
कैसे हरियाणा कांग्रेस में जारी रहेगा भूपिंदर हुड्डा शो, एक साल की खींचतान के बाद भी मारी बाजी
संक्षेप: हुड्डा खेमे की मांग थी कि विधानसभा नेता विपक्ष का पद उन्हें ही मिले। यह मांग तो पूरी ही हो गई। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष का पद तो बोनस के तौर पर मिल गया। इस तरह कांग्रेस ने बदलाव की जगह पुरानी रवायत ही चुनी। तीन हारों के बाद भी जाट वोट बैंक बनाए रखने के लिए हुड्डा को ही नेता विपक्ष बनाया गया है।
हरियाणा कांग्रेस और भूपिंदर सिंह हुड्डा एक-दूसरे के पर्याय से बन गए हैं। हरियाणा में दो बार सीएम रहे भूपिंदर सिंह हुड्डा को 2014 में सत्ता गंवानी पड़ी थी। इसके बाद 2019 और 2024 में भी उनके नेतृत्व ने पार्टी ने हार झेली, लेकिन अब भी राज्य कांग्रेस में वही सर्वोपरि नेता नजर आते हैं। यही वजह है कि बीते साल अप्रत्याशित चुनावी हार झेलने के बाद कांग्रेस में लंबी रस्साकशी चली। कयास लगे कि अब भूपिंदर हुड्डा की बजाय किसी और को कमान मिल सकती है। लेकिन सारे दावे फेल रहे और अंत में भूपिंदर सिंह हुड्डा ही नेता विपक्ष चुने गए। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर जिन राव नरेंद्र सिंह को लाया गया है, वह भी उनके ही खेमे के हैं।
हुड्डा खेमे की मांग थी कि विधानसभा नेता विपक्ष का पद उन्हें ही मिले। यह मांग तो पूरी ही हो गई। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष का पद तो बोनस के तौर पर मिल गया। इस तरह कांग्रेस ने बदलाव की जगह पुरानी रवायत ही चुनी। तीन हारों के बाद भी जाट वोट बैंक बनाए रखने के लिए हुड्डा को ही नेता विपक्ष बनाया गया है। हां, जाटों से इतर भी किसी ओबीसी को मौका देने की मांग हो रही थी, जिसे राव नरेंद्र सिंह के तौर पर पूरा किया गया। वह यादव हैं और हरियाणा की अहीरवाल बेल्ट से ही आते हैं, जहां भाजपा लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही है। हुड्डा के लिए यहां भी फायदेमंद यह रहा है कि राव नरेंद्र भी उनके ही करीबी हैं।
इस तरह विधानसभा से संगठन तक हुड्डा फिर से मोस्ट पावरफुल लीडर बने रहेंगे। दो दशक के बाद ऐसा हुआ है, जब कांग्रेस का प्रदेश अध्यक्ष कोई दलित नहीं होगा। इससे पहले उदयभान थे, जो फरीदाबाद से आते हैं और दलित चेहरे हैं। इसके अलावा फूलचंद मुलाना, अशोक तंवर, कुमारी सैलजा जैसे नेता भी दलित समाज से आते थे। इस बार ओबीसी लीडर राज्य अध्यक्ष बना है और हुड्डा खेमे का है। माना जा रहा है कि इससे कुमारी सैलजा, रणदीप हुड्डा, चौधरी बीरेंद्र सिंह जैसे नेताओं को झटका लगा है।
गुटबाजी तो बनेगी रहेगी एक टेंशन, कैसे कर पाएंगे पार्टी को एकजुट
अब चैलेंज यह होगा कि हुड्डा और राव नरेंद्र सिंह कैसे पार्टी के अंदर गुटबाजी को समाप्त करते हैं। यह चैलेंज अब अधिक है क्योंकि विपक्षी खेमा ज्यादा नाराज होगा। इसी गुटबाजी के कारण विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को करारा झटका लगा था। पार्टी की समीक्षा में भी कई वजहों में से यह भी एक बताई गई थी। राव नरेंद्र सिंह को अध्यक्ष बनाने की कशमकश भी लंबी चली थी। इस रेस में कई ओबीसी नेता था, लेकिन अंत में यादव समाज के राव नरेंद्र को चुना गया। प्रभारी बीके हरिप्रसाद ने कई हुड्डा विरोधी गुट से भी बात की थी, जो सहमत नहीं था। फिर भी अंत में राव नरेंद्र को ही मौका मिला।
राव नरेंद्र हार चुके हैं लगातार तीन चुनाव, सीनियर नेताओं के सवाल
बता दें कि राव नरेंद्र को अध्यक्ष बनाने का कैप्टन अजय यादव ने विरोध किया है। हुड्डा की 2009 से 2014 तक चली सरकार में मंत्री रहे राव नरेंद्र सिंह लगातार तीन चुनाव हार चुके हैं। सवाल उठाए जा रहे हैं कि जो नेता अपनी ही विधानसभा सीट तीन बार से नहीं जीता है, उसे अध्यक्ष क्यों बनाया गया। एक सीनियर नेता ने कहा, ‘कैसे लगातार तीन चुनाव हार चुका एक नेता पार्टी में जान फूंकेगा। वह पार्टी के लिए एक और उदयभान ही बनेंगे। कंट्रोल तो पूरा हुड्डा परिवार के पास ही रहेगा।’

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