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लॉकडाउन में रहें सावधान, बच्चों का ज्यादा स्क्रीन टाइम बढ़ा सकता है ऑटिज्म जैसे लक्षणों का जोखिम

कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन करना पड़ा है और सब लोग घर में ही अपना समय बिता रहे हैं। ऐसे में बच्चे भी घर के ही अंदर बंद हैं। पूरे दिन घर में अपने मनोरंजन के लिए वह या तो टीवी के सामने बैठ...

लॉकडाउन में रहें सावधान, बच्चों का ज्यादा स्क्रीन टाइम बढ़ा सकता है ऑटिज्म जैसे लक्षणों का जोखिम
myupcharTue, 05 May 2020 12:33 PM
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कोरोना वायरस महामारी के कारण लॉकडाउन करना पड़ा है और सब लोग घर में ही अपना समय बिता रहे हैं। ऐसे में बच्चे भी घर के ही अंदर बंद हैं। पूरे दिन घर में अपने मनोरंजन के लिए वह या तो टीवी के सामने बैठ जाते या फिर मोबाइल, टैबलेट में आंखें गड़ाए रहते हैं। शोधकर्ताओं ने पाया है कि बहुत अधिक स्क्रीन एक्सपोजर बच्चों में ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर (एएसडी) जैसे लक्षणों की संभावनाओं को बढ़ा देता है। www.myupchar.com से जुड़े एम्स के डॉ. ओमर अफरोज का कहना है कि ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर एक मस्तिष्क का विकार है, जिसमें मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्र एक साथ काम करने में विफल हो जाते हैं। इससे ग्रस्त होने पर व्यक्ति लोगों से अलग सुनते, देखते और महसूस करते हैं। आनुवांशिकी और पर्यावरण दोनों ही ऑटिज्म में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इससे पीड़ित बच्चे अकेले रहना पसंद करते हैं, ठीक से वाक्यों को नहीं बोल पाते, नजर मिलाने से बचते हैं। वे रोशनी, ध्वनि और स्पर्श के प्रति असामान्य रूप से संवेदनशील होते हैं।
 
द जर्नल ऑफ द अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन जेएएमए पीडियाट्रिक्स में प्रकाशित अध्ययन में पाया गया कि 12 महीने के बच्चे जो स्क्रीन पर देखने में ज्यादा समय बिताते हैं, उनमें दो साल की उम्र में ऑटिज्म जैसे लक्षण दिखाई देने की आशंका अधिक थी। अमेरिका के ड्रेक्सल यूनिवर्सिटी के सीनियर ऑथर डेविड एस बेनेट ने कहा, 'इन निष्कर्षों ने स्क्रीन टाइम की तुलना में माता-पिता और बच्चों के बीच खेलने के समय को लेकर हमारी समझ को मजबूत किया है।'
 
बेनेट ने कहा, 'माता-पिता को अपने बच्चे को एएसडी लक्षणों के जोखिम को कम करने के लिए सशक्त बनाने का एक शानदार अवसर है, जिसमें कम उम्र में सोशल इंटरेक्शन बढ़ाना और स्क्रीन को सीमित करना शामिल हो सकता है।'
 
नतीजों के लिए 12-18 महीनों के बच्चों के लिए माता-पिता से पूछा गया कि बच्चे कितने समय स्क्रीन्स या किताबों में बिताते हैं और वे खुद अपने बच्चे के साथ कितना खेलते हैं। नेशनल चिल्ड्रन स्टडी के 2,152 बच्चों के इस समूह के बाद टीम ने जांच की कि टेलीविजन या वीडियो देखना और सोशल प्लेटाइम और रीडिंग, दो साल की उम्र में एएसडी जोखिम से कैसे जुड़ा था।
 
जबकि बच्चे आमतौर पर दूसरों के साथ बातचीत करने में रुचि रखते हैं, एएसडी जैसे लक्षण वाले लोगों को इन सोशल बिहेवियर के दिखाने की संभावना कम होती है। निष्कर्षों से पता चला है कि 12 महीने की उम्र में स्क्रीन को देखना एएसडी जैसे लक्षणों में चार फीसदी से ज्यादा जुड़ा था।
 
अध्ययन अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स की सिफारिशों का समर्थन करता है जो 18 महीने से छोटे बच्चों में स्क्रीन टाइम को हतोत्साहित करता है जब तक कि इसका इस्तेमाल वीडियो चैटिंग के लिए नहीं किया जाता है।
 
www.myupchar.com से जुड़ीं मिमांसा सिंह तंवर का कहना है कि यह समय माता-पिता के लिए चुनौती से भरा है, क्योंकि उन्हें अपने घरेलू कामों, घर से हो रहे ऑफिस के काम के साथ-साथ बच्चों और पूरे परिवार के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। तनाव का स्तर बहुत ज्यादा है और यह बच्चों के साथ संवाद में भी झलकता है। बेहतर होगा कि खुद को और बच्चे को समय दें। उन्हें कहानियां सुनाने, उनके साथ खेलने का समय जरूर निकालें। इस माहौल में यह बच्चों और माता-पिता दोनों के लिए जरूरी है।
 
अधिक जानकारी के लिए देखें : https://www.myupchar.com/disease/covid-19/tips-for-parents
स्वास्थ्य आलेख www.myUpchar.com द्वारा लिखे गए हैं, जो सेहत संबंधी भरोसेमंद जानकारी प्रदान करने वाला देश का सबसे बड़ा स्रोत है। 


 

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