Paatal Lok Review: रोमांच की गहराइयों की थाह लेता 'पाताल लोक'
स्टार- 3 स्टोरी- ‘ये जो दुनिया है न दुनिया, ये एक नहीं, तीन दुनिया है। सबसे ऊपर स्वर्गलोक जिसमें देवता रहते हैं। बीच में धरती लोक जिसमें आदमी रहते हैं। और सबसे नीचे पाताल लोक, जिसमें कीड़े...
स्टार- 3
स्टोरी- ‘ये जो दुनिया है न दुनिया, ये एक नहीं, तीन दुनिया है। सबसे ऊपर स्वर्गलोक जिसमें देवता रहते हैं। बीच में धरती लोक जिसमें आदमी रहते हैं। और सबसे नीचे पाताल लोक, जिसमें कीड़े रहते हैं। वैसे तो यह शास्त्रों में लिखा हुआ है, पर मैंने वॉट्सएप पर पढ़ा था।’
पुलिस जीप चलाते हुए अपने जूनियर इमरान अंसारी (इश्वक सिंह) पर रौब झाड़ रहे इंस्पेक्टर हाथीराम चौधरी (जयदीप अहलावत) के इस ‘दिव्य ज्ञान’ के साथ वेब सिरीज ‘पाताल लोक’ का आगाज होता है। बात समझ में आती है, कि सिरीज का नाम भले ही ‘पाताल लोक’ हो, हमारा साबका तीनों ही लोकों में रहने वालों से होने वाला है। होता भी यही है, कहानी इस लोक से उस लोक के बीच फिसलती रहती है। धीमी गति से शुरू होने वाली यह सिरीज आखिर के एपिसोड्स में अपने पूरे शबाब पर आती है और चुम्बक की तरह दर्शक को बांधे रखने में सफल रहती है। इस सिरीज के जरिये बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा ने बतौर निर्माता वेब की दुनिया में कदम रखा है।
दिल्ली के आउटर जमना पार थाने में तैनात इंस्पेक्टर हाथीराम पिछले 15 साल से प्रमोशन की राह देख रहे हैं। उन्हें इंतजार है एक ऐसे केस का, जिसके जरिये उन्हें अपने ‘नंबर बढ़वाने’ का मौका मिल सके। अचानक एक दिन यह मौका उनकी गोद में आ गिरता है। शहर के मशहूर टीवी एंकर संजीव मेहरा (नीरज काबी) की हत्या की साजिश के जुर्म में चार आरोपियों- हथौड़ा त्यागी उर्फ विशाल त्यागी (अभिषेक बनर्जी), तोप सिंह उर्फ चाकू (जगजीत संधु) कबीर एम. (आसिफ खान) और मैरी लिंग्डो उर्फ चीनी (मेरेम्बम रोनाल्डो सिंह) को हाथीराम के थाना क्षेत्र से गिरफ्तार किया जाता है। केस सुलझाने का जिम्मा उन्हें मिलता है। चूंकि मामला स्वर्गलोक यानी संभ्रांत समाज से जुड़े एक व्यक्ति (संजीव) का है, इसलिए मीडिया और प्रशासन भी इस मामले में काफी रुचि ले रहा है। हाथीराम ने अपनी जांच शुरू ही की होती है कि मामला सुलझने की जगह और उलझ जाता है। आखिरकार यह केस सीबीआई को दे दिया जाता है और हाथीराम को सस्पेंड कर दिया जाता है। सीबीआई कुछ दिन की जांच के बाद एक नए निष्कर्ष पर पहुंच जाती है कि इसके तार आतंकवादियों से जुड़े हैं। हाथीराम को इस बात पर विश्वास नहीं होता। सस्पेंड होने के बावजूद वह खुद को इस मामले से दूर नहीं रख पाता। उधर संजीव इस उधेड़बुन में है कि आखिर उसकी हत्या की कोशिश कौन और क्यों कर सकता है।
सिरीज के लेखक सुदीप शर्मा हैं, जो इससे पहले ‘एनएच 10’ और ‘उड़ता पंजाब’ जैसी फिल्मों की स्क्रिप्ट लिख चुके हैं। संवादों में पैनापन है। किरदारों ने हरियाणवी और बुंदेलखंडी लहजों को पकड़ा भी सटीक ढंग से है। कुछ-कुछ जगहों पर कहानी की रफ्तार धीमी पड़ती है, पर जल्द ही संभल जाती है। कहानी में रफ्तार और रोमांच की खुराक तो जबर्दस्त है। हां, सिरीज में कुछ बिंदुओं पर नएपन की कमी जरूर अखरती है। क्लाईमैक्स भी बहुत प्रभावित नहीं करता।
अभिनय के लिहाज से अभिनेता जयदीप अहलावत बाजी मार ले जाते हैं। मूडी किशोर बेटे की नजरों में हीरो बनने की उनकी कोशिशें हों या थाने के जूनियर से उनकी सहानुभूति- उनके किरदार से एक सहज जुड़ाव सा हो जाता है। नीरज काबी भी अपनी भूमिका में जंचते हैं। आंखों से अभिनय करने वाले नीरज का किरदार पल-पल रंग बदलता है। संजीव मेहरा की पत्नी डॉली मेहरा का किरदार निभाने वाली स्वास्तिका मुखर्जी भी देर तक जेहन में कैद रह जाती हैं। उनकी मासूमियत, उनके जज्बात देर तक मन में शोर करते रहते हैं। हाथीराम की पत्नी रेनू चौधरी का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री गुल पनाग ने भी बखूबी अपनी भूमिका निभाई है। अभिषेक बनर्जी भी बेहद प्रभावी रहे। गायक अनूप जलोटा भी फिल्म में एक विशेष किरदार में हैं।
अविनाश अरुण और प्रोसित रॉय का निर्देशन भी कसा हुआ है। अविनाश अरुण और सौरभ गोस्वामी की सिनेमेटोग्राफी सिरीज को बेहद विश्वसनीय बनाती है। चित्रकूट हो या दिल्ली, उन्हें सही एंगल से दिखाने का हुनर क्या असर पैदा कर सकता है, इस सिरीज को देखकर आसानी से समझा जा सकता है। पाश्र्व संगीत भी फिल्म की प्रकृति के अनूरूप है।