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फाइलेरिया के उन्मूलन के लिए तीन दवाओं की नीति पर अमल होगा

देशभर के 256 जिलों में अभी भी लोगों को फाइलेरिया (हाथीपांव) की बीमारी का खतरा है। इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए भारत अब तीन दवाओं के इस्तेमाल की नीति अपनाएगा।  दिल्ली में शुक्रवार...

फाइलेरिया के उन्मूलन के लिए तीन दवाओं की नीति पर अमल होगा
नई दिल्ली। वरिष्ठ संवाददाताTue, 19 Jun 2018 04:21 PM
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देशभर के 256 जिलों में अभी भी लोगों को फाइलेरिया (हाथीपांव) की बीमारी का खतरा है। इस बीमारी को पूरी तरह से खत्म करने के लिए भारत अब तीन दवाओं के इस्तेमाल की नीति अपनाएगा। 

दिल्ली में शुक्रवार को लिम्फैटिक फाइलेरिया के वैश्विक सम्मेलन का समापन हो गया। इस कार्यक्रम में कई देश के डॉक्टरों ने शिरकत की। कार्यक्रम के अंतिम दिन राष्ट्रीय मच्छर जनित रोग नियंत्रण कार्यक्रम की संयुक्त निदेशक डॉक्टर नूपर रॉय ने बताया कि इस बीमारी को पूरी तरह खत्म करने के लिए भारत सरकार काफी प्रयास कर रही है। अब फाइलेरिया प्रभावित जिलों में लोगों को तीन दवाएं देने का अभियान चलाया जाएगा।  

इस बीमारी के साल 2015 तक उन्मूलन के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य नीति बनाई गई थी, लेकिन समय पर परिणाम न मिलने की वजह से इसे 2017 तक बढ़ा दिया गया। फाइलेरिया से देश के 256 जिलों में लगभग 65 करोड़ भारतीयों को खतरा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक, दुनियाभर में पाए जाने वाले फाइलेरिया के 40 फीसदी मरीज भारत में हैं। 

क्या है लिम्फैटिक फाइलेरिया 
केरल के टी. डी. सरकारी मेडिकल कॉलेज की मेडिकल सुप्रिंटेंडेंट डॉ. सुमा ने बताया कि फाइलेरिया रोग में हाथ या पैर बहुत अधिक सूज जाते हैं। इसलिए इस रोग को हाथी पांव भी कहते हैं। हालांकि इस रोग से पीड़ित हर व्यक्ति के हाथ या पैर नहीं सूजते। यह बीमारी पूर्वी भारत, मालाबार और महाराष्ट्र के पूर्वी इलाकों में ज्यादा फैली हुई है। संक्रमित मच्छर के काटने से बहुत छोटे आकार के कृमि शरीर में प्रवेश करते हैं। ये कृमि लसिका तंत्र की नलियों में होते हैं और उन्हें बंद कर देते हैं। 

फाइलेरिया के लक्षण
- फाइलेरिया के बाद सूजन की बीमारी अलग-अलग समय के अंतराल पर होती है। 
- यह ध्यान रखना भी महत्वपूर्ण है कि कुछ लोगों में यह बीमारी पूरी जिंदगी सामने नहीं आती। 
- कुछ रोगियों में गिल्टियों और बुखार के अलावा हाथ व पैरों में सूजन हो सकती है। 
- अक्सर पैरों और हाथों की लसिका वाहिकाएं लाल हो जाती हैं और उनमें दर्द भी होता है। इस स्थिति में लसिका नलियों के बंद होने से लसिका के इकट्ठे हो जाने के कारण सूजन हो जाती है। 
- डॉ. सुमा ने कहा कि जिन क्षेत्रों में फाइलेरिया की बीमारी अधिक होती है वहां नमक में डीईसी दवा मिलाना ठीक रहता है।
 

 यह है तीन दवा नीति
लिम्फैटिक फाइलेरिया का इलाज नहीं है लेकिन दवाओं के जरिए इसकी रोकथानम की जा सकती है। इस बीमारी के उन्मूलन के लिए पहले 2 दवाओं की नीति अपनाई जाती थी। इसके तहत ऐसे इलाकों में जहां फाइलेरिया के संक्रमण की संभावना अधिक है, वहां इसकी रोकथाम के लिए दो दवाएं  डाईइथाइल – कार्बामाजीन (डीईसी) और एलबेंडाजोल दी जाती थीं अब इन दोनों दवाओं के साथ एक और दवा शामिल की गई है। यह दवा है आइवरमेकटिन। इन तीनों दवाओं को देश के संक्रमण प्रभावित इलाकों में लोगों को मुफ्त में देने का अभियान चलाया जाएगा। दो दवा नीति के तहत इन इलाकों में पांच साल तक ये दोनों दवाएं दी जाती हैं जबकि नई दवा नीति अपनाने पर इन इलाकों में सिर्फ दो साल तक दवाएं देनी होंगी।
 

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