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खतरा: नाइट शिफ्ट में काम कहीं बिगाड़ न दे सेहत का खेल

आज के समय में रात की शिफ्ट में काम करना कोई अचरज की बात नहीं है। मगर यह हमारी सेहत को किस कदर प्रभावित कर रहा है, इसका भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है। एक शोध में कहा गया है कि रात की शिफ्ट में काम करने...

खतरा: नाइट शिफ्ट में काम कहीं बिगाड़ न दे सेहत का खेल
एजेंसियां,लंदन  Wed, 28 Jun 2017 06:11 PM
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आज के समय में रात की शिफ्ट में काम करना कोई अचरज की बात नहीं है। मगर यह हमारी सेहत को किस कदर प्रभावित कर रहा है, इसका भी ध्यान रखना बेहद जरूरी है। एक शोध में कहा गया है कि रात की शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर की खुद की मरम्मत करने की प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ता है।  
ब्रिटिश एपिडेमियोलॉजिस्ट डॉक्टर प्रवीन भट्टी का कहना है कि रात में काम करने वालों के शरीर की आंतरिक बॉडी क्लॉक पर असर पड़ता है।

इससे उसकी मरम्मत करने की प्राकृतिक प्रक्रिया प्रभावित होती है। इसके कारण व्यक्ति को गंभीर व जानलेवा बीमारियां होने का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अकेले ब्रिटेन में नाइट शिफ्ट में काम करने वाले तीन लाख लोग हॉर्मोन का सामान्य स्तर बनाए रखने के लिए पूरक गोलियां लेते हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि रात की शिफ्ट में काम करने वालों के शरीर से पेशाब के जरिये बीमारी देने वाले रसायनों का निकास कम मात्रा में होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि नींद की सामान्य प्रक्रिया के लिए जिम्मेदार हॉर्मोन मेलाटोनिन की मदद से डीएनए में क्षति की मरम्मत की प्रक्रिया प्रभावित हो रही है। मेलाटोनिन हॉर्मोन हमारे सोने पर मस्तिष्क में बनता है, मगर इसकी मात्रा अंधेरे की अपेक्षा उजाले में कम हो जाती है। 

यह शोध ऑक्यूपेश्नल एंड एनवायरनमेंटल मेडिसिन पत्रिका में प्रकाशित हो चुका है। इसमें कहा गया है कि दिन में सोने वालों के शरीर में डीएनए की मरम्मत करने वाले रासायनिक उप-उत्पाद 8-ओएच-डीजी कम बना। शोध में देखा गया कि प्रयोग में शामिल वलंटियर के शरीर में नाइट शिफ्ट में काम करने से एक रात पहले जब उन्होंने सामान्य नींद ली तो उनके पेशाब में 8-ओएच-डीजी की मात्रा 20 फीसदी थी।

इससे पहले हुए अध्ययनों में रात की शिफ्ट में काम करने वाले लोगों को हृदय संबंधी बीमारियों, कैंसर, डायबिटीज और तंत्रिका तंत्र संबंधी विकारों का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन भी शिफ्ट में काम करने की इस पद्धति को एक दशक पहले ही कैंसर कारक बता चुका है।

डॉ. भट्टी का कहना है कि सोते समय उत्पन्न होने वाले मेलाटोनिन हॉर्मोन प्रकृति के साथ शरीर का तालमेल बनाने का काम करता है। इसे सरकेडियन रिदम या आंतरिक बॉडी क्लॉक कहा जाता है। 

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