MOVIE REVIEW: पढ़ें मार्क फेल्ट: दि मैन हू ब्रॉट डाउन दि व्हाइटहाउस फिलम् का रिव्यू
वॉटरगेट कांड 70 वें दशक के अमेरिका का सबसे बड़ा और चर्चित मामला था। इसका खुलासा होने के बाद वहां के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था। इस फिल्म को रिलीज करने के लिए यह समय सबसे ज्यादा...
वॉटरगेट कांड 70 वें दशक के अमेरिका का सबसे बड़ा और चर्चित मामला था। इसका खुलासा होने के बाद वहां के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन को इस्तीफा देना पड़ा था। इस फिल्म को रिलीज करने के लिए यह समय सबसे ज्यादा मुफीद है क्योंकि मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का नाम भी मेफेयर होटल कांड नामक मामले में लिया जा रहा है। इसकी चर्चाओं का बाजार गर्म है। कहा जा रहा है कि साल 2016 में इस होटल में एक डील हुई थी जिसमें तय हुआ था कि ट्रंप कुछ विशेष फायदों के एवज में रूस पर लगे प्रतिबंध हटा देंगे। इस डील में ट्रंप को एक विशेष धनराशि ब्रोक्रेज फीस के रूप में देने की पेशकश भी की गई थी। हालांकि अभी यह मामला पूरी तरह सुलझा नहीं है और इस मामले में खुलासा चाहे जो भी, पर एक बात तय है कि इतिहास एक बार फिर खुद को दोहरा रहा है। बहरहाल, पीटर लैंड्समैन निर्देशित फिल्म मार्क फेल्ट इस राजनैतिक षड़यंत्र को लेकर बुनी गई एक गंभीर राजनैतिक थ्रिलर फिल्म है। इसमें मामले से जुड़ी घटनाओं को एक मुखबिर ‘डीप थ्रोट’ के चश्मे से देखने की कोशिश की गई है। डीप थ्रोट यानी अमेरिकी खूफिया एजेंसी एफबीआई का वह एजेंट, जिसने वॉटरगेट मामले के बारे में वॉशिंगटन पोस्ट मीडिया हाउ स को गुप्त तरीके से सूचनाएं दी थीं।
फिल्म के पहले दृश्य के साथ ही तनाव गहराने लगता है। अमेरिका में हालात बदल रहे हैं। एफबीआई के निदेशक होवर की अचानक रहस्मय हालातों में मौत हो जाती है। संस्था में तीस साल से काम कर रहे मार्क फेल्ट (लिएम नीसन) को एहसास होता है कि कुछ तो है, जो ठीक नहीं है। आश्चर्यजनक रूप से एफबीआई का कार्यकारी निदेशक बनाया जाता है एल. पेट्रिक ग्रे (मार्टन सिसोकस) को, जो कि इससे पहले नौसेना के अधिकारी थे। यह सामान्य बात नहीं थी क्योंकि एफबीआई के निदेशक की जिम्मेदारी आम तौर पर एफबीआई के ही किसी भीतरी व्यक्ति को दी जाती है। जाहिर है, ग्रे, दरअसल राष्ट्रपति के प्यादे थे। उनके आने के बाद एफबीआई में अव्यवस्था की स्थिति पैदा होने लगती है। इस बीच वॉटरगेट कांड हो जाता है। इसकी जांच चल ही रही होती है कि ग्रे, मार्क को निर्देश देता है कि हमें 48 घंटों के अंदर जांच खत्म करनी होगी जिसके बाद यह फाइल बंद कर दी जाएगी। इन सारे वाकयों के बीच वॉशिंगटन पोस्ट अखबार में अचानक वॉटरगेट कांड से जुड़ी खबरें छपने लगती हैं। इन खबरों की जानकारी अखबार तक ‘डीप थ्रोट’ नामक कोई अंजान शख्स पहुंचा रहा है। कौन है यह डीप थ्रोट और वह क्यों ऐसा कर रहा है? इसमें उसका क्या फायदा है? क्या वह कभी दुनिया के सामने आता है? इन सभी सवालों का फिल्म देती है यह फिल्म।
लिएम नीसन अनुभवी एक्टर हैं और उन्होंने मार्क फेल्ट के किरदार को जीवंत बना दिया है। एक्टिंग के स्तर पर सभी कलाकारों का काम अच्छा है। मार्क के एफबीआई से भावनात्मक जुड़ाव, उसे बेबस होते देखने की विवशता, आदि पहलुओं को नीसन ने बखूबी जिया है। एक ईमानदार और सतर्क व्हिसिलब्लोअर (मुखबिर) की प्रतिबद्धता में कितनी ताकत होती है, यह इस फिल्म को देखकर पता चलता है। फिल्म का एक और दृश्य बेहद प्रभावी बन पड़ा है जिसमें व्हाइट हाउस का एक अधिकारी जॉन डीन (मिशेल सी. हॉल) मार्क को फोन करके कहता है कि एफबीआई में कोई गद्दार है जो मीडिया को गुप्त सूचनाएं दे रहा है। इस पर मार्क हैरान होकर पूछते हैं कि,‘आप यह सब मुझसे क्यों पूछ रहे हैं?’ साथ ही मार्क, जॉन को यह भी एहसास कराता है कि एफबीआई को किसी भी काम के लिए किसी से भी अनुमति लेने की जरूरत नहीं है। न राष्ट्रपति से, न व्हाइट हाउस से और न ही सीआईए से। और न ही यह संस्था किसी के इशारों पर काम करती है।
कुल मिलाकर, राजनैतिक, समसामयिक और कूटनीतिक विषयों में रुचि रखने वाले लोगों को मार्क फेल्ट एक दिलचस्प फिल्म लग सकती है। मनोरंजक न होते हुए भी इसमें एक अलग तरह की रोचकता है। हल्के-फुल्के मनोरंजन की तलाश में सिनेमाघर जाने वालों को यह बोझिल लग सकती है। तो अगर ‘पॉपकॉर्न मनोरंजन’ परोसने वाली फिल्मों से इतर गंभीर राजनैतिक और बायोग्राफी फिल्मों में आपकी रुचि है, तो मार्क फेल्ट एक अच्छा विकल्प है।