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सोशल डिस्टेंसिंग से बच्चों पर पड़ रहा है यह असर, ऐसे बचाएं 

हर साल स्कूल की छुट्टियां लगती हैं तो बच्चों को घर पर रहने का एक एक्साइटमेंट होता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण स्थिति जरा अलग है। यहां बच्चों को घर पर रहना मजबूरी है। बड़ों की तरह बच्चों ने भी...

सोशल डिस्टेंसिंग से बच्चों पर पड़ रहा है यह असर, ऐसे बचाएं 
Myupchar,नई दिल्लीMon, 11 May 2020 01:41 PM
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हर साल स्कूल की छुट्टियां लगती हैं तो बच्चों को घर पर रहने का एक एक्साइटमेंट होता है, लेकिन कोरोना वायरस के कारण स्थिति जरा अलग है। यहां बच्चों को घर पर रहना मजबूरी है। बड़ों की तरह बच्चों ने भी अपनी कई चीजों की प्लानिंग पहले ही कर ली थी, लेकिन लॉकडाउन के कारण वे कुछ भी न कर पाने के लिए मजबूर हैं। बड़े-बड़ों पर इस बीमारी के कारण पैदा हुई परिस्थिति का प्रभाव पड़ रहा है तो बच्चे इससे कैसे अछूते रह सकते हैं। कोविड-19 संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सोशल डिस्टेंसिंग अपनाने की जरूरत है। इस महामारी ने शारीरिक रूप से एक-दूसरे से दूरी बनाए रखने के लिए मजबूर किया है, लेकिन बच्चों पर गहरा असर पड़ रहा है।

सोशल डिस्टेंसिंग कहने में तो बहुत आसान है, लेकिन बच्चों के लिए कितना मुश्किल है, केवल वे ही  जानते हैं।  सोशल डिस्टेंसिंग के कारण बच्चे बाहरी दुनिया से कट गए हैं। बच्चों में बाहरी दुनिया को जानने और उनसे संवाद की स्वाभाविक रूप से ललक रहती है, लेकिन घर में बंद बच्चे इस दौरान बेचैन और निराश महसूस कर रहे हैं। www.myupchar.com के डॉ. प्रदीप जैन का कहना है कि यूनाइटेड नेशन्स चिल्ड्रन्स इमरजेंसी फंड (यूनिसेफ) की मानें तो कोविड-19 वैश्विक महामारी की वजह से बच्चों का उत्सुक होने के साथ-साथ चिंतित होना लाजमी है। ऐसा इसलिए क्योंकि उनका स्कूल बंद है, सभी तरह के पहले से प्लान किए गए इवेंट कैंसिल हो रहे हैं, दोस्तों से बिछड़ गए हैं, घर में पूरी तरह कैद हैं। इस परीक्षा की घड़ी में परिवार का प्रयास होना चाहिए कि वे इस मनोवैज्ञानिक मुद्दे को समझें। कोरोना के इस प्रकोप ने बड़ों को ही झकझोर दिया है तो ऐसे में यह समझना गलत होगा कि बच्चे इस माहौल को आसानी से अपना लेंगे। अगर वे अपना भी लेते हैं तो उनके अंदर चल रहे तनाव के दीर्घकालिक प्रभावों से बचाना जरूरी है।

www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डॉ. अजय मोहन का कहना है कि कोरोना से बचाने के लिए बच्चों पर पेरेंट्स को जितना ध्यान देना है, उतना ही ध्यान उनके मासूम मन और अपरिपक्व दिमाग पर देना है। ढेरों खबरों, घर में हो रही चर्चाओं का असर उन पर पड़ रहा है। वहीं पेरेंट्स पूरे समय घर में रहने के कारण अगर उनकी जरूरतों को इग्नोर कर रहे हैं तो यह गलत है। उन्हें घर के अंदर गतिविधियों में व्यस्त रखना तो जरूरी है लेकिन उनके फिजिकल कॉन्टेक्ट की जरूरतों को भी पूरा करना होगा।  बच्चों को फिजिकल टच की जरूरत होती है और जब वे अपने दोस्तों से हाई फाइव्स नहीं रख सकते हैं और अपने दोस्तों के साथ झगड़े का मजा नहीं ले सकते हैं, तो घर पर अधिक फिजिकल कॉन्टेक्ट रखना एक अच्छा विचार है। पेरेंट्स के लिए जरूरी है कि घर में फिजिकल डिस्टेंसिंग का पालन न करें। उन्हें गले लगाने दें, अपना हाथ पकड़ने दें या भले ही उनकी उम्र कुछ भी हो प्यार से भरपूर व्यवहार करने दें।

हालांकि, सामान्य परिस्थितियों में ज्यादा स्क्रीन समय को हतोत्साहित किया जाता है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में अकेलेपन की भावना को कम करने का एक अच्छा तरीका है। बच्चों को नियमित रूप से परिवार और दोस्तों के साथ वर्चुअल मीटिंग करने दें। 

ऑनलाइन एजुकेशन बच्चों को एक नियमित दिनचर्या बनाने में मदद कर रही है, लेकिन तकनीकी संसाधन पर्याप्त रूप से एडवांस नहीं हैं कि वे एक सहज अनुभव दे सकें। टीचर और स्टूडेंट्स दोनों के पास वर्चुअल प्लेटफॉर्म्स के इस्तेमाल के लिए प्रशिक्षण की कमी है, जो सोशल कनेक्टिविटी की प्रक्रिया में खलल पैदा करता है और ज्यादा छोटे बच्चों को अनदेखा और चिंतित महसूस करा सकती हैं। इसलिए सीमित समय में कोर्स को ध्यान में रखते हुए फन एक्टिविटीज वाला सेशन होना चाहिए।

अधिक जानकारी के लिए देखें :https://www.myupchar.com/disease/covid-19/why-world-health-organisation-using-physical-distancing-instead-of-social-distancing

स्वास्थ्य आलेख www.myUpchar.com द्वारा लिखे गए हैं, जो सेहत संबंधी भरोसेमंद जानकारी प्रदान करने वाला देश का सबसे बड़ा स्रोत है। 

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