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Hindi Newsकोरोना वायरस मिथ और सच्चाई: क्या धूल मिट्टी वाले हाथ भी सैनिटाइजर से धोने चाहिए?

कोरोना वायरस मिथ और सच्चाई: क्या धूल मिट्टी वाले हाथ भी सैनिटाइजर से धोने चाहिए?

इन दिनों कोरोना वायरस को लेकर कई तरह के मिथक प्रचलित हो रहे हैं। इन्हें लेकर आम लोगों में काफी भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। क्या है, इन मिथकों की सच्चाई, इस बारे में आपको बता रहा है...

कोरोना वायरस मिथ और सच्चाई: क्या धूल मिट्टी वाले हाथ भी सैनिटाइजर से धोने चाहिए?
हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीMon, 01 Jun 2020 10:16 AM
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इन दिनों कोरोना वायरस को लेकर कई तरह के मिथक प्रचलित हो रहे हैं। इन्हें लेकर आम लोगों में काफी भ्रम की स्थिति पैदा हो रही है। क्या है, इन मिथकों की सच्चाई, इस बारे में आपको बता रहा है ‘हिन्दुस्तान'

1. धूल मिट्टी वाले हाथ भी सैनिटाइजर से धोने चाहिए।
हकीकत- डिस्इन्फेक्टेंट और क्लीनर दो अलग चीजें हैं। असंक्रमित करने वाले घोल, विषाणुओं से रक्षा करते हैं। धूल-मिट्टी व चिकनाई हटाने का काम उनका नहीं है। यही वजह है कि धूल-मिट्टी को हटाने के लिए साबुन का इस्तेमाल किया जाता है। इससे उनके नीचे छिपे विषाणु भी खत्म हो जाते हैं।

2. संक्रमण का जोखिम व्यस्कों व अव्यस्कों में बराबर है।
हकीकत - कुछ शोधों में यह बात सामने आई है कि बच्चों में संक्रमण का जोखिम बड़ों के मुकाबले कम है। दुनिया भर से इकट्ठा किए गए डेटा का विश्लेषण कर वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि 20 वर्ष से कम उम्र वालों में संक्रमण का जोखिम 20 वर्ष से अधिक के लोगों की तुलना में 56 फीसदी कम है। शोधकर्ताओं ने पैनडेमिक पर 6,000 से ज्यादा पेपरों का आकलन किया। हालांकि यह अभी प्रारंभिक आकलन है।
 
3. हर्ड इम्यूनिटी और ईम्यूनिटी पासोर्ट एक है।
हकीकत - नहीं, ये अलग-अलग बातें हैं। हर्ड इम्यूनिटी की अवधारणा का अर्थ है कि अगर किसी देश या भौगोलिक क्षेत्र की 60 प्रतिशत से ज्यादा आबादी में एंटीबॉडीज विकसित हो जाएं, तब कोरोना के संक्रमण का जोखिम अपने आप कम हो जाएगा। वहीं इम्यूनिटी पासपोर्ट की अवधारणा यह है कि जिनमें संक्रमण के खिलाफ उच्च इम्यूनिटी हो, उन्हें पहचान कर सर्टिफिकेट दिया जाए।
 

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