भागदौड़ भरी जिंदगी ने आज लोककलाओं के मायने बदल दिए हैं, लेकिन फिर भी संचार के माध्यम के तौर कहीं-न-कहीं इनका वजूद कायम है। दरअसल, लोककलाएं समाज का आईना हैं, जहां हमें उस समुदाय विशेष के बारे में जानने और समझने का मौका मिलता है। सवाल ये है कि क्या लोक कलाएं हमारी जिंदगी का हिस्सा उस तरह रह गई हैं जैसे पहले हुआ करती थीं? क्या पूंजी के तंत्र ने लोक कलाओं के शास्त्र को भी अपनी तरह से प्रभावित किया है?
कुछ ऐसी ही सोच के साथ राजधानी दिल्ली में एक बड़ी पहल हो रही है 28 जुलाई को दिल्ली के डॉ. अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर (15 जनपथ रोड, ववंडसर प्लेस) में। रिवायत की ओर से लोक-कलाओं का पहला उत्सव आयोजित किया जा रहा है। लोक कलाकारों, चिंतकों और संस्कृतिकर्मियों से सजी ये शाम बेहद खास साबित होने वाली है।
जानें क्या है कार्यक्रम में खास
शाम 4.30 बजे उद्घाटन के साथ औपचारिक सत्रों की शुरुआत होगी। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि जाने माने संगीतकार और किल्मकार मुजफ्फर अली हैं। इस मौके पर क्लेरनेट प्लेयर ओम प्रकाश नागर को सम्मानित किया जा रहा है। शाम 5 बजे से 6 बजे के बीच आप महमूद फारूकी और डी शाहिदी की ‘दास्तानगोई’ का आनंद उठा सकते हैं। शाम 6 बजे से सवा घंटे का वक्त आयोजकों ने परिचर्चा के लिए रखा है।
इस सत्र में स्वानंद किरकिरे और मनोज मुंतशिर के साथ नग़मा सहर का संवाद लोककलाओं को लेकर हमारी समझ की कई परतों को खोलने में मददगार हो सकता है। लोककलाओं की इस यादगार शाम में सबसे ज्यादा जिनका इंतजार रहेगा वो हैं राजस्थानी लोक कलाकार मामे खान और उनकी टीम। मांगनयार समुदाय के मामे खान ने कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर राजस्थानी लोकगीतों की धमक कायम की है. रिवायत में भी वो लोक गायकी के रस से आपको जरूर सराबोर कर जाएंगे।