फोटो गैलरी

Hindi Newsप्रदूषण से बचना है, तो रहन-सहन से लेकर खान-पान तक इन बातों का रखें ख्याल

प्रदूषण से बचना है, तो रहन-सहन से लेकर खान-पान तक इन बातों का रखें ख्याल

राजधानी दिल्ली के स्कूलों ने पेरेंट्स के कहा है कि ‘वे अपने बच्चों को मास्क पहनाकर ही स्कूल भेजें। ऐसा नहीं करने पर वातावरण में मौजूद जहरीली हवा उनके लिए घातक हो सकती है।’ दिल्ली और...

प्रदूषण से बचना है, तो रहन-सहन से लेकर खान-पान तक इन बातों का रखें ख्याल
myUpchar ,नई दिल्लीTue, 05 Nov 2019 04:53 PM
ऐप पर पढ़ें

राजधानी दिल्ली के स्कूलों ने पेरेंट्स के कहा है कि ‘वे अपने बच्चों को मास्क पहनाकर ही स्कूल भेजें। ऐसा नहीं करने पर वातावरण में मौजूद जहरीली हवा उनके लिए घातक हो सकती है।’ दिल्ली और एनसीआर (राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र जिसमें गाजियाबाद, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गुड़गांव, फरीदाबाद सहित दिल्ली के आसपास के क्षेत्र आते हैं) के साथ ही देश में वायु प्रदूषण की मार झेल रहे कई शहरों की यह हर साल की कहानी है। जैसे ही ठंड दस्तक देती है, यहां प्रदूषण का स्तर कई गुना बढ़ जाता है। यह स्थिति कितनी घातक है, इसका अंदाजा विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा जारी इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रदूषण से हर साल 1 लाख बच्चों की मौत होती है। जानिए क्यों फैलता है वायु प्रदूषण और इसे कैसे बचा जा सकता है।
 
क्या है एक्यूआई?
myupchar.com से जुड़े डॉ. आयुष पांडे के अनुसार, एक्यूआई यानी एयर क्वालिटी इंडेक्स, प्रदूषण मांपने की ईकाई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी नॉर्मल रेंज 0 से 50 तय की है, लेकिन इस साल दिवाली के बाद दिल्ली में प्रदूषण का स्तर 400 तक पहुंच गया है। यानी दिल्लीवासी सामान्य से 8 गुना ज्यादा जहरीली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में गाजियाबाद वायु प्रदूषण के मामले में सबसे बुरी स्थिति में हैं जहां 29 अक्टूबर 2019 को प्रदूषण का स्तर 446 तक पहुंच गया। नोएडा 439  ग्रेटर नोएडा 428 के साथ ही फरीदाबाद 387 और गुड़गांव 362 के स्तर पर बहुत ज्यादा खराब हालत में हैं। 
 
क्यों खराब हो रही आबोहवा

लाइफस्टाइल
वाहनों का धुआं
पंजाब और हरियाणा में फसलों के बाद के चारे (पराली) का जलाया जाना
निर्माण कार्य
आतिशबाजी का धुआं

इस तरह जानलेवा है प्रदूषण
डॉ. आयुष पांडे बताते हैं कि प्रदूषित हवा में सस्पेंडेड पार्टिकुलेट मेटल होते हैं। 2.5 माइक्रॉन से नीचे होने पर यह जहर आसानी से सांस के जरिए फेफडों में चला जाता है और फिर खून में मिल जाता है। इससे कई तरह की बीमारियां होती हैं। जैसे अस्थमा, सीओपीडी यानी क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज, एलर्जी, मौसम में बदलाव के साथ सांस में तकलीफ, नाक से पानी आना, गले में खराश, सिरदर्द, बुखार, आंखों में जलन। 
 
मेडिकल जर्नल ‘एनवायरनमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टि’ में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, गर्भावस्था के दौरान वायु प्रदूषण होने वाले शिशु पर विपरित असर डालता है। इसके असर के कारण होने वाले बच्चों में हार्ट संबंधी बीमारियां हो सकती हैं। दिवाली के बाद अस्पतालों की ओपीडी में श्वसन संबंधी बीमारियों की शिकायत करने वाले रोगियों की संख्या 30 प्रतिशत बढ़ गई है।
 
जैसे-जैसे बढ़ेगी ठंड, बढ़ेगा स्मॉग का संकट
दिल्ली एनसीआर को प्रदूषण से अभी मुक्ति मिलने वाली नहीं है, क्योंकि जैसे-जैसे ठंड बढ़ेगी, वैसे-वैसे ये संकट गहराएगा। ठंड में फॉग (कोहरा) बढ़ेगा और यह स्मोक के साथ मिलकर स्मॉग बनाएगा, जो कि बहुत जहरीली हवा होती है।
  
धूल, धुएँ और कुहासे के मिश्रण को हिंदी में धुआँसा कहते हैं। धुआंसा या स्मॉग, वायु प्रदूषण की एक अवस्था है। बीसवीं सदी के प्रारंभ में मिश्र शब्द स्मॉग (स्मोक+फॉग=स्मॉग) के जरिये धुएं और कुहासे की मिली-जुली अवस्था को बताया गया। वाहनों और कारखानों द्वारा उत्सर्जित धुएँ में मौजूद राख, सल्फर और दूसरे हानिकारक रसायन जब कोहरे के संपर्क में आते हैं तो धुआँसे का निर्माण होता है। यह धुआँसा इस रूप में वायु प्रदूषण जनित अनेकों बीमारियों का कारण बन जाता है। 
 
18 सिगरेट के बराबर है यह धुआं
सलाह दी जाती है कि जो लोग स्मोकिंग करते हैं, उन्हें इस समय यह बिल्कुल छोड़ देना चाहिए, क्योंकि अभी दिल्ली एनसीआर की हवा 18 से 20 सिगरेट के बाहर जहरीला धुआं शरीर में भेज रही है।
 
प्रदूषण से बचाव में बहुत काम का है मास्क
प्रदूषण से बचने के लिए सबसे जरूरी है कि घर से बाहर निकलते समय मास्क पहना जाए। बाजार में कई तरह के मास्क उपलब्ध हैं, लेकिन एन95 एयरमास्क का उपयोग करना चाहिए। यह एनआईओएसएच (नेशनल इंस्टिट्यूट फॉर ऑक्युपेशनल सेफ्टी एंड हेल्थ) द्वारा अप्रूव्ड है। यह 95 फीसदी तक धुल के कणों को शरीर में जाने से रोकता है। यह 0.3 माइक्रॉन तक के जहरीले पार्टिकल्स को खींच लेता है।
 
हरियाली बढ़ाएं, इम्युनिटी बढ़ाने वाली चीजें खाएं 
घर से आसपास कचरा न जलाएं। हरियाली बढ़ाएं। जहां पेड़ पौधे अधिक हैं, वहां लोगों को ताजा ऑक्सीजन मिलती रहेगी। छोटे बच्चों को ऐसे पार्क में खेलने न भेजें जिसके आसपास से बहुत ज्यादा ट्रैफिक गुजरता है। इसके बजाए इनडोर एक्टिविटीज पर ही जोर दें।  

खानपान में ओमेगा-3 फैटी एसिड का सेवन बढ़ाएं। जैसे - सोयाबीन, अखरोट, समुद्री मछली, काजू, अलसी का बीज। इम्युनिटी कम न होने दें। विटामिन-सी युक्त चीजें खाएं। संतुलित भोजन करें और पर्याप्त नींद लें। नियमित एक्सरसाइज करें। खासतौर पर फेंफड़ों के लिए फायदेमंद प्राणायाम करें। बुजुर्गों और बच्चों का खास ख्याल रखें। जिन लोगों को  अस्थमा है, उन्हें प्रदूषण की चपेट से दूर रखें। 
 
अधिक जानकारी के लिए देखें: https://www.myupchar.com/disease/asthma

स्वास्थ्य आलेख www.myUpchar.com द्वारा लिखे गए हैं

हिन्दुस्तान का वॉट्सऐप चैनल फॉलो करें