Mirzapur 2: सीरीज के मेकर्स ने उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक से मांगी माफी
वेब सीरीज मिर्जापुर 2 के मेकर्स ने उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास 'धब्बा' को एक सीन में दिखाने के लिए उनसे माफी मांगी है। हाल ही में सुरेंद्र ने सीरीज के सीन में उनके उपन्यास को...
वेब सीरीज मिर्जापुर 2 के मेकर्स ने उपन्यासकार सुरेंद्र मोहन पाठक के उपन्यास 'धब्बा' को एक सीन में दिखाने के लिए उनसे माफी मांगी है। हाल ही में सुरेंद्र ने सीरीज के सीन में उनके उपन्यास को दिखाने पर आपत्ति जाहिर की थी। इसके साथ ही उन्होंने मिर्जापुर 2 के मेकर्स को नोटिस भी भेजा था। उन्होंने कहा था कि मेकर्स ने उनकी छवि को धूमिल करने का प्रयास किया है।
रितेश सिधवानी और फरहान अख्तर के प्रोडक्शन हाउस एक्सेल एंटरटेनमेंट के ट्विटर हैंडल पर एक लेटर शेयर पोस्ट शेयर किया गया, जिसमें लिखा है, 'प्रिय सुरेंद्र मोहन पाठक, यह आपके द्वारा भेजे गए नोटिस से हमारे संज्ञान में आया है कि हाल ही में रिलीज वेब सीरीज मिर्जापुर 2 में एक सीन है, जिसमें सत्यानंद त्रिपाठी नाम का किरदार 'धब्बा' उपन्यास को पढ़ रहा है, जिसे आपने लिखा है। इसके साथ ही उस सीन में उपयोग हुए वॉयसओवर से आपकी और आपके प्रशंसकों की भावनाएं आहत हुई हैं।'
'हम इसके लिए आपसे माफी मांगते हैं और आपको बताना चाहते हैं कि यह किसी भी तरह से आपकी प्रतिष्ठा को धूमिल करने या नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं किया गया था। हम जानते हैं कि आप ख्यातिप्राप्त लेखक हैं और आपका काम हिंदी क्राइम फिक्शन साहित्य की दुनिया में बहुत महत्व रखता है।'
— Excel Entertainment (@excelmovies) October 30, 2020
पोस्ट में आगे लिखा है, 'हम आपको सुनिश्चित करना चाहते हैं कि इसे सुधार लिया जाएगा। हम तीन हफ्ते के भीतर उस सीन में बुक कवर को ब्लर कर देंगे या वॉइसओवर को हटा देंगे। प्लीज अनजाने में आपकी भावनाओं को आहत करने के लिए हमारी माफी को स्वीकार करें।'
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बताते चलें कि सुरेंद्र मोहन पाठक ने मिर्जापुर 2 के मेकर्स नोटिस भेजते हुए आरोप लगाया था कि सीरीज ने उनकी छवि खराब करने की कोशिश की है। मिर्जापुर के एक सीन में उनके लिखे उपन्यास ‘धब्बा’ के कंटेंट को गलत तरीके से पेश किया गया है। उनके द्वारा भेजे गए नोटिस में कहा गया, “मिर्जापुर 2 के एक सीन में किरदार सत्यानंद त्रिपाठी हिंदी का जो उपन्यास पढ़ रहे हैं ‘धब्बा’ वह उनका है, जो 2010 में प्रकाशित हुआ था। लेकिन इस पात्र ने जो कुछ भी कहा है वह उनके लिखे उपन्यास ‘धब्बा’ में है ही नहीं। संवाद के तौर पर जो कुछ भी उस पात्र ने बोला है वह सिवाय पॉर्न के और कुछ नहीं हो सकता।'