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Hindi News गुजरात17 साल से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य था, मनुस्मृति पढ़ें; रेप पीड़िता की याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट

17 साल से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य था, मनुस्मृति पढ़ें; रेप पीड़िता की याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 7 महीने से अधिक पुराने भ्रूण को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय ने यह मौखिक टिप्पणी की।

17 साल से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य था, मनुस्मृति पढ़ें; रेप पीड़िता की याचिका पर गुजरात हाईकोर्ट
Amit Kumarलाइव हिन्दुस्तान,अहमदाबादThu, 08 Jun 2023 10:30 PM
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गुजरात हाईकोर्ट की एक मौखिक टिप्पणी की खूब चर्चा हो रही है। गुजरात हाई कोर्ट की जस्टिस समीर जे. दवे की खंडपीठ ने एक याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि पहले के समय में 14-15 साल की लड़कियों के लिए शादी करना और 17 साल की होने से पहले ही बच्चे को जन्म देना सामान्य था। उन्होंने इसके लिए मनुस्मृति का हवाला दिया। 

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, एक नाबालिग बलात्कार पीड़िता के 7 महीने से अधिक पुराने भ्रूण को खत्म करने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए, गुजरात उच्च न्यायालय ने यह मौखिक टिप्पणी की। पीड़िता की उम्र 16 साल 11 महीने बताई गई है। बलात्कार पीड़िता के पिता के वकील ने सुनवाई के दौरान लड़की की कम उम्र को देखते हुए भ्रूण की चिकित्सा समाप्ति पर जोर दिया। 

इस पर जस्टिस समीर जे. दवे की खंडपीठ ने कहा, "क्योंकि हम 21वीं सदी में जी रहे हैं, अपनी मां या परदादी से पूछिए, (शादी करने के लिए) 14-15 साल अधिकतम उम्र थी। बच्चा 17 साल की उम्र से पहले ही जन्म ले लेता था। लड़कियां लड़कों से पहले मैच्योर हो जाती हैं। 4-5 महीने इधर-उधर कोई फर्क नहीं पड़ता। आप इसे पढ़ेंगे नहीं, लेकिन इसके लिए एक बार मनुस्मृति जरूर पढ़ें।"
 
रिपोर्ट के मुताबिक, कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्होंने अपने चैंबर में डॉक्टरों से सलाह ली कि क्या इस मामले में गर्भ को समाप्त किया जा सकता है क्योंकि भ्रूण 7 महीने से अधिक का है। मामले के तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए, सिविल अस्पताल, राजकोट के चिकित्सा अधीक्षक को तत्काल आधार पर सिविल अस्पताल के डॉक्टरों के पैनल के माध्यम से नाबालिग लड़की की चिकित्सा जांच कराने का निर्देश दिया गया।

इसके अलावा, कोर्ट ने डॉक्टरों के पैनल को पीड़िता का ऑसिफिकेशन टेस्ट कराने और उसकी मानसिक स्थिति का पता लगाने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा, "उपरोक्त टेस्ट करने के बाद, इसकी रिपोर्ट तैयार की जाएगी और सुनवाई की अगली तारीख पर इसे न्यायालय के समक्ष पेश किया जाएगा।”

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