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BJP के लिए गुजरात की जीत और हिमाचल की हार में छुपी है नई उम्मीदें व चुनौतियां, 9 राज्यों के चुनाव पर होगा असर

BJP के लिए गुजरात की जीत और हिमाचल का झटका नई उम्मीदों के साथ भविष्य की चुनौतियों के भी संकेत हैं। यह न केवल आने वाले साल में 9 राज्यों के विस चुनाव पर असर डालेंगे, बल्कि लोस चुनाव तक इसका असर जाएगा।

BJP के लिए गुजरात की जीत और हिमाचल की हार में छुपी है नई उम्मीदें व चुनौतियां, 9 राज्यों के चुनाव पर होगा असर
Praveen Sharmaनई दिल्ली | रामनारायण श्रीवास्तवFri, 09 Dec 2022 07:28 AM

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भाजपा के लिए गुजरात की महाविजय और हिमाचल प्रदेश का झटका नई उम्मीदों के साथ भविष्य की चुनौतियों के भी संकेत हैं। यह न केवल आने वाले साल में नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव पर असर डालेंगे, बल्कि लोकसभा चुनाव तक इसका असर जाएगा। खासकर भावी सामाजिक - राजनीतिक रणनीति भी इससे प्रभावित होगी। इससे यह भी साफ हुआ है प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नेतृत्व और गुजरात माडल का जादू बरकरार है। अगर कहीं कमी बेशी है तो राज्यों में है और उसे उनको दूर करना होगा, ताकि दिल्ली और हिमाचल प्रदेश जैसी स्थितियां न बने।

चुनाव नतीजों ने साफ कर दिया है कि नेता, नीति व नीयत में सही सामंजस्य होने और न होने के नतीजे किस तरह से आते हैं। प्रधानमंत्री न्मोदी की स्वीकार्यता तो जनता के सिर चढ़कर बोलती है, पर एकजुटतना न होने से कुछ जगह नतीजे भी प्रभावित होते हैं। गुजरात में सातवीं बार चुनाव रचकर जहां भाजपा ने इतिहास रचा है, वही हिमाचल में तीन दशक का रिवाज बदलने में वह असफल रही है।

नेतृत्व और बदलाव से जुड़ी है एंटी इनकंबेसी गुजरात में 27 साल बाद भी भाजपा ने एंटी इनकंबेसी को हावी नहीं होने दिया है, बल्कि गुजरात के इतिहास की सबड़े बड़ी जीत हासिल कर साबित किया है कि विपक्ष के लिए अभी सत्ता बहुत दूर है। वहीं, हिमाचल प्रदेश में वह पांच साल में ही एंटी इनकंबेसी का शिकार हो गई है। हिमाचल में नेतृत्व की कमजोरी भी दिखी।

पहले बगावत के डर से ज्यादा टिकट नहीं काटे, फिर बगावत रोकने के लिए टिकट काटे और इन सबके बाद राज्य के बड़े नेता अपने अपने ढंग से प्रचार में जुटे, जिसमें एकजुटता की कमी साफ दिखती थी। वहीं गुजरात में साल भर पहले पूरी सरकार बदलने के बाद चुनाव के समय भी 41 फीसद विधायकों के टिकट काट दिए, जो बागी हुए उन्हें भी हावी नहीं होने दिया। दोनों राज्यों की रणनीति में साफ अंतर था और नतीजे भी वैसे ही आए।

पार्टी की कमजोरी डालती है असर

साफ है कि एंटी इनकंबेसी वही काम करती है, जहां पार्टी कमजोर पड़ती है। यूपी और उत्तराखंड में भाजपा ने अपनी मजबूती से इसे हावी नहीं होने दिया था। गुजरात का चप्पा-चप्पा मोदी की नजर में रहता है और अमित शाह खुद कमान संभाले थे। बिना किसी संगठन प्रभारी और चुनाव प्रभारी के भी वहां पर नेतृत्व में कोई कमी नजर नहीं आई। वहीं हिमाचल में पार्टी जूझती नजर आई। जबकि मोदी ने हिमाचल से रिश्ता जोड़कर कोई कोर कसर नहीं छोड़ी।

दिल्ली और हिमाचल से उभरी कमजोरी

गुजरात की बड़ी जीत के जश्न में हिमाचल प्रदेश और दिल्ली नगर निगम ने रंग में भंग डाला। लोकसभा की दृष्टि से ज्यादा दिक्कत नहीं है, लेकिन दिल्ली और हिमाचल भाजपा के पुराने मजबूत आधार वाले राज्य रहे हैं। आप ने नगर निगम में भी झटका दे दिया।

गुजरात ने बनाया नया रिकॉर्ड

गुजरात में भाजपा ने अपना 2002 को 127 सीट का रिकॉर्ड भी तोड़ दिया। अभी तक की सबसे बड़ी जीत कांग्रेस की 1985 की 149 सीट का रिकॉर्ड भी पार कर दिया। 1985 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद बनी सहानुभूति लहर में माधव सिंह सोलंकी के नेतृत्व में यह जीत मिली थी। जबकि इस बार भाजपा पूरी तरह से विकास के मुद्दे पर केंद्रित रही। भाजपा की यह जीत इसलिए भी अहम है, क्योंकि 2017 में वह 99 सीटों पर ही सिमट गई थी।

भावी चुनौतियां

भाजपा को अगले साल नौ राज्यों में चुनाव में जाना है। इनमें पूर्वोत्तर के त्रिपुरा, मेघालय, नगालैंड, मिजोरम, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव होने हैं। ऐसे में अपनी सरकार बचाने के साथ नई जगह सेंध लगाना चुनौती होगा। 

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