EXCLUSIVE: सोशल मीडिया के कम फॉलोअर्स पर मनोज बाजपेयी ने किया रिएक्ट, बताया हॉलीवुड का भी प्लान
फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' (Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai) को लेकर वाहवाही लूट रहे अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) और निर्देशक अपूर्व सिंह कार्की से हिन्दुस्तान ने की खास बातचीत...

अभिनेता मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) ने अपनी दमदार अदाकारी से दर्शकों के बीच में एक खास पहचान बनाई है। मनोज बाजपेयी इन दिनों फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' (Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai) को लेकर वाहवाही लूट रहे हैं। ओटीटी के बाद फिल्म थिएटर्स में रिलीज हुई है और ऐसे में फिल्म की सक्सेस को लेकर मनोज बाजपेयी और फिल्म के निर्देशन अपूर्व सिंह कार्की ने हिन्दुस्तान से खास बातचीत की। इस दौरान दोनों ने कई सवालों के जवाब दिए।
'सिर्फ एक बंदा काफी है' के लिए अभी तक की सबसे यादगार तारीफ?
मनोज बाजपेयी: हमने नहीं सोचा था कि ऐसी प्रतिक्रिया मिलेगी। ये फिल्म अब फिल्म नहीं रह गई है, ये उससे आगे बढ़ गई है। ऐसा कभी कुछ सोचा नहीं था, कई मैसेज आ रहे हैं, जो दिल को छू गए हैं। कई तो कह रहे हैं कि आप ही हमारा केस ले लें। ये दिखाता है कि लोगों को न सिर्फ फिल्म अच्छी लगी, बल्कि वो उस दुनिया में खो गए थे। जो सबसे अच्छी बात है। ये अपूर्व (फिल्म के निर्देशक) और उनकी टीम ने अचीव किया है।
अपूर्व: जैसा कि मनोज सर ने कहा, वैसे ही मुझे भी कई कॉल और मैसेज आए हैं। लोग बहुत तारीफ कर रहे हैं और ये सुनकर बहुत अच्छा लग रहा है। ट्विटर पर भी आप देखेंगे कि ट्रेंड्स चल रहे हैं। मुझे जो बात सबसे अच्छी लगी कि यहां हम जीत गए वो ये कि फिल्म का मैसेज लोगों तक पहुंचा है। वो बीच में कहीं गुम नहीं हो गया है।
'सोलंकी' के किरदार के लिए तैयारी कैसे की?
मनोज बाजपेयी: हर फिल्म पे, हर किरदार में इंसान अपनी मेहनत करता है और उस बारे में बात करता है। तो मैं अगर इस बारे में कहूंगा कि तो लोगों को लगता है कि ये तो हमेशा ही बोलते हो, पता नहीं करते हो कि नहीं करते हो। हालांकि हकीकत में मेहनत बहुत होती है, मेरा छोड़ दीजिए, प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और राइटर इन सभी का काम बहुत अहम होता है। रिसर्च बहुत जरूरी होती है, आप एक भी टेक्निकल चीजें मिस नहीं कर सकते हैं। कोर्ट कचहरी बहुत हैं, तो जरा सी भी गलती पर लोग आपका कॉलर पकड़ लेंगे। बाकी मेरी तैयारी, मेरी बाकी फिल्मों जैसी ही रही। मैंने जीवन में एक चीज सीखी है कि निर्देशक को ये नहीं जानना कि मैंने तैयारी कैसे की, उसे ये देखना है कि आपने आखिर में क्या किया। ये मुझे बहुत साल पहले शेखर कपूर ने सिखाई थी।
अपूर्व: सर की एक्टिंग के बारे में तो सभी जानते हैं। सर, हर दिन एक ही वक्त पर आते थे और खूब मेनहत करते थे। सिर्फ सेट पर ही नहीं, बल्कि मेरे घर पर भी प्री प्रोडक्शन में मेहनत हुई है। करीब 3 महीने मेरे घर पर खूब काम हुआ। सर की मेहनत तो पूरी इंडस्ट्री जानती है। बाकी इस फिल्म के 18 ड्राफ्ट्स तैयार किए गए थे।
मनोज बाजयेपी संग काम करना चैलेंजिग ज्यादा था या आसान ज्यादा था?
अपूर्व: देखिए मेरे साथ दोनों ही चीजें रही हैं, जब आप मनोज बाजपेयी जैसे उम्दा एक्टर संग काम करते हैं तो आपका दिल जोर से धड़कता है। टफ इसलिए रहा क्योंकि मेरी पहली फिल्म है, मेरे पर प्रेशर है कि ये मेरे बारे में क्या सोच रहे होंगे। आसान इसलिए रहा कि ये फिल्म को अपना लेते हैं, वो इसके हर पार्ट का हिस्सा बन जाते हैं। ये बहुत कम एक्टर्स करते हैं, और जब ऐसा होता है तो उनका डर खत्म हो जाता है। मेरा आधा डर वहीं खत्म हो गया था जब ये दिखता है कि टाइम की कोई दिक्कत नहीं है।
जब कोई ऐसी फिल्म आती है, जिससे लोगों की भावनाएं जुड़ी होती हैं तो विवाद होने के भी चांस बढ़ जाते हैं। आपको कभी कोई धमकी आदि मिली?
मनोज: सोशल मीडिया पर अक्सर ऐसा होता है कि आपको किसी न किसी चीज पर ऐसा होता है। बाकी फोन पर मैंने ऐसी सेटिंग की हुई है कि जो नंबर मेरे पास सेव नहीं है, वो आते ही अपने आप कट जाता है। क्योंकि हर कॉल आप उठा नहीं सकते हो। सच कहूं तो कई वॉट्सऐप मैसेज आदि आते हैं, कि आपकी फिल्म देखी या फिर इस फंक्शन आदि में आएं। लेकिन मैंने इन सब चीजों पर ध्यान नहीं दिया और काम को चुना है।
सोशल मीडिया फॉलोअर्स आपको कितना प्रभावित करते हैं? लोग पसंद करते हैं लेकिन फॉलो कम करते हैं?
मनोज: अगर आप अपनी ताकत को फॉलोअर्स के नंबर्स से जोड़ेंगे तो यानी आप में कहीं कमी है। अगर सिर्फ फॉलोअर्स से आपकी ताकत बनती है तो इसका मतलब है कि आपने अपने काम को समझा ही नहीं है। नंबर गेम तो आप भी पूरी तरह से समझते हैं, कितना असली है और कितना बूस्ट अप है, सभी जानते हैं। मैं उन नंबर्स को अपनी जिंदगी को डिफाइन नहीं करने देता है। न सक्सेस और न ही फेलियर, ये मेरे काम को नहीं नांप सकते हैं।
'बंदा' की तरह ही रियल लाइफ में कभी कोई फैन मूमेंट?
मनोज: बेशक ऐसा होता है, जैसे अगर मेरे सामने श्री अमिताभ बच्चन जी आ जाएं तो हम उनके पैर भी छूते हैं, उन्हें प्रणाम भी करते हैं। देखते हैं कि वो कैसे बोल चाल रहे, कैसे उठ बैठ रहे। लेकिन जैसे ही कैमरा चालू होता है तो वो एक किरदार निभा रहे और हम एक किरदार निभा रहे। ये फैन मूमेंट तो बहुत आम है, और ऐसा अक्सर कई लोगों के साथ होता है। अमित जी के साथ 3-4 काम कर चुके हैं, लेकिन जो इज्जत उन्हें देनी है, वो उसके हकदार हैं। हमारे बड़े अच्छे संबंध हैं, लेकिन कैमरे के सामने प्रोफेशनल हो जाते हैं।
बैंडिट क्वीन से बंदा तक, बतौर एक्टर और पर्सन क्या अंतर महूसस करते हैं?
मनोज: मुझे लगता है कि बदलाव बहुत जरूरी है और वो होता ही रहता है। मैं बहुत ही गुस्सैल स्वभाव का इंसान था, लेकिन अब 80 प्रतिशत गुस्सा मेरा जा चुका है। पहले मैं बहुत ही रेस्टलेस रहता था, आज से करीब 20 साल पहले तक। कभी एक जगह बैठता नहीं था, उस वक्त सिगरेट भी पीता था तो एक के बाद एक वो भी पीता रहता था। हमें कोई बताने वाला या रास्ता दिखाने वाला नहीं था। हम फील्ड में ही तब जाते थे, जब काम होता था। हम ऐसे किसी परिवार के नहीं थे, जहां शूटिंग बचपन से देखी हो। तो हमें खुद गलती करनी होती थी और सीखना होता था। लेकिन एक खास बात है कि जिन लोगों को मैं 20-30 साल पहले जानता था, उन से मैं आज भी जुड़ा हूं और यही मेरा सबसे बड़ा अचीवमेंट है।
हॉलीवुड को लेकर कोई प्लान?
मनोज: वो सात समंदर पार की दुनिया है, मेरी टीम है वहां पर। जो काम आता है, वो अभी तक मुझे कुछ पसंद नहीं आया है। लेकिन जब भी कुछ ऐसा काम आएगा जो पसंद आएगा तो फिर मैं जरूर काम करूंगा। चाहें फिर वो तमिल हो, तेलुगू हो, बंगाली हो कुछ भी हो। मैं काम करना चाहूंगा। बात अमेरिका की करें तो हमारे जैसे लोगों के लिए काफी कम लिखा जाता है और कुछ अच्छा आएगा तो जरूर करेंगे।
'सोलंकी' को लेकर आगे कोई सीरीज या सीक्वल लाने का कुछ प्लान है?
अपूर्व: अभी तो कोई ऐसा प्लान नहीं है।