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Coronavirus : बचाव में विटामिन-सी कितना कारगर, जानें ऐसे ही सवालों के जवाब

कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं। लोगों के मन में रोज नए-नए सवाल उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर अफवाहें और भ्रांतियां भी प्रकाशित हो रही हैं,...

Coronavirus : बचाव में विटामिन-सी कितना कारगर, जानें ऐसे ही सवालों के जवाब
हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्ली Fri, 27 Mar 2020 10:58 AM
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कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। भारत में भी इसके मामले बढ़ रहे हैं। लोगों के मन में रोज नए-नए सवाल उठ रहे हैं। सोशल मीडिया पर अफवाहें और भ्रांतियां भी प्रकाशित हो रही हैं, जिन्हें दूर करने के लिए डब्ल्यूएचओ ने प्रयास तेज किया है। डब्ल्यूएचओ और केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा दी जा रहीं कोरोना से जुड़ी जानकारियों को आपक तक पहुंचाने के लिए 'हिन्दुस्तान' ने प्रश्नोत्तरी की शुरुआत की है। साथ ही हमारा प्रयास होगा, आपके हर सवाल का विशेषज्ञों से जवाब हासिल कर आप तक पहुंचाना।

कोरोना वायरस के मरीजों में ठीक हो जाने के बाद संक्रमण के दोबारा होने की कितनी आशंका है? 
अभी तक इस बात संतोषजनक जवाब नहीं मिल पाया है कि एक बार कोरोना से संक्रमित होने वाले व्यक्ति को यह दोबारा हो सकता है या नहीं। कुछ वैज्ञानिकोंका कहना है कि एक बार संक्रमण हो जाने के बाद इनसानी शरीर उसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। मगर चीन में कुछ मामले ऐसे सामने आए हैं, जिनमें अस्पताल से छुट्टी मिलनेे के कुछ सप्ताह बाद लोगों को दोबारा संक्रमण हो गया। चीन के एक अध्ययन के मुताबिक, अभी तक बंदर की एक खास प्रजाति ही इसके प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित करने में सफल हुई है। 


क्या कैंसर से जूझ रहे या ठीक हो चुके मरीजों में कोरोना संक्रमण का अधिक खतरा है? 
वरिष्ठ ऑन्कोलॉजिस्ट तपस्विनी प्रधान के अनुसार, अभी तक की जानकारी के मुताबिक, सामान्य वायरस की तुलना में कोरोना का खतरा 10 गुणा ज्यादा है। हालांकि 80 फीसदी कैंसर मरीजों में इसका असर बहुत कम है। साथ ही जान का खतरा भी कम है, पर 80 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में यह 18 फीसदी ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। डायबिटीज-2, हृदय रोग, अस्थमा और इम्युनोसप्रेसिव थेरेपी वाले लोगों को खास ध्यान रखने की जरूरत है। ‘लेंसेट ऑन्कोलॉजी’ में छपे विश्लेषण के अनुसार, कैंसर के मरीजों में इसके गंभीर असर का खतरा सामान्य लोगों की तुलना में पांच गुणा अधिक है। रोग या थेरेपी के दुष्प्रभावों के कारण मरीजों की प्रतिरोधक क्षमता कमजोर हो जाती है, जिससे उनमें संक्रमण होने की आशंका बढ़ जाती है। कैंसर से उबर चुके मरीजों के मामलों में में इस बात का ध्यान रखने की जरूरत है। वायरस की प्रकृति और संरचना के आधार पर इससे निपटने के तरीके फिलहाल अपनाए जा रहे हैं। इन्फ्लूएंजा से ज्यादा संक्रामक होने के कारण लगातार सामाजिक दूरी बनाए रखने और साफ-सफाई की अच्छी आदतें अपनाना जरूरी है। चूंकि यह वायरस नया है और फिलहाल इसका टीका या एंटी वायरल एंटीडोट नहीं है, इसलिए बेहद जरूरी है कि अपनी इम्युनिटी को मजबूत बनाएं। अपने खान-पान का खास ध्यान रखें। कैंसर से जूझ रहे या ठीक हो चुके मरीजों को इससे उबरने में परेशानी हो सकती है। बेहतर है कि वे खुद को बचाएं। अगर संक्रमित हैं या आशंका है तो अलग रहें। मास्क पहनें। उनकी जो लोग देखभाल कर रहे हैं, वे भी मास्क पहनें। फिलहाल कीमोथेरेपी को रोके जाने या उसमें बदलाव करने की जरूरत से जुड़े तथ्य नहीं हैं। इसी तरह प्रोफाइलेक्टिक एंटी-वायरल थेरेपी की भी कोई भूमिका नहीं है। क्लोरोक्विन, लोपिनविर का भी प्रोफाइलेक्टिक में असर साबित नहीं हुआ है। 

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इम्युनिटी बढ़ाने में विटामिन-सी की क्या भूमिका है? 
बाहरी और भीतरी रोगों से बचाने में शरीर के प्रतिरोध प्रणाली की बड़ी भूमिका होती है। खान-पान सही रखकर हम शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत कर सकते हैं। डॉ. तपस्विनी प्रधान के अनुसार, विटामिन-सी जुकाम से बचाने में मदद करता है, त्वचा को स्वस्थ रखता है, जो बाहरी हानिकारक तत्वों और विषाणुओं के लिए प्रतिरोधक का काम करती है। कुछ अध्ययन कहते हैं कि विटामिन-सी, सफेद रक्त कोशिकाओं को भी संक्रमण से लड़ने में मदद करता है। इसके एंटी बैक्टीरियल गुण संक्रमण के असर को कम करने में खासे प्रभावकारी होते हैं। विटामिन-सी शरीर को कुदरती एंटीऑक्सीडेंट बनाने में भी मदद करता है। नियमित कम से 200 एमजी विटामिन-सी लेना सांस संबंधी संक्रमण की आशंका को कम कर सकता है। अधिकतम सीमा 2000 एमजी रखी गई है। इससे ज्यादा की मात्रा से डायरिया और पथरी होने की आशंका हो सकती है। पुरुषों को 90 एमसीजी और महिलाओं को 75 एमसीजी विटामिन-सी लेना चाहिए। आंवला; खट्टे फलों जैसे नीबू, संतरा, मौसंबी, टमाटर, किवी; हरी व लाल मिर्च और हरी पत्तेदार सब्जियों में विटामिन-सी भरपूर होता है। 

मुझे मछली-मीट खाने का बहुत शौक है। क्या मुझे इन दिनों परहेज करना होगा या इन्हें खाने में कोई दिक्कत नहीं है? 
इन दिनों कोरोना से बचाव के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं। कहा जा रहा है कि नॉन-वेज खाने वालों को कोरोना की दहशत से उबरने तक मीट नहीं खानी चाहिए। ट्विटर पर भी ‘स्टॉप ईिंटग मीट’ और ’नो मीट नो कोरोनो वायरस’ जैसे रुझान देखे गए हैं। दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में पल्मोनरी मेडिसिन विभाग के डॉ. अनंत मोहन का कहना है कि यह अफवाह इसलिए फैली है क्योंकि वुहान में कोरोना वायरस से संक्रमित ज्यादातर लोगों का समुद्री खाद्य बाजारों के साथ कुछ संपर्क बताया जा रहा है। जहां तक मांस या आहार से कोरोना के संबंध की बात है, इसका कोई निर्णायक प्रमाण नहीं है। लेकिन एहतियात के तौर पर, खास कर भारत में कच्चे मांस से बचने के लिए भी यह एक अच्छा विचार है। आमतौर पकाया हुआ मांस खाना बेहतर होता है। अब तक ऐसी कोई सलाह नहीं दी गई है कि मांस खाने से परहेज किया जाए, लेकिन यह अच्छी तरह पका हुआ होना चाहिए।

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