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प्राइवेसी पर भारी न पड़ जाए फोटो पोस्ट करने का शौक

फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर तस्वीरें पोस्ट करना आम बात है। लाइक्स, कमेंट के लालच और सोशल साइट पर एक्टिव रहने के शौक में लोग खूब तस्वीरें पोस्ट करते हैं। मगर, यह प्राइवेसी के लिए खतरनाक साबित हो...

लाइव हिन्दुस्तान नई दिल्ली Mon, 1 April 2019 01:27 PM
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फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम पर तस्वीरें पोस्ट करना आम बात है। लाइक्स, कमेंट के लालच और सोशल साइट पर एक्टिव रहने के शौक में लोग खूब तस्वीरें पोस्ट करते हैं। मगर, यह प्राइवेसी के लिए खतरनाक साबित हो सकता है। सोशल मीडिया पर पोस्ट की जा रहीं तस्वीरों से यूजर की लोकेशन का सटीक अनुमान लगाया जा सकता है। इतना ही नहीं, फोन को अनलॉक करने की तकनीक तक पता की जा सकती है। 

शल मीडिया पर शेयर की जाने वालें तस्वीरें यूजर की लाइफ स्टाइल, आदतों के बारे में काफी कुछ बयां करती हैं। खास फीचर के जरिए लोकेशन का अनुमान लगाना भी मुश्किल नहीं। ऐसे में सबसे बड़ा खतरा प्राइवेसी को लेकर होता है। इसका एक उदाहरण दिसबंर 2018 में तब देखने को मिला, जब फेसबुक पर एक बग मिला था। इसके चलते करीब 68 लाख यूजर की निजी फोटो प्रभावित हो सकती थीं। खास बात यह है कि इनमें वो फोटोज भी शामिल थीं, जिन्हें यूजर ने अपनी टाइमलाइन के बाहर रखा। दरअसल डेवलपर्स को बग के जरिए मार्केटप्लेस, फेसबुक स्टोरी आदि पर शेयर किए गए फोटोज तक का भी एक्सेस मिल सकता था। यह उन फोटोज को भी प्रभावित कर सकता था, जिन्हें यूजर ने फेसबुक पर अपलोड तो किया लेकिन पोस्ट नहीं किया। हालांकि अच्छी बात यह है कि फेसबुक ने इस बग को सफलतापूर्वक ठीक कर दिया गया। लेकिन चिंता अभी खत्म नहीं हुई है।

आईबीएम ने दी नई जानकारी
इसी महीने आईबीएम (इंटरनेशनल बिजनेस मशीन) को अपने फेशियल रिकॉग्नाइजेशन के लिए इमेज होस्टिंग प्लेटफॉर्म फ्लिकर द्वारा ली गईं लाखों तस्वीरों का इस्तेमाल करते हुए पाया गया। फोटोग्राफर्स को जब फोटो दिखाए गए, तो वह भी हैरान रह गए। खुद फोटोग्राफर्स और फोटो में कैद लोगों को भी यह आइडिया नहीं था कि उनकी तस्वीरें रिसर्च में इस्तेमाल हो रही हैं। आईबीएम ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि उनकी तरफ से सिर्फ वही तस्वीरें इस्तेमाल की गई हैं, जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थीं। अगर यूजर चाहते हैं, तो इन्हें हटाने के लिए कह सकते हैं।

डाटा कलेक्शन में पारदर्शिता की जरूरत
दरअसल सबसे भरोसेमंद फेस रिकॉग्निशन  प्लेटफॉर्म बनने की दौड़ में बड़े पैमाने पर डेटा सेट की जरूरत होती है। रिसर्च उद्देश्यों के लिए एकत्र ज्यादातर मौजूदा डेटा सेट सीमित हैं और फेशियल रिकॉग्निशन एल्गोरिदम को प्रशिक्षित करने के लिए विविधता की कमी है। साफ है कि कंपनियों को ज्यादा फेशियल डाटा की जरूरत है। विशेषज्ञों का मानना है कि जो कंपनियां डाटा कलेक्ट कर रही हैं या फेस डाटा पर काम कर रही हैं, उन्हें ज्यादा पारदर्शी होने की जरूरत है। खासकर डाटा किस तरह स्टोर करना है, कौन एक्सेस कर सकता है और कैसे इस्तेमाल किया जाए, इन बातों को लेकर। 

जरूरी है यूजर का कंट्रोल
फेसबुक ने फोटो प्राइवेसी को ध्यान में रखकर बग को सुधार कर दिया गया, तो आईबीएम का फेस रिकॉग्निशन प्रोजेक्ट निगरानी का मामला था। मगर दोनों में ही यूजर का अपने फोटोज पर कोई कंट्रोल नहीं था। ऐसे तमाम मामले हैं जब यूजर द्वारा सोशल मीडिया और इमेज होस्टिंग प्लेटफॉर्म पर फोटो शेयर किए गए और उनकी चोरी हुई। यूजर को उन्हें सार्वजनिक करने की धमकी देकर डराया गया या धोखाधड़ी हुई। यहां तक कि सोशल मीडिया से फोटोज का इस्तेमाल चुराए गए स्मार्टफोन को अनलॉक करने में भी किया जा सकता है। इसके अलावा फोटोज के जरिए लोकेशन डिटेल ली जा सकती है। केंट स्टेट यूनिवर्सिटी के कंप्यूटर साइंस विभाग के शोधकर्ताओं का कहना है कि जब कोई यूजर सोशल मीडिया पर फोटो शेयर करता है, तो प्लेटफॉर्म उसका जीपीएस कैप्चर कर लेता है और पोस्ट के साथ जोड़ देता है। इस तरह कोई भी यूजर की सटीक लोकेशन की जानकारी हासिल कर सकता है। 

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