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आर्थराइटिस की रोकथाम के लिए चलना-फिरना जरूरी

ऑर्थराइटिस में जोड़ों में सूजन आ जाती है, जिसके कारण मरीज को चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है। आज की लाइफस्टाइल में लोग बिल्कुल गतिहीन हो गए हैं, जिसका बुरा असर उनके शरीर और हड्डियों पर पड़ता है।...

आर्थराइटिस की रोकथाम के लिए चलना-फिरना जरूरी
एजेंसी,नई दिल्ली Sat, 13 Oct 2018 02:50 PM
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ऑर्थराइटिस में जोड़ों में सूजन जाती है, जिसके कारण मरीज को चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है। आज की लाइफस्टाइल में लोग बिल्कुल गतिहीन हो गए हैं, जिसका बुरा असर उनके शरीर और हड्डियों पर पड़ता है। यही वजह है कि आर्थराइटिस (खासतौर पर घुटनों का आर्थराइटिस) महामारी का रूप ले रहा है। उम्र के साथ होने वाला आर्थराइटिस ऑस्टियोऑर्थराइटिस कहलाता है। भारत में ऑस्टियोऑर्थराइटिस आमतौर पर 55-6 की उम्र में होता है, लेकिन आज कम उम्र में भी लोग आर्थरिटिस और अपंगता का शिकार बन रहे हैं।

नोएडा स्थित जेपी हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ ऑर्थोपेडिक्स एंड जॉइंट रिप्लेसमेंट के एसोसिएट निदेशक डॉक्टर गौरव राठोर का कहना है कि अक्सर लोग ऑस्टियोपोरोसिस और ऑस्टियोआर्थराइटिस को एक ही समझ लेते हैं। ऑस्टियोऑर्थराइटिस में जोड़ों में डीजनरेशन होने लगता है, वहीं ऑस्टियोपोरोसिस में हड्डियों में मांस कम होने लगता है और हड्डियां टूटने या फ्रैक्चर होने की आशका बढ़ जाती है।

ऑस्टियोपोरोसिस को मूक रोग कहा जा सकता है क्योंकि अक्सर सालों तक मरीज को इसका पता ही नहीं चलता, जब हड्डियां टूटने लगती हैं, तब इस बीमारी का पता चल पाता है। इसमें मरीज को दर्द तभी दर्द होता है जब फ्रैक्चर हो जाता है।

डॉ. राठोर ने कहा कि आर्थराइटिस का सबसे आम प्रकार है ऑस्टियोआर्थराइटिस। इसका असर जोड़ों, विशेष रूप से कूल्हे, घुटने, गर्दन, पीठ के नीचले हिस्से, हाथों और पैरों पर पड़ता है। ऑस्टियोआर्थराइटिस आमतौर पर कार्टिलेज जॉइंट में होता है। कार्टिलेज हड्डियों की सतह पर मौजूद सॉफ्ट टिश्यू है, जो ऑर्थराइटिस के कारण पतला और खुरदरा होने लगता है। इससे हड्डियों के सिरे पर मौजूद कुशन कम होने लगते हैं और हड्डियां एक दूसरे से रगड़ खाने लगती हैं। आर्थराइटिस के लक्षण इसके प्रकार पर निर्भर करते हैं। इसमें दर्द, अकड़न, ऐंठन, सूजन, हिलने-डुलने या चलने-फिरने में परेशानी होने लगती है।

 उनके अनुसार, आर्थराइटिस का मुख्य कारण जीवनशैली से जुड़ा है। भारतीय आबादी में खान-पान के तरीके भी इस बीमारी का कारण बन चुके हैं। शहरी लोग आजकल कम चलते-फिरते हैं, जिससे उनकी शारीरिक एक्टिविटी का स्तर कम हो गया है। महिलाएं कई कारणों से ऑर्थराइटिस का शिकार हो रही हैं, जैसे चलने-फिरने में कमी, जिसके कारण मसल कम होना आजकल आम हो गया है।

डॉ. गौरव ने कहा कि ऑर्थराइटिस से अक्सर सबसे ज्यादा असर घुटनों, कूल्हों के जोड़ों पर पड़ता है। लगातार बैठे रहने के कारण से मांसपेशियां निष्क्रिय और कमजोर होने लगती हैं। मांसपेशियों के कमजोर होने से आर्थरिटिस  का दर्द बढ़ जाता है और मांसपेशियां खराब होने लगती हैं।

उन्होंने कहा कि शारीरिक एक्टिविटी कम होने के कारण मोटापा भी बढ़ता है, जो आर्थराइटिस के मुख्य कारणों में से एक है। ऑर्थराइटिस का असर मरीज के चलने-फिरने की क्षमता, रोजमर्रा के कामों पर पड़ता है। समय के साथ कम चलने के कारण उसके कार्डियो-वैस्कुलर स्वास्थ्य पर असर पड़ने लगता है और डायबिटीज की आशंका भी बढ़ जाती है। उनके अनुसार, ऑर्थराइटिस एजिंग यानी उम्र बढ़ने का एक हिस्सा है, लेकिन सही जीवनशैली से इसकी आशंका को कम किया जा सकता है और आर्थराइटिस के कारण होने वाली अपंगता से बचा जा सकता है।

डॉ. राठोर के अनुसार, आर्थराइटिस से बचने का सबसे अच्छा तरीका है अपने वजन पर नियंत्रण रखें। इसके लिए आहार में काबोर्हाइड्रेट का सेवन सीमित मात्रा में करें, ट्रांस-फैट के सेवन से बचें। ध्यान रखें कि आपके आहार में प्रोटीन की मात्रा भी सामान्य हो। ऑर्थराइटिस की शुरुआत में ही अगर व्यायाम शुरू कर दिया जाए तो घुटनों को खराब होने से बचाया जा सकता है। आप शारीरिक व्यायाम की मात्रा बढ़ाकर अपनी सेहत में सुधार ला सकते हैं। अच्छा मानसिक स्वास्थ्य भी बहुत जरूरी है।

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