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MOVIE REVIEW: एक्शन से भरपूर है 'बागी-2', देखने से पहले पढ़ लें फिल्म का रिव्यू

विस्तार में कुछ भी लिखने से पहले एक बात साफ कर देना जरूरी है। एक अभिनेता के तौर पर टाइगर श्रॉफ से आप क्या उम्मीद रखते हैं? अगर आप उनको उनके एक्शन और डांस के लिए पसंद करते हैं तो ‘बागी 2’...

MOVIE REVIEW: एक्शन से भरपूर है 'बागी-2', देखने से पहले पढ़ लें फिल्म का रिव्यू
राजीव रंजन दिल्लीFri, 30 March 2018 07:26 PM
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विस्तार में कुछ भी लिखने से पहले एक बात साफ कर देना जरूरी है। एक अभिनेता के तौर पर टाइगर श्रॉफ से आप क्या उम्मीद रखते हैं? अगर आप उनको उनके एक्शन और डांस के लिए पसंद करते हैं तो ‘बागी 2’ आपके लिए है। अगर आप उनसे अच्छे अभिनय की उम्मीद रखते हैं तो फिल्म देख कर नाउम्मीद होंगे।

‘बागी 2’ के नाम में बागी शब्द क्यों है, यह समझना थोड़ा मुश्किल है! अगर स्टंट को बगावत कहा जाता हो, तब तो ठीक है, वरना नाम से फिल्म का संबंध नहीं है। एक और बात, यह फिल्म ‘बागी’ का सीक्वल नहीं है। हां, यह जरूर है कि दोनों फिल्मों में प्रेम कहानी, अपहरण और एक्शन का प्लॉट कमोबेश एक जैसा है, लेकिन दोनों की कहानी एक-दूसरे से जुड़ी नहीं है। लिहाजा इसे फ्रेंचाइजी कहना ज्यादा ठीक होगा।

रणवीर प्रताप सिंह उर्फ रॉनी (टाइगर श्रॉफ) फौजी है, जो कश्मीर में तैनात है। वह आतंकवादियों को बख्शता नहीं और इस चक्कर में कई बार मुश्किल में भी फंस जाता है। लेकिन उसका सीनियर अफसर उसे बचा लेता है। एक दिन उसके पास उसकी पूर्व प्रेमिका नेहा (दिशा पटानी) का फोन आता है। वह छुट्टी लेकर गोवा चल देता है नेहा से मिलने। नेहा बताती है कि उसकी बेटी का अपहरण हो गया है और कोई उसकी मदद नहीं कर रहा। न पुलिस, न उसका पति और न पड़ोसी। रॉनी उसकी मदद में जुट जाता है। इस दौरान उसका पाला गोवा पुलिस, एसीपी लोहा सिंह धूल उर्फ एलएसडी (रणदीप हुड्डा), डीआईजी (मनोज वाजपेयी), नेहा के पति शेखर (दर्शन कुमार), नेहा के देवर शनि (प्रतीक बब्बर), उस्मान (दीपक डोबरियाल) आदि से पड़ता है और फिर कहानी में बहुत सारे ट्विस्ट आते हैं। कई राज खुलते हैं।

इस फिल्म में टाइगर श्रॉफ हैं, उनका एक्शन है और थोड़ी सी दिशा पटानी की खूबसूरती है। वैसे होने को तो एक उलझी सी कहानी भी है और मनोज वाजपेयी, रणदीप हुड्डा, दीपक डोबरियाल जैसे अच्छे अभिनेता भी हैं। लेकिन निर्देशक अहमद खान उनसे ज्यादा अभिनय कराने के मूड में नहीं थे, क्योंकि उनका एजेंडा साफ था कि उन्हें टाइगर की जबर्दस्त एक्शन क्षमता को भुनाना है। इसमें वे सफल भी रहे हैं। पहले सीन से ही दर्शकों को समझा दिया जाता है कि आगे किस तरह की फिल्म उन्हें देखने को मिलेगी। 

निर्देशक और लेखक ने इसमें थोड़ा-सा देशभक्ति का तड़का भी लगाया है। कश्मीर में एक पत्थरबाज को जीप से बांध कर घुमाने और पत्थरबाजी के खिलाफ एक सैनिक की पीड़ा को भी थोड़ा दिखाया गया है। माधुरी दीक्षित के करियर को दिशा देने वाले डांस नंबर ‘एक दो तीन चार’को भी रिक्रिएट किया गया है, लेकिन जैक्लीन फर्नांडीज डांस, एक्सप्रेशन के मामले में माधुरी के आसपास भी नहीं दिखी हैं। वो माधुरी वाला फील नहीं ला पाई हैं।

अभिनय की बात करें तो टाइगर भावनात्मक दृश्यों में असर नहीं छोड़ पाते। दिशा पाटनी का हाल उनसे भी बुरा है, जबकि उनके पास कुछ करने का स्कोप था। रणदीप के सीन कम हैं। हालांकि उनके किरदार को दिलचस्प तरीके से गढ़ा गया है, लेकिन गेटअप अटपटा लगता है। मनोज वाजपेयी को भी ज्यादा सीन नहीं मिले हैं। पटकथा की कमजोरी की वजह से उन जैसा अभिनेता भी प्रभावित नहीं कर पाता। प्रतीक भी बदले अंदाज में हैं, लेकिन उनके पास बहुत कुछ करने को था नहीं। यही बात कमाबेश दीपक डोबरियाल पर भी लागू होती है।

अगर आपको एक्शन रोचक लगता है तो यह फिल्म खासतौर पर आपके लिए ही है।

रेटिंग: 2 स्टार

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