'ठाकरे' को लेकर नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने कहा-' नफरत कर सकते हैं, प्यार कर सकते हैं, लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते'
महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में जिन्हें एक बड़ा तबका अपना मसीहा मानता रहा...जिनके बारे में हमेशा कहा जाता रहा कि महाराष्ट्र में उनकी अपनी सरकार चलती है...राजनीति में किसी पद पर न होते हुए भी सियासी...
महाराष्ट्र और खासकर मुंबई में जिन्हें एक बड़ा तबका अपना मसीहा मानता रहा...जिनके बारे में हमेशा कहा जाता रहा कि महाराष्ट्र में उनकी अपनी सरकार चलती है...राजनीति में किसी पद पर न होते हुए भी सियासी समीकरण हमेशा जिनके कहने पर बनते-बिगड़ते रहे...उन्हीं बाला साहब ठाकरे की कहानी अब जल्द ही बड़े पर्दे आने के लिए तैयार है।
शिवसेना सांसद संजय राउत द्वारा लिखी गई कहानी पर फिल्म 'ठाकरे' बन रही है जो 25 जनवरी को रिलीज होने वाली है। फिल्म में मशहूर अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने बाल ठाकरे की भूमिका निभाई है। वहीं अमृता राव उनकी पत्नी मीना ठाकरे के किरदार में नजर आएंगी। निर्माता व कलाकारों की मानें तो हमेशा विवादों में रहे बाल ठाकरे के जीवन के अनदेखे पहलू भी फिल्म में देखने को मिलेंगे। बाल ठाकरे को पर्दे पर उतारने वाले नवाज उनके बारे में कहते हैं कि, 'आप बाला साहब से नफरत कर सकते हैं, प्यार कर सकते हैं लेकिन नजरअंदाज नहीं कर सकते।' इस सवाल पर कि उनके किरदार में खुद को ढालने की चुनौती कितनी बड़ी थी, नवाज कहते हैं कि, 'उन्हें गए ज्यादा दिन नहीं हुए। वह अब भी लोगों के जेहन में हैं इसलिए दर्शकों को कुछ भी नहीं दिखाया जा सकता था। बहुत सारे विवाद भी रहे लेकिन एक बात वह कहते थे जो फिल्म में भी दिखेगी कि, 'मैं जब भी जयहिन्द जय महाराष्ट्र कहता हूं तो जयहिन्द पहले और जय महाराष्ट्र बाद में कहता हूं क्योंकि मेरे लिए देश पहले है, राज्य बाद में।'
एक दशक से ज्यादा समय तक मेहनत करके नवाज ने फर्श से अर्श का सफर तय किया है। वह कहते हैं कि ग्लैमर इंडस्ट्री में जब न आपके पास न लुक है, न कद काठी, न गॉडफादर तो जो करना है खुद ही करना है। 1991 में ही सोच लिया था कि खुद पर हमेशा भरोसा करूंगा।
स्पेस मिला तो सिकुड़ गई सोच:
फिल्मों के नाम पर होने वाले विवाद पर नवाज कहते हैं कि फिल्म सिर्फ फिल्म होती है उसे व्यक्तिगत नहीं लेना चाहिए और कलाकार को फिल्म में सबकुछ करना पड़ता है। वह कहते हैं कि हम स्वांग करते हैं, उससे व्यक्तिगत जीवन को जोड़ना गलत है। नवाज यहां सोशल मीडिया का जिक्र करते हैं कि कैसे आज जरा-जरा सी बात पर लोग जजमेंटल हो जाते हैं, ट्रोलिंग शुरू कर देते हैं, जबकि यह गलत है। अभिव्यक्ति के लिए जितना लोगों को स्पेस मिला है, उतनी ही उनकी सोच छोटी हो गई है।
बाला साहब का सपोर्ट सिस्टम थीं मीनाताई: अमृता राव
फिल्म में बाल ठाकरे की पत्नी मीना ठाकरे का किरदार निभा रही अमृता कहती हैं कि पहली बार ऐसे एक परिपक्व महिला की भूमिका चुनौतीपूर्ण थी, वह भी उस महिला को स्क्रीन पर दिखाना जो महाराष्ट्र के सबसे ताकतवर परिवार से होते हुए भी हमेशा पर्दे के पीछे रही। मीनाताई के पारम्परिक मराठी महिला किरदार में उतरने के लिए अमृता ने 50-60 के दशक की कई ब्लैक एंड व्हाइट मराठी फिल्में देखीं। उनका कहना है कि बाला साहब जैसी शख्सियत की पत्नी होना आसान नहीं है। मातोश्री में हर दिन सैकड़ों लोग आते थे और उन सबके लिए खानेपीने का इंतजाम उन्हें ही करना होता था। बाला साहब का बहुत बड़ा सपोर्ट सिस्टम थीं, जिनका कहीं कोई मूल्यांकन नहीं हुआ।
फिक्शन की गुंजाइश ही नहीं: संजय राउत
निर्माता व लेखक संजय राउत ने लम्बा अरसा बाला साहब के साथ गुजारा है और अपने इन्हीं अनुभवों को वह फिल्म में दिखाएंगे। संजय कहते हैं कि फिल्म में कहीं कोई फिक्शन नहीं है। बाला साहब की जिन्दगी अपने आप में एंटरटेनमेंट फिल्म थी। जैसा लोग समझते थे, दरअसल वह वैसे नहीं थे। इस देश में मुख्यमंत्री, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बन सकते हैं लेकिन बाला साहेब बनना आसान नहीं। 1962 से 1994 तक का समय के कुछ प्रसंग इस फिल्म में दिखेंगे। 'मेरे राज्य मेरे लोग' उनका नारा था। जो उन्होंने तब किया, वही क्षेत्रीय पार्टियां अब 50 साल बाद कर रही हैं।