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एक के बाद एक नौकरी घोटाला, जाटों के बीच खोई पकड़; खट्टर के कुर्सी गंवाने की वजह समझिए

उस समय खट्टर राजनीति में एक अपेक्षाकृत एक अनजान चेहरा थे। हालांकि साझा आरएसएस पृष्ठभूमि के कारण उनकी पीएम नरेंद्र मोदी के साथ निकटता थी। खट्टर पहली बार 2014 में विधायक बने।

Amit Kumar लाइव हिन्दुस्तान, चंडीगढ़Wed, 13 March 2024 07:06 AM
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एक के बाद एक नौकरी घोटाला, जाटों के बीच खोई पकड़; खट्टर के कुर्सी गंवाने की वजह समझिए

हरियाणा में मंगलवार को बड़ा राजनीतिक फेरबदल देखने को मिला। मनोहर लाल खट्टर के इस्तीफा देने के कुछ ही घंटे बाद भाजपा की राज्य इकाई के अध्यक्ष नायब सिंह सैनी ने नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। सैनी के साथ भाजपा के चार और एक निर्दलीय विधायक ने मंत्री पद की शपथ ली। अब खट्टर की विदाई पर कई तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। ऐसी अटकलें हैं कि उन्हें केंद्र की राजनीति में लाया जाएगा। पूर्व आरएसएस प्रचारक मनोहर लाल खट्टर जब 2014 में मुख्यमंत्री पद के लिए भाजपा विधायक दल के नेता चुने गए तो कई लोगों को यकीन नहीं हुआ। उस समय खट्टर राजनीति में एक अपेक्षाकृत एक अनजान चेहरा थे। हालांकि साझा आरएसएस पृष्ठभूमि के कारण उनकी पीएम नरेंद्र मोदी के साथ निकटता थी। खट्टर पहली बार 2014 में विधायक बने। 

हुड्डा को पीछे छोड़ सकते थे खट्टर

पहली बार विधायक के रूप में, बतौर सीएम उनका चयन और भी चौंकाने वाला था क्योंकि भाजपा के पास इस पद के लिए कई दावेदार थे। हालांकि भाजपा ने उन्हें दूसरी बार भी सीएम बनाए रखा। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, अगर उन्होंने अपना लगातार दूसरा कार्यकाल पूरा कर लिया होता, तो वह अपने पूर्ववर्ती कांग्रेसी भूपिंदर सिंह हुड्डा के नौ साल, सात महीने और 21 दिन के लगातार कार्यकाल को पीछे छोड़ सकते थे। 26 अक्टूबर 2014 को मुख्यमंत्री का पद संभालने वाले खट्टर नौ साल, चार महीने और 16 दिनों तक पद पर रहे।

अब खट्टर की विदाई के कई मायने निकाले जा रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव से पहले हरियाणा सीएम को बदलने के प्रमुख कारणों में नौकरी घोटाला और जातीय समीकरण शामिल हैं। अपनी साफ छवि के लिए पहचाने जाने वाले खट्टर की शासन शैली की परीक्षा तब हुई जब एक के बाद एक नौकरी घोटालों ने हरियाणा को हिलाकर रख दिया। इन घोटालों की वजह से राज्य लोक सेवा आयोग जैसे सरकारी संस्थानों की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए गए। इसके अलावा, उन्होंने कृषक समुदाय, विशेषकर जाटों के बीच भी अपना समर्थन खो दिया। 2020-21 के किसान आंदोलन के दौरान, उन्हें राज्य के भीतरी इलाकों में यात्रा करना मुश्किल हो गया था। लोगों ने उनका भारी विरोध किया।

जाट समुदाय ने मोड़ा मुंह

इसके अलावा, ऐसा भी माना जाता है कि बीजेपी इतने लंबे समय तक खट्टर के साथ इसलिए भी बनी रही क्योंकि उसके पास कोई और ऐसा नेता नहीं था जिसकी ओर वह तुरंत रुख कर सके। गैर-जाट मतदाताओं के साथ जुड़ने और उन्हें भाजपा के पक्ष में एकजुट करने की उनकी क्षमता ने उन्हें पार्टी का प्रिय बना दिया। हालांकि इस बीच हरियाणा की राजनीति में लंबे समय से प्रभुत्व रखने वाले जाट समुदाय ने उनसे मुंह मोड़ लिया। 

अगर मार्च 2017 के वाक्ये को छोड़ दें, जब लगभग 16 भाजपा विधायक विद्रोह पर उतर आए थे, तो खट्टर को अपनी गठबंधन सरकार के लिए कभी भी मुश्किलें नहीं आईं। भाजपा के "गठबंधन धर्म" का पालन करते हुए, पूर्व सीएम ने सार्वजनिक रूप से सहयोगी जेजेपी के खिलाफ एक भी शब्द नहीं बोला। कई लोगों का मानना है कि यह हरियाणा में विपक्ष, खासकर कांग्रेस का बिखराव और मोदी फैक्टर था, जिसने पिछले नौ वर्षों के दौरान कई मौकों पर खट्टर को शर्मिंदगी से बचाया।

भाजपा ने दिया एक और ओबीसी सीएम

अब भारतीय जनता पार्टी के 12 मुख्यमंत्रियों की सूची में मंगलवार को एक और नाम जुड़ गया और वह है हरियाणा के नए सरताज नायब सिंह सैनी का। वह भाजपा के दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) से ताल्लुक रखते हैं। यह दर्शाता है कि लोकसभा चुनाव से पहले ओबीसी समुदाय के वोटों को दृढ़ता से अपने पक्ष में करने व विपक्ष की जाति आधारित जनगणना की मांग को कुंद करने के लिए वह कितनी दृढ़ है।

भाजपा ने ओबीसी के एक अन्य नेता शिवराज सिंह चौहान की जगह पिछले साल दिसंबर में मोहन यादव को मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया था और अब तीन महीने बाद पार्टी ने मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर पहली बार के सांसद और पार्टी की हरियाणा इकाई के अध्यक्ष सैनी को चुना है।

यादव के बाद अब हरियाणा के मुख्यमंत्री के रूप में ओबीसी नेता सैनी की नियुक्ति इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) और बिहार में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ मिलकर जाति आधारित जनगणना के मुद्दे पर आक्रामक है। माना जा रहा है कि विपक्षी गठबंधन के नेताओं की ओर से ओबीसी समुदाय को साधने के प्रयासों की काट के मद्देनजर भाजपा कोई जोखिम नहीं मोल लेना चाहती।

इसी रणनीति के मद्देनजर दिसंबर में तीन हिंदी पट्टी के राज्यों में अपनी बड़ी जीत के बाद, भाजपा ने अपने चार बार के मुख्यमंत्री चौहान को बदल दिया और मोहन यादव को यह जिम्मेदारी सौंप दी। इसके अलावा पार्टी ने कुछ राज्यों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के नेताओं को मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री बनाया।

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