्चे का स्वस्थ भविष्य आपके हाथ में है। आपको उसके सामने खुद आदर्श व्यवहार करना होगा, ताकि उसके लिए स्क्रीन टाइम को सीमित कर शारीरिक गतिविधियों में इजाफा स्वीकारना एक ज्यादा आसान विकल्प होगा। उसे समझाएं कि यह सब उसके ही भले के लिए किया जा रहा है।
अधिक जानकारी के लिए देखें: https://www.myupchar.com/disease/children-migraine
स्वास्थ्य आलेख www.myUpchar.com द्वारा लिखे गए हैं।