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Covid 19: खतरे और अपने भावों को स्वीकार करें युवा

2020 के आसपास युवा हुई पीढ़ी जिसे ‘मिलेनियल्स’ कहते हैं, आज के दौर में सबसे ज्यादा मानसिक दबाव में है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस उम्र के लोगों के मन में करियर व जीवन को लेकर बहुत सपने होते...

Covid 19:  खतरे और अपने भावों को स्वीकार करें युवा
हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्ली Sun, 29 Mar 2020 06:57 AM
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2020 के आसपास युवा हुई पीढ़ी जिसे ‘मिलेनियल्स’ कहते हैं, आज के दौर में सबसे ज्यादा मानसिक दबाव में है। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस उम्र के लोगों के मन में करियर व जीवन को लेकर बहुत सपने होते हैं। पर कच्ची उम्र के कारण वे भविष्य की अनिश्चितताओं को लेकर मानसिक तौर पर तैयार नहीं होते। ऐसे में घर के अंदर रहकर कोरोना की जंग लड़ना इनके लिए एक बड़ी चुनौती है।

खतरा न स्वीकारना सबसे खतरनाक 
अमेरिकी संघीय संस्था ‘सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी)’ के अनुसार, युवाओं में ये मानसिकता बनी हुई है कि उन्हें यह वायरस नहीं हो सकता। सीडीसी कहता है कि खतरे को स्वीकार न करने का भाव इस आयुवर्ग में मानसिक अवसाद पैदा कर सकता है। जिसका उन्हें पता भी नहीं चलेगा।

सर्वाधिक चिंता करने वाली पीढ़ी 
अमेरिकन साइकाइट्री एसोसिशन ने 2018 के अध्ययन में पाया कि 1997 के बाद पैदा हुए बच्चे जो अब युवा हैं, वे अब तक की सबसे ज्यादा चिंता करने वाली पीढ़ी हैं। वहीं, प्रतिष्ठित चिकित्सा जर्नल ‘लैंसेन्ट’ के मुताबिक, क्वारंटाइन के बाद का समय पोस्ट ट्रॉमेटिक स्ट्रेस डिसआर्डर, गुस्सा और धबराहट पैदा करता है। जाहिर है कि अगर युवाओं को इन स्थितियों से अवगत नहीं कराया गया तो उनके लिए मुश्किल होगी। 


अकेले रहने के दौरान गुस्सा आ सकता है
अकेले रहने के दौरान आपको गुस्सा आ सकता है कि आप बाहर घूमने नहीं जा सकते। कभी आपको चिड़चिड़ाहट या डर भी लग सकता है। ऐसा भी हो सकता है कि आप अपनी इन भावनाओं से बचने के लिए खुद को जबरन व्यस्त करने की कोशिश करेंगे। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि ऐसा करने से ही बचने की जरुरत है। वे सलाह देते हैं अकेले में बैठकर अपनी पूरे व्यवहार का अध्ययन करें, डर या गुस्से के प्रति शर्मिंदगी महसूस न करें।

अनिश्चितताओं को गले लगाएं
हमेशा सकारात्मक सोचें पर साथ में किसी खराब हालात के लिए खुद को मनोवैज्ञानिक तौर पर तैयार करें। अपने बुजुर्गों से उनके व्यक्तिगत जीवन के झटका देने वाले पलों को सुने और याद रखें कि जीवन में कभी भी कुछ हो सकता है। यही अनिश्चिचतता जीवन की खूबसुरती है जिसे हमें गले लगाना चाहिए। हर दिन की टू-डू लिस्ट बनाएं और वो सब करें तो छुट्टियों के दिनों में करना चाहते थे।

स्त्रोत : लेन्सेंट, सेंटर्स फॉर डिसीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन, अमेरिकन साइकाइट्री एसोसिशन

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