सीओपीडी दिवस- दिल्ली एनसीआर में रहने वाले 56 साल के दिनेश सिंह चेन स्मोकर हैं। एविएशन इंडस्ट्री से जुड़े दिनेश ने करीब 40 साल की उम्र में स्मोकिंग शुरू की थी। कुछ दिन पहले उन्हें सांस की समस्या शुरू हुई। उन्होंने यह सोचते हुए ध्यान नहीं दिया कि दिल्ली के प्रदूषण के कारण ऐसा हो रहा है। कुछ दिन बाद हालात इतने बिगड़ गए कि चार कदम चलना मुश्किल हो गया। डॉक्टर से जांच करवाई तो उन्हें सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज हुई है। यह फेफड़ों से जुड़ी बीमारी है, जिसमें सांस लेना मुश्किल हो जाता है। दिनेश जैसे भारत में इस बीमारी के पीड़ित करोड़ों लोग हैं। 2017 में दिल की बीमारियों के बाद भारत में होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण सीओपीडी था।
एम्स के डॉ. नबी वली बताते हैं, ‘सीओपीडी फेफड़ों पर हमला करती है। इससे फेफड़ों को होने वाले नुकसान की भरपाई नहीं की जा सकती है, लेकिन इलाज से लक्षणों को नियंत्रित कर और नुकसान होने से बचाया जा सकता है। इस बीमारी की दो स्थितियां हैं। पहली - क्रोनिक ब्रोन्काइटिस जिसमें सांस नली में सूजन आ जाती है और दूसरी - वातस्फीती जिसमें फेफड़े की थैली खराब होने लगती है। दोनों ही हालात में मरीज को सांस लेने में परेशानी होती है और कभी-कभी यह जानलेवा भी हो सकता है।’ इसी के कारण फेफड़ों का कैंसर होता है।
सीओपीडी क्यों है सांस की दुश्मन-
ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर ऑब्सट्रक्टिव लंग डिजीज के अनुसार, इन्सान एक सांस में जितनी ऑक्सीजन लेता है, उसे एफईवी1 के रूप में मापा जाता है। एफईवी1 यानी फोर्स्ड एक्सपिरेटरी वॉल्यूम इन 1 सेकंड। जब एक सांस में ली जाने वाली ऑक्सीजन की यह मात्रा सामान्य से 30 फीसदी कम होती है, तो वह सीओपीडी का आखिरी चरण होती है।
सीओपीडी के लक्षण-
खांसी के साथ सांस में परेशानी सीओपी़डी के बेहद सामान्य लक्षण हैं। इसके पहले चरण में एफईवी1 80 फीसदी से अधिक होता है यानी इन्सान की एक बार की ऑक्सीजन में 20 फीसदी की कमी होती है। यह स्थिति ऐसी है कि अधिकांश मरीजों को इसका पता भी नहीं चलता है। स्टेज 2 में एफईवी1 50 से 80 फीसदी होता है। मरीज खांसता है और उसकी सांसें फूलती रहती हैं। तीसरे चरण में एफईवी1 30 से 50 फीसदी रह जाता है। मरीज रोजमर्रा के काम ठीक से नहीं कर पाता है। हर वक्त थकान महसूस करता है। चौथे चरण में एफईवी1 30 फीसदी से नीचे आ जाता है और मरीज सांस नहीं ले पाता है।
अन्य लक्षण-
-ब्लड ऑक्सीजन की कमी, या हाइपोक्सिमिया
-हाइपोक्सिया, जो शरीर के ऊतकों में कम ऑक्सीजन के कारण होता है
-सायनोसिस यानी ऑक्सीजन की कमी के कारण त्वचा पर आने वाला नीलापन
-क्रॉनिक रेस्पिरेटरी फेल्युअर जिसमें श्वसन तंत्र पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं ले पाता है या पर्याप्त कार्बन डाइऑक्साइड नहीं छोड़ पाता है।
-सीओपीडी से बचाव के तरीके-
डॉ. नबी वली के अनुसार, सीओपीडी का इलाज संभव नहीं है, इसलिए बचाव की सबसे अच्छा तरीका है। आधुनिक जगत का प्रदूषण इस बीमारी की जड़ है। जहरीली हवा से दूर रहें। जिन लोगों को अस्थमा या धूल के कणों से एलर्जी है, वे इन जोखिम वाली जगहों से बचें। धूम्रपान न करें। यहां तक कि कोई धूम्रपान कर रहा है तो उससे से भी दूर रहें। स्वस्थ्य जीवन शैली अपनाएं। ताजा हवा में गहरी सांस लेने की आदत डालें। संतुलित आहार लें।
ठंड में रहें सावधान, यह है सीओपीडी का इलाज-
सांस की समस्या ज्यादा बढ़ जाए तो बिना देरी किए डॉक्टर से मिलें। फेफड़ों की शुरुआती जांच करने के बाद डॉक्टर इनसे संबंधित जांच जैसे स्पिरोमेट्री, छाती का एक्सरे और खून की जांच करवा सकता है। पुष्टि होने पर जरूरी दवाएं दी जाती हैं। खासतौर पर इनहेलर की मदद ली जाती है। समस्या ज्यादा बढ़ जाए तो सर्जरी या फेफड़ों का ट्रांसप्लांट किया जाता है।
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