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RIP Girish Karnad : एक खत ने बदल दी थी गिरीश कर्नाड की जिंदगी, यूं शुरू हुआ था फिल्मी सफर

बॉलीवुड को कई बेहतरीन फिल्में देने वाले फेमस साहित्कार और बॉलीवुड अभिनेता गिरीश कर्नाड का आज निधन हो गया। गिरीश की मौत उनके बेंगलुरु स्थित घर पर 10 जून को सुबह 6.30 बजे हुई है। गिरीश की उम्र 81 वर्ष...

RIP Girish Karnad : एक खत ने बदल दी थी गिरीश कर्नाड की जिंदगी, यूं शुरू हुआ था फिल्मी सफर
लाइव हिन्दुस्तान टीम नई दिल्लीMon, 10 June 2019 11:34 AM
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बॉलीवुड को कई बेहतरीन फिल्में देने वाले फेमस साहित्कार और बॉलीवुड अभिनेता गिरीश कर्नाड का आज निधन हो गया। गिरीश की मौत उनके बेंगलुरु स्थित घर पर 10 जून को सुबह 6.30 बजे हुई है। गिरीश की उम्र 81 वर्ष थी। वे एक एक्टर होने के साथ-साथ लेखक, अवॉर्ड विनिंग प्ले राइटर, डायरेक्टर भी थें। वे दबंग स्टार सलमान खान के साथ सुपरहिट फिल्मों एक था टाइगर और टाइगर जिंदा है में नजर आए थे। 

आपको बता दें कि कर्नाड अपने लेखन शैली को लेकर काफी फेमस थे, उन्हेंइस बात के लिए भी जाना जाता है कि कर्नाड ऐतिहासिक पात्रों को आज के संदर्भ में देखा और उससे समाज को रूबरू कराया। उन्होंने कई ऐसे नाटक लिखे हैं जो इसके सबूत बनें है, इसमें उनके तुगलक, ययाति व अन्य नाटक शामिल है। 
कर्नाड ने ऐसे कई नाटक और कहानी लिखी है लेकिन उनकी फेमस कहानी मेरी जंग, अपने पराये, भूमिका, डोर स्वामी, एक था टाइगर और टाइगर जिंदा है जैसी फिल्मों में देखा गया है। 

गिरीश कर्नाड को वैसे कई सारे पुरस्कारों से नवाजा गया है। उन्हें 1994 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1974 में पद्म श्री, 1992 में पद्म भूषण, 1972 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, 1992 में कन्नड़ साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार और 1998 में उन्हें कालिदास सम्मान से सम्‍मानित किया गया है। 

 

आपको बता दें कि उनका जन्म 19 मई, 1938 को महाराष्ट्र के माथेरान में हुआ था। उनको बचपन से ही नाटकों में रुचि थी। स्कूल के समय से ही थियेटर में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने 1970 में कन्नड़ फिल्म संस्कार से बतौर स्क्रिप्ट अपने करियर की शुरूआत की थी।

girish karnad

एक बार अपने लिखने की शैली में लेकर एक्टर ने अपने एक लेख में बताया था, ''जब मैं 17 साल का था, तब मैंने आइरिस लेखक 'सीन ओ कैसी' की स्केच बनाकर उन्हें भेजा, तो उसके बदले उन्होंने मुझे एक पत्र भेजा। पत्र में उन्होंने लिखा था कि मैं यह सब करके अपना वक्त जाया न करूं, बल्कि कुछ ऐसा करूं, जिससे एक दिन लोग मेरा ऑटोग्राफ मांगे। उन्होंने अपने लेख में बताया कि इस खत के बाद 'मैंने पत्र पढ़कर ऐसा करना बंद कर दिया।

 

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गिरीश कर्नाटक आर्ट कॉलेज से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने इंग्लैंड जाकर आगे की पढ़ाई पूरी की और फिर भारत लौट आए। चेन्नई में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस में सात साल तक काम किया। इस दौरान जब काम में मन नहीं लगा तो नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे थियेटर के लिए समर्पित होकर काम करने लगे। इसके बाद उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में प्रोफेसर के रूप में काम किया। जब वहां जमा नहीं तो दोबारा फिर भारत का रुख किया। इस बार उन्होंने भारत में रुकने का मन बना लिया था और वो पूरी तरह साहित्य और फिल्‍मों से जुड़ गए। इस दौरान उन्होंने क्षेत्रीय भाषाओं में कई फिल्में बनाई। 

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