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‘बागवानी’ से मलेरिया को काबू करना संभव

खास तरीके की ‘बागवानी’ मलेरिया का फैलाव रोकने का बेहद कारगर हो सकती है। शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में पाया है कि कुछ खास तरह के फूलों को हटा देने से मच्छरों की आबादी कम की जा सकती है।...

‘बागवानी’ से मलेरिया को काबू करना संभव
एजेंसी, येरुशलमWed, 05 Jul 2017 10:13 PM
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खास तरीके की ‘बागवानी’ मलेरिया का फैलाव रोकने का बेहद कारगर हो सकती है। शोधकर्ताओं ने एक नए अध्ययन में पाया है कि कुछ खास तरह के फूलों को हटा देने से मच्छरों की आबादी कम की जा सकती है। उनका कहना है कि फूलों को हटाने से मच्छरों की खाद्य आपूर्ति बाधित हो जाती है जिससे उनकी आबादी नष्ट होने लगती है।

पश्चिम अफ्रीका में प्रयोग :  
इजरायल की हिब्रू यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने कुछ विदेशी शोधकर्ताओं के साथ मिलकर अफ्रीकी महादेश के पश्चिमी हिस्से में अवस्थित माली के बांदीगारा जिले में एक अध्ययन करने के बाद यह दावा किया है। उन्होंने वहां के कुछ गांवों में एक विशेष झाड़ीदार पौधा देखा जो वहां सामान्य रूप से उगते हैं। इस झाड़ी का वैज्ञानिक नाम ‘प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा’ है। उसमें फूल लगते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया कि इस पौधे के फूल मच्छरों की आबादी का पोषण करने का जरिया हैं। इसलिए इनके फूलों को हटा देने से मच्छरों को नियंत्रित किया जा सकता है।   

‘प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा’ का फूल :
शोधकर्ताओं ने बांदीगारा के नौ गांवों में एक प्रयोग के जरिये ‘प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा’ के फूलों के प्रभाव की पुष्टि की। उन्होंने तीन गांवों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा के सभी पौधों से सारे फूल तोड़कर हटा दिए। जबकि तीन अन्य गांवों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा के पौधों को फूलों के साथ ही रहने दिया गया। इसके अलावा उन्होंने तीन उन गांवों को भी अपने अध्ययन में शामिल किया जहां प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा की झाड़ी कभी नहीं उगाई गई थी। 

मच्छरों के लिए जाल :
शोधकर्ताओं ने इन गांवों के चारों ओर रोशनी से युक्त विशेष जाल भी लगाए। ये जाल मच्छरों को फंसाने के लिए थे। इनके जरिये शोधकर्ता यह देखना चाहते थे कि प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा की ‘बागवानी’ से मच्छरों की तादाद पर किस हद तक असर पड़ता है। पहले की तरह बड़ी तादाद में मच्छरों के फंसने का मतलब होता कि मच्छर काफी हैं और प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा के फूलों को तोड़ने से कोई असर नहीं पड़ा। लेकिन अगर मच्छर काफी कम संख्या में जाल में फंसते तो यह स्पष्ट तौर पर उनकी आबादी में कमी का और प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा के फूलों को हटाए जाने के कारगर होने का संकेत होता। 

फूल तोड़ने से मच्छर घटे :
इस प्रयोग से पता चला कि जिन गांवों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा के पौधों से सारे फूल हटा दिए गए थे, वहां लगाए गए जालों में काफी कम तादाद में मच्छर फंसे। यह उनकी तादाद में आई गिरावट का नतीजा था। शोधकर्ताओं के हवाले से बीबीसी न्यूज ने बताया कि फूल तोड़े जाने से उन गांवों में मच्छरों की आबादी में करीब 60 की कमी आई थी। जिन तीन गांवों में प्रोसोपिस जूलिफ्लोरा की झाड़ी बिल्कुल नहीं थी, उन गांवों में भी पुरानी मादा मच्छरों की तादाद में इसी दर से कमी दर्ज की गई। 

शोधकर्ताओं ने कहा, फूल तोड़ देने से मच्छरों की बुजुर्ग, वयस्क और मादा आबादी में भारी गिरावट आई। उन्होंने बताया कि फूलों को हटा देने से मादा मच्छरों को पर्याप्त मकरंद या पराग नहीं मिल पाया जिससे वे भुखमरी की शिकार हो गईं। परिपक्व मादा मच्छरों के खत्म होने से मच्छरों की तादाद में कमी आई। इस तरीके से उनकी तादाद को नियंत्रित कर मलेरिया का प्रसार रोका जा सकता है। 

मादा एनोफिलिज का दंश :
गौरतलब है कि मादा एनोफिलिज मच्छर मलेरिया परजीवियों का वाहक होती है। उसकी लार ग्रंथि में ये परजीवी पाए जाते हैं। जब वह किसी मनुष्य को काटती है और उसका रक्त चूसती है तब उसकी लार ग्रंथि से निकलकर मलेरिया परजीवी मनुष्य के रक्त में पहुंच जाते हैं। इस तरह संक्रमित व्यक्ति को काटने के बाद कोई मच्छर अगर दूसरे किसी व्यक्ति को काटता है तो वह भी संक्रमित हो सकता है। शोधकर्ताओं ने कहा, मादा एनोफिलिज रक्त पर पलती है लेकिन वह जीवित रहने के लिए फूलों के मकरंद के जरिये भी ऊर्जा पाती है। यह अध्ययन ‘मलेरिया रिसर्च’ जर्नल में प्रकाशित हुआ है। 
 

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