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MOVIE REVIEW: डरे हुए अय्यारों का टूटता तिलिस्म है 'अय्यारी'

जिसके पास मनोज वाजपेयी और सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे अय्यार हों, उसके तिलिस्म में भला कौन नहीं बंधना चाहेगा? पर, अगर ये अय्यार ही डरे हुए हों, इनकी अय्यारी शुरू होते ही दम तोड़ दे, तो क्या विकल्प रह...

ज्योति द्विवेदी, हिन्दुस्तान टीम Fri, 16 Feb 2018 03:29 PM
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जिसके पास मनोज वाजपेयी और सिद्धार्थ मल्होत्रा जैसे अय्यार हों, उसके तिलिस्म में भला कौन नहीं बंधना चाहेगा? पर, अगर ये अय्यार ही डरे हुए हों, इनकी अय्यारी शुरू होते ही दम तोड़ दे, तो क्या विकल्प रह जाते हैं? अय्यारों के आका यानी नीरज पाण्डेय से सहानुभूति जताना! या हैरानी के सबब में डूब जाना! अय्यारी देखते वक्त कुछ ऐसे ही ख्याल आते हैं। लगता है कि इससे बेहतर अय्यार तो चंद्रकांता में थे। उनकी अय्यारी यानी रूप बदलने की कला उनके दुश्मनों को ही नहीं, दर्शकों को भी चकमा देती थी। फिल्म खत्म होने तक आप बस खुद को चिकोटी काट रहे होते हैं कि क्या यह फिल्म सचमुच नीरज पाण्डेय ने ही निर्देशित की है!

फिल्म शुरू होती है मेजर जय बक्शी (सिद्धार्थ मल्होत्रा) की गुमशुदगी के साथ, जो आर्मी का गुप्त डाटा चुराकर लापता हो गए हैं। उनके पास कुछ ऐसे सबूत हैं जो अगर मीडिया के हाथ लग जाएं तो सरकार गिरने तक की नौबत आ सकती है। जय को वापस लाने का जिम्मा दिया जाता है जय के सीनियर, कर्नल अभय सिंह (मनोज बाजपेयी) को। कहानी में एक हैकर सोनिया गुप्ता (रकुलप्रीत सिंह) भी हैं, जो जय के काम में उनकी साथी और गर्लफ्रेंड भी हैं। आर्मी से रिटायर लेफ्टिनेंट जनरल गुरिंदर सिंह (कुमुद मिश्रा), आर्मी प्रमुख जनरल प्रताप मलिक (विक्रम गोखले) को हथियार बेचने वाली एक विशेष कंपनी से हथियार खरीदने का प्रस्ताव देता है, जिसे वह नामंजूर कर देते हैं। इस पर गुरिंदर उनका एक राज खोलने की धमकी देता है। बाद में पता लगता है कि गुरिंदर यह धमकी मेजर जय बक्शी के साथ हुई एक डील के बलबूते पर दे रहा है। कहानी में मुकेश कपूर (आदिल हुसैन) नामक एक बड़ा हथियारों का व्यापारी भी है, जो भारतीय सेना के नौकरी छोड़ने वाले जवानों को अपने यहां नौकरी पर रखता है और उनसे सेना के राज जानता है, ताकि सेना की तमाम महत्वपूर्ण डील्स उन्हें मिल सकें। इस बीच पता लगता है कि जय ने, अभय के फर्जी साइन करके 22 लोगों की फोन कॉल्स को टैप किया था। अभय, जय का पीछा करते हुए लंदन जाते हैं। कई उलझे हुए सिरों वाली यह कहानी अपने आप में ही उलझ कर खत्म हो जाती है। जय यह स्पष्ट ही नहीं कर पाते कि उनके हाथ भला ऐसा क्या लग गया था। सिर्फ ‘ऊपर से नीचे तक सब चोर हैं’ जैसे डायलॉग बोलने से तो बात नहीं बनती न भाई। और सेना प्रमुख तो फिल्म में ईमानदार दिखाए गए हैं। तो भला जय उनके खिलाफ गुरिंदर से हाथ क्यों मिलाता है, यह समझ नहीं आता।

एक्टिंग के मोर्चे पर मनोज बाजपेयी का काम औसत ही लगा है, हालांकि इसमें उनका कोई दोष नहीं है। दोष है उनका किरदार और उनके संवाद लिखने वालों का। सिद्धार्थ काफी चार्मिंग लगे हैं, एक्टिंग भी उन्होंने ठीकठाक की है। पर रकुलप्रीत के साथ उनके रोमांस के दृश्य बेमानी लगे हैं क्योंकि दोनों के बीच किसी भी किस्म की केमिस्ट्री गायब है। भावहीन चेहरे के साथ पूजा चोपड़ा प्रभावित करती हैं, पर फिल्म में उनका काम सिर्फ अधिकारियों के सवालों का जवाब देना और उनके छोटे-मोटे ऑर्डर मानना है। नसीरुद्दीन शाह छोटे से रोल में प्रभावित करते हैं, पर उन्हें कहानी के जिस महत्वपूर्ण हिस्से का खुलासा करना था, वह उतना चौंकाने वाला नहीं है। अनुपम खेर और आदिल हुसैन के करने के लिए फिल्म में कुछ खास था नहीं।

फिल्म के एक दृश्य में मनोज, अनुपम खेर से सिद्धार्थ मल्होत्रा की बाबत पूछते हैं,‘यह मुझसे दो कदम आगे क्यों चल रहा है?’
अनुपम जवाब देते हैं,‘क्योंकि वह तुम्हारी तरह सोच रहा है।’

इस पर मनोज जो लब्बोलुआब निकालते हैं, वह है,‘फिर तो मुझे कुछ ऐसा करना होगा, जो मैं कभी नहीं करूंगा।’
फिल्म देखने के बाद एकदम यही डायलॉग नीरज पाण्डेय से बोलने का मन करता है कि,‘आपकी इतनी फिल्में देखने के बाद अब दर्शक भी काफी हद तक आपके पैंतरे समझने लगा है। अब आपको भी कुछ ऐसा करना होगा, जो आपने कभी न किया हो।’

यह कहते हुए बहुत निराशा होती है कि अय्यारी नीरज पाण्डेय की अब तक की सबसे कमजोर फिल्म नजर आती है। एक ख्याल यह भी आता है कि रिलीज से पहले यह फिल्म आर्मी अधिकारियों को भी दिखाई गई थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि उनके इशारे पर इस फिल्म पर जबर्दस्त कैंची चल गई। पर इसकी संभावना कम ही लगती है। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक अच्छा है। गीत साधारण हैं।

रेटिंग: 1.5

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