अहिंसा पर कविता पोस्ट करना अपराध कैसे? इमरान प्रतापगढ़ी पर FIR के लिए SC ने गुजरात पुलिस से पूछा
सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित तौर पर एक भड़काऊ गीत का एडिटेड वीडियो पोस्ट करने के लिए दर्ज की गई एफआईआर पर गुजरात पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूछा कि अहिंसा को बढ़ावा देने वाली कविता आपराधिक मुकदमे का विषय कैसे बन गई।

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कांग्रेस के राज्यसभा सांसद इमरान प्रतापगढ़ी के खिलाफ कथित तौर पर एक भड़काऊ गीत का एडिटेड वीडियो पोस्ट करने के लिए दर्ज की गई एफआईआर पर गुजरात पुलिस को फटकार लगाई है। कोर्ट ने पूछा कि अहिंसा को बढ़ावा देने वाली कविता आपराधिक मुकदमे का विषय कैसे बन गई।
जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की बेंच ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट जिसने एफआईआर रद्द करने की प्रतापगढ़ी की याचिका खारिज कर दी थी, कविता के अर्थ को नहीं समझ पाया।
जस्टिस ओका ने गुजरात सरकार की ओर से पेश हुई वकील स्वाति घिल्डियाल से कहा, “प्लीज कविता देखिए। हाईकोर्ट ने कविता के अर्थ को नहीं समझा है…यह बस एक कविता है।”
बेंच ने इस बात पर जोर दिया कि कविता किसी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है और वास्तव में यह शांति का संदेश देती है। बेंच ने जोर देते हुए कहा, "आखिरकार यह एक कविता है। यह किसी धर्म के खिलाफ नहीं है। यह कविता अप्रत्यक्ष रूप से कहती है कि भले ही कोई हिंसा में लिप्त हो, हम हिंसा में लिप्त नहीं होंगे। कविता यही संदेश देती है। यह किसी खास समुदाय के खिलाफ नहीं है।"
गुजरात हाईकोर्ट के दृष्टिकोण पर असहमति जताते हुए, इमरान प्रतापगढ़ी की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने तर्क दिया: "जज ने कानून के साथ हिंसा की है। यही मेरी चिंता है।"
सरकारी वकील के अनुरोध पर सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को तीन सप्ताह के लिए टालते हुए रचनात्मकता और कलात्मक अभिव्यक्ति के महत्व को रेखांकित किया। बेंच ने कहा, “कृपया कविता पर अपना दिमाग लगाएं। आखिरकार, रचनात्मकता भी महत्वपूर्ण है।”
बेंच ने इससे पहले एफआईआर के अनुसार आगे की सभी कार्रवाई पर रोक लगाकर प्रतापगढ़ी को अंतरिम राहत दी थी। यह मामला एक इंस्टाग्राम पोस्ट से उपजा है, जिसमें बैकग्राउंड में "ऐ खून के प्यासे बात सुनो" कविता के साथ एक वीडियो क्लिप दिखाई गई थी।
3 जनवरी को जामनगर थाने में बीएनएस के विभिन्न प्रावधानों के तहत दर्ज की गई एफआईआर में धर्म, जाति, जन्म स्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव को नुकसान का पहुंचाने का आरोप है।
गुजरात हाईकोर्ट ने 17 जनवरी 2025 को इस मामले में आगे की जांच की जरूरत का हवाला देते हुए एफआईआर को रद्द करने से इनकार कर दिया था। हाईकोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी द्वारा जांच में कथित तौर पर सहयोग नहीं करने और कविता के संदर्भों के संभावित प्रभाव की ओर इशारा किया था।
हाईकोर्ट ने कहा था, "कविता के भाव को देखते हुए, यह निश्चित तौर पर सिंहासन के बारे में कुछ संकेत देता है। अन्य व्यक्तियों द्वारा उक्त पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से भी संकेत मिलता है कि मैसेज इस तरह से पोस्ट किया गया था जो निश्चित रूप से सामाजिक सद्भाव में गड़बड़ी पैदा करता है।''
हाईकोर्ट ने आगे कहा कि संसद सदस्य के रूप में प्रतापगढ़ी से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने बयानों के परिणामों के प्रति अधिक संयम और जागरूकता के साथ काम करें। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने आगे कहा कि प्रतापगढ़ी 4 और 15 जनवरी को पुलिस द्वारा जारी किए गए नोटिस का जवाब देने में विफल रहे, जिसमें उनकी उपस्थिति की जरूरत थी। हाईकोर्ट ने उनके द्वारा कथित तौर पर जांच में सहयोग नहीं करने के आधार पर जांच जारी रखने को उचित ठहराया। हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के उन पिछले फैसलों का भी हवाला दिया, जो कार्यवाही के प्रारंभिक चरण में एफआईआर को रद्द करने से रोकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई अब तीन सप्ताह बाद होनी है, जिसमें राज्य सरकार से शीर्ष अदालत की तीखी टिप्पणियों को देखते हुए अपने रुख पर फिर से विचार करने की उम्मीद है।
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