सैटेलाइट कनेक्टिविटी का कमाल, बिना नेटवर्क भेज सकते हैं मेसेज, जानें इस टेक्नोलॉजी से जुड़ी हर डीटेल what is satellite connectivity and how it works know every detail, Gadgets Hindi News - Hindustan
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सैटेलाइट कनेक्टिविटी का कमाल, बिना नेटवर्क भेज सकते हैं मेसेज, जानें इस टेक्नोलॉजी से जुड़ी हर डीटेल

स्मार्टफोन्स में सैटेलाइट कनेक्टिविटी फीचर की धीरे-धीरे एंट्री हो रही है। यह फीचर अभी केवल कुछ महंगे स्मार्टफोन्स में ही उपलब्ध है। तो आइए जानते हैं कि सैटेलाइट कनेक्टिविटी क्या है और यह कैसे काम करती है।

Kumar Prashant Singh लाइव हिन्दुस्तानMon, 30 Dec 2024 03:42 PM
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सैटेलाइट कनेक्टिविटी का कमाल, बिना नेटवर्क भेज सकते हैं मेसेज, जानें इस टेक्नोलॉजी से जुड़ी हर डीटेल

सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले स्मार्टफोन तेजी से बीच पॉप्युलर हो रहे हैं। सैटेलाइट कनेक्टिविटी उन जगहों पर काफी काम आती है, जहां सेल्युलर नेटवर्क नहीं पहुंच पाता या बेहद कमजोर होता है। नेटवर्क न होने के चलते यूजर इमर्जेंसी में कॉल या मेसेज भी नहीं कर पाते। ऐसे में सैटेलाइट कनेक्टिविटी टेक्नोलॉजी काफी काम आती है। साल 2022 में ऐपल ने आईफोन 14 सीरीज में इस फीचर को इंट्रोड्यूस किया था। इसके बाद गूगल पिक्सल 9 सीरीज में भी इसकी एंट्री हुई। सैटेलाइट कनेक्टिविटी क्या है और कैसे काम करती है, आज हम आपको इसी के बारे में डीटेल जानकारी देने वाले हैं। तो आइए जानते हैं डीटेल।

सैटेलाइट कनेक्टिविटी क्या है?

सैटेलाइट कनेक्टिविटी टेक्नोलॉजी की मदद से डिवाइस पृथ्वी का चक्कर लगा रहे सैटेलाइट्स से कम्यूनिकेट करते हैं। इससे डिवाइसेज को स्पेस-बेस्ड नेटवर्क्स का डायरेक्ट लिंक मिल जाता है। यह टेक्नोलॉजी खासतौर से रिमोट लोकेशन्स जैसे ऊंचे पहाड़, रेगिस्तान या समुद्र में काफी काम आती है क्योंकि यहां नॉर्मल टेलिकॉम नेटवर्क नहीं पहुंच पाते हैं। सैटेलाइट नेटवर्क से स्मार्टफोन के कनेक्ट होने पर इमर्जेंसी सिचुएशन में मेसेज सेंड और रिसीव किया जा सकता है।

कैसे काम करती है सैटेलाइट कनेक्टिविटी टेक्नोलॉजी?

जब आप किसी ऐसी जगह पर हैं, जहां सेल्युलर नेटवर्क की पहुंच नहीं है, तब आपका फोन सैटेलाइट मोड पर स्विच कर सकता है। सैटेलाइट नेटवर्क के जरिए कॉलिंग में डायरेक्ट कनेक्शन और सिग्नल रीले की जरूरत पड़ती है। डायरेक्ट कनेक्शन में फोन अंतरिक्ष में मौजूद सैटेलाइट को डायरेक्ट सिग्नल भेजता है। इसके लिए जरूरी है कि आसमान साफ हो। साथ ही आसपास कोई बड़ी बिल्डिंग या घना जंगल भी न हो। इसके बाद सिग्नल रीले होता है। इसमें फोन का सिग्नल सैटेलाइट तक पहुंचने के बाद वापस ग्राउंड स्टेशन की तरफ चला जाता है। यह प्रोसेस एक ब्रिज की तरह काम करता है, जिसमें रेग्युलर फोन को नेटवर्क और इंटरनेट से कनेक्ट किया जाता है, ताकि यूजर इमर्जेंसी कम्यूनिकेशन (SOS Alert) कर सकें।

नॉर्मल फोन से कैसे अलग होते हैं सैटेलाइट फोन

सैटेलाइट और रेग्युलर फोन के बीच का सबसे बड़ा फर्क फंक्शन का है। सैटेलाइट फोन्स को खासतौर से सैटेलाइट कम्यूनिकेशन के लिए बनाया जाता है ताकि ये सैटेलाइट सपोर्टेड कॉलिंग और मेसेजिंग सर्विस ऑफर करें। ये फोन दिखने में बड़े होते हैं और रेग्युलर फोन्स से महंगे भी होते हैं। सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले स्मार्टफोन्स की बात करें, तो ये स्टैंडर्ड मोबाइल डिवाइस होते हैं, जिन्हें इमर्जेंसी में सैटेलाइट से कनेक्ट किया जा सकता है।

हालांकि, इसके लिए भी इन्हें ग्राउंड-बेस्ड सेल्युलर टावर की जरूरत पड़ती है। इन फोन में अभी फुल-स्केल सैटेलाइट कम्यूनिकेशन की बजाय केवल लिमिटेड इमर्जेंसी अलर्ट सर्विस ही मिल रही है। सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले मौजूदा स्मार्टफोन में अभी हाई-बैंडविथ टास्क जैसे कॉलिंग और वेब ब्राउजिंग नहीं ऑफर की जा रही क्योंकि इसमें पावर कन्जंप्शन ज्यादा और ट्रांसमिशन स्पीड स्लो होती है।

स्मार्टफोन में सैटेलाइट कनेक्टिविटी के फायदे और नुकसान

स्मार्टफोन में सैटेलाइट कनेक्टिविटी का सबसे बड़ा फायदा है सेफ्टी। अगर आर किसी रिमोट लोकेशन पर फंस गए हैं और वहां सेल्युलर नेटवर्क नहीं है, तो आप इस सर्विस की मदद ले सकते है। सैटेलाइट कम्यूनिकेशन के जिए आप इमर्जेंसी सर्विसेज को SOS मेसेज भेज सकते हैं। इसकी कुछ कमियां भी हैं। अभी यह केवल कुछ महंगे स्मार्टफोन्स में उपलब्ध है। दूसरी कमी यह है कि सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले फोन से यूजर केवल इमर्जेंसी मेसेजिंग कर सकते हैं। यह कॉलिंग और इंटरनेट सर्विस नहीं ऑफर करती। तीसरी कमी है इसका महंगा होना।

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सैटेलाइट कनेक्टिविटी वाले डिवाइस नॉर्मल डिवाइसेज से महंगे होते हैं। साथ ही फोन में इस सर्विस को यूज करने के लिए आपको काफी पैसे भी खर्च करने पड़ सकते हैं। कुल मिलाकर कहा जाए तो सैटेलाइट कम्यूनिकेशन वाले स्मार्टफोन कनेक्टिविटी को नेक्स्ट लेवल पर ले जाएंगे। हालांकि, अभी इस सर्विस को बड़े लेवल स्मार्टफोन्स में आने में थोड़ा वक्त लगेगा। उम्मीद कर सकते हैं कि कंपनियां आने वाले सालों में बजट और मिडरेंज सेगमेंट वाले डिवाइसेज में भी इस सर्विस को ऑफर करें।

(Photo: washingtonpost)

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