Hindi Newsएंटरटेनमेंट न्यूज़how legendary singer mohammad rafi works in saloon of brother and achieve success

फ्लैशबैक: कैसे नाई की दुकान में काम सीखते हुए सिंगर बने मोहम्मद रफी, पढ़ें- बेहद दिलचस्प है सफर

भारत के महान गायक मोहम्मद रफी की आवाज के दीवाने आज भी हैं। भले ही उन्हें गुजरे 40 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन रफी के गाने सुनकर आज भी यूं लगता है कि वह जैसे इन्हीं फिजाओं में आज भी हैं।...

Surya Prakash हिन्दुस्तान , मुंबईSun, 31 Jan 2021 10:29 AM
हमें फॉलो करें

भारत के महान गायक मोहम्मद रफी की आवाज के दीवाने आज भी हैं। भले ही उन्हें गुजरे 40 साल से ज्यादा का वक्त हो गया है, लेकिन रफी के गाने सुनकर आज भी यूं लगता है कि वह जैसे इन्हीं फिजाओं में आज भी हैं। मोहम्मद रफी ने गायकी में बड़ा मुकाम हासिल किया था, लेकिन यह कोई रातोंरात हुआ चमत्कार नहीं था। उनकी असल जिंदगी को देखें तो वह बेहद साधारण परिवार से थे। यहां तक कि उनके बड़े भाई सलून चलाते थे। मोहम्मद रफी का पढ़ने में ज्यादा मन नहीं था तो उनके पिता ने यह सोचकर कि बिगड़ने से अच्छा है कि वह कुछ काम करें। ऐसा सोचकर उन्होंने मोहम्मद रफी को बड़े भाई के सलून में ही काम सीखने के लिए भेज दिया था।

भले ही पिता ने रफी की प्रतिभा को नहीं समझा था, लेकिन उनका जुनून कायम रहा और वह दुकान पर बैठे-बैठे ही किसी भी चीज को बजाते हुए गाते रहते थे। लाहौर में भाई की दुकान पर काम करते हुए मोहम्मद रफी यूं ही रियाज करते रहे। फिर अचानक उनकी मुलाकात एक म्यूजिक डायरेक्टर से हुई, जिसने उन्हें एक पंजाबी फिल्म के लिए गाने का मौका दिया। अब तो मोहम्मद रफी को उड़ान मिल चुकी थी और उन्होंने अपने पिता से अनुमति मांगी और 1944 में मुंबई के लिए निकल गए। रफी के साथ उनके दोस्त हमीद भी गए। उन्होंने ही उन्हें नौशाद अली से मिलवाया। उस दौर में म्यूजिशियन नौशाद अली का बड़ा नाम था। उन्होंने कोरस में कुछ लाइनों को गाने के लिए रफी को मौका दिया था। यह गाना था 'पहले आप' मूवी का 'हिंदुस्तान के हम हैं, हिंदुस्तान हमारा'। 

कुछ वक्त के बाद नौशाद साहब ने एक और गाने के कोरस में मोहम्मद रफी को मौका दिया था। इस गाने को के.एल. सहगल ने गाया था, जो मोहम्मद रफी के आदर्श थे। हालांकि उन्हें पहला बड़ा ब्रेक फिरोज निजामी ने दिया था। उन्होंने 1947 में रिलीज हुई फिल्म जुगनू में मोहम्मद रफी को मौका दिया था। गाना था, '.यहां बदला वफा का वेबफाई के सिवा क्या है'। यह गाना दिलीप कुमार और नूर जहां पर फिल्माया गया था। यह युगल गीत काफी लोकप्रिय हुआ था। इसके बाद मोहम्मद रफी ने करियर में पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी पहली सुपर हिट मूवी थी, बैजू बावरा। इस फिल्म के गाने बेहद लोकप्रिय हुए और मोहम्मद रफी की लोकप्रियता भी सातवें आसमान पर पहुंच गई थी।

मोहम्मद रफी ने भले ही करियर की शुरुआत नौशाद जैसे म्यूजिक डायरेक्टर के साथ की थी, लेकिन उन्होंने लाइफ में तमाम कम्पोजर्स के साथ गाया। एस.डी बर्मन, शंकर-जयकिशन, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, ओपी नैय्यर और कल्य़ाणजी आनंदजी समेत अपने दौर के लगभग सभी लोकप्रिय संगीतकारों के साथ मोहम्मद रफी ने काम किया था। मोहम्मद रफी की सफलता की यह कहानी उनकी बहू यास्मीन खालिद रफी ने अपनी पुस्तक में साझा की है।

लेटेस्ट Hindi News, Entertainment News के साथ-साथ TV News, Web Series और Movie Review पढ़ने के लिए Live Hindustan App डाउनलोड करें।
ऐप पर पढ़ें