गुजरात के दंगा प्रभावित गांव में मुस्लिमों के बहिष्कार पर दर्ज करो FIR, कोर्ट ने पुलिस को दिया आदेश
मजिस्ट्रेट एचपी जोशी ने बलिसाना गांव में कई मुसलमानों की आजीविका छिन जाने और कुछ लोगों द्वारा गांव छोड़कर चले जाने की बात सामने आने के बाद पुलिस को इस संबंध में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
गुजरात के पाटन की एक अदालत ने एक गांव में मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने के मामले में कई लोगों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है। इन लोगों पर जुलाई 2023 में दंगों के बाद एक सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये मुसलमानों के आर्थिक बहिष्कार का आह्वान करने का आरोप है।
मजिस्ट्रेट एचपी जोशी ने बलिसाना गांव में कई मुसलमानों की आजीविका छिन जाने और कुछ लोगों द्वारा गांव छोड़कर चले जाने की बात सामने आने के बाद पुलिस को इस संबंध में एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
द टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह मुकदमा एक ग्रामीण मकबूल हुसैन शेख के विशेष आरोपों पर आधारित था, जिसने यह दावा किया था कि पुलिस ने उसकी शिकायत पर कोई ध्यान नहीं दिया। मजिस्ट्रेट जोशी ने इस संबंध में पुलिस को नफरत और सांप्रदायिक दुश्मनी को बढ़ावा देने, आपराधिक साजिश और एक कॉमन एजेंडे को आगे बढ़ाने से संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज करने का आदेश दिया है।
बता दें कि, 16 जुलाई, 2023 को बलिसाना गांव में सांप्रदायिक हिंसा के बाद शेख ने 8 सितंबर 2023 को पाटन एसपी के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई थी। शिकायत में यह दावा किया गया था कि एक वीडियो में पटेल जाति के कुछ लोगों को अन्य ग्रामीणों को मुसलमानों के खिलाफ भड़काते हुए दिखाया गया है। शेख के अनुसार, पटेलों ने गांव के बाजार में किराये की दुकानों से मुसलमानों को बाहर निकालने के लिए कॉन्ट्रैक्ट खत्म करके उनके आर्थिक बहिष्कार का आह्वान किया था।
पुलिस द्वारा इसकी शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं किए जाने के बाद शेख ने पाटन कोर्ट में गुहार लगाकर कथित उकसावे वाले वीडियो के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देने और आईटी एक्ट से संबंधित धाराओं के तहत एफआईआर की मांग की थी। कोर्ट ने जब बलिसाना पुलिस को जांच करने का आदेश दिया तो पुलिस ने मामले को बंद करने की सिफारिश की। पुलिस ने आरोपियों के बयान पेश किए, जिसमें दावा किया गया कि उन्होंने मुसलमानों के बहिष्कार का आह्वान किया था, क्योंकि मुसलमानों ने "शांति भंग की थी और फिर से अशांति पैदा करने की संभावना थी"।
आरोपियों ने तर्क दिया कि उन्होंने ग्रामीणों को कुछ किराये के समझौते रद्द करने का भी सुझाव दिया था, लेकिन उन्होंने कभी भी किसी दुकान-मालिक को मुस्लिम किरायेदारों को बेदखल करने के लिए मजबूर नहीं किया। हालांकि, कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट पर विश्वास नहीं किया, क्योंकि शिकायतकर्ता के वकील यूसुफ शेख ने कई मुसलमानों के बयान पेश किए। इन बयानों में कहा गया था कि बहिष्कार का आह्वान किए जाने के समय तक उन्होंने अपनी आजीविका और दुकानें खो दी थीं।
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