MOVIE REVIEW: क्या है स्टार बनने की कीमत ‘फन्ने खां’?
कलाकार -अनिल कपूर,ऐश्वर्या राय बच्चन,राजकुमार राव,पीहू सैंड निर्देशक- अतुल मांजरेकर मूवी टाइप- कॉमिडी,ड्रामा,म्यूजिक स्टार- 2.5 हमारे देश की बहुत सारी गलियों में फन्ने खां हैं।...
कलाकार -अनिल कपूर,ऐश्वर्या राय बच्चन,राजकुमार राव,पीहू सैंड
निर्देशक- अतुल मांजरेकर
मूवी टाइप- कॉमिडी,ड्रामा,म्यूजिक
स्टार- 2.5
हमारे देश की बहुत सारी गलियों में फन्ने खां हैं। जिन्हें मौका मिले, तो वे अपनी काबिलीयत से सारी दुनिया को हैरान कर सकते हैं। इन हुनरमंदों की आंखों में पल रहे सपनों को सच बनाने के लिए इनके माता-पिता रात दिन एक कर देते हैं। पर इनमें से कितनों को स्टारडम का दीदार हो पाता है? फिल्म ‘फन्ने खां’ ऐसी ही एक हुनरमंद लड़की लता की कहानी है। लचर स्क्रिप्ट और लड़खड़ाते निर्देशन वाली इस फिल्म को इसके कलाकार अपनी जबर्दस्त एक्टिंग के बलबूते ठीकठाक मनोरंजन करने लायक बना ले गए हैं।
कहानी-
प्रशांत (अनिल कपूर) एक छोटी सी फैक्ट्री में काम करता है और एक छोटे से ऑर्केस्ट्रा का मुख्य गायक भी है। प्रशांत कभी मोहम्मद रफी की तरह बड़ा गायक बनना चाहता था पर जब ऐसा नहीं हो पाता तो वह हकीकत को स्वीकार कर लेता है और अपनी बेटी लता(पिहू संड) के जरिये अपना सपना पूरा करना चाहता है। प्रशांत को लोग फन्ने खां कहते हैं। लता अपने पिता को बिल्कुल पसंद नहीं करती है। उसके दोस्त उसे समझाते हैं कि आजकल रियालिटी शो में आवाज से ज्यादा महत्व स्टाइलिंग और हाव-भाव का है। लता इसी को सच मान खुद को अत्याधुनिक बनाने की होड़ में जुट जाती है। पर आधुनिक कपड़ों और ‘शीला की जवानी’ जैसे गाने के चयन से लता को मिलते हैं ‘मोटी’ और ‘भारी परफॉर्मेंस’ जैसे कमेंट। ‘क्या लता का ‘लता मंगेशकर’ बनने का सपना पूरा होगा?’ ‘और होगा तो किस कीमत पर?’ इन्हीं सवालों का जवाब देती है यह फिल्म।
एक्टिंग
एक्टिंग के मामले में अनिल कपूर ने बेहद भावपूर्ण अभिनय किया है। राजकुमार राव की कॉमिक टाइमिंग हमेशा की तरह जबर्दस्त है। एक बड़ी स्टार गायिका बेबी सिंह का किरदार तो ऐसा लगता है मानो ऐश्वर्य राय के लिए ही खास तौर पर डिजाइन किया गया हो। वह बेहद खूबसूरत लगी हैं और उनके हिस्से में कुछ अच्छे संवाद भी आए हैं मसलन,‘खूबसूरत है, तो टैलेंटेड तो हो ही नहीं सकती, जरूर गलत तरीकों से आगे बढ़ी होगी!’
जिन दृश्यों में ऐश्वर्य और राजकुमार राव एकसाथ आए हैं, मनोरंजन की जमकर बारिश हुई है। फिल्म में हालात कुछ ऐसे बनते हैं कि अनिल कपूर, ऐश्वर्य राय को किडनैप कर लेते हैं। पर सवाल यह उठता है कि बेटी का सपना पूरा करने के लिए ‘किसी भी हद तक जाने’ की परिभाषा क्या है? किसी को किडनैप कर लेना? वैसे भी, इस तरीके से किसी प्रतिभाशाली कलाकार को मौका सिर्फ किसी बॉलीवुड फिल्म में ही मिल सकता है, हकीकत इससे कोसों दूर है।
सिनेमैटोग्राफी
फिल्म की शूटिंग असल लोकेशंस में की गई है, जो बेहद प्रभावी लगी है। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। कुछ संवाद हंसाते हैं, कुछ दृश्य भावुक करते हैं। पर फिर भी कुछ कमी महसूस होती है, जो इसे एक बेहतरीन फिल्म बनने से रोके रखती है। कई सवाल अधूरे रह जाते हैं, मसलन,‘लता, अपने पिता फन्ने खां से आखिर इतनी उखड़ी-उखड़ी क्यों रहती है?’ जबकि उसके पिता तो अपनी बेटी के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार रहते हैं।
यह पिता कोई ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ वाले पिता की तरह मारपीट करने वाले और संकुचित मानसिकता के तो नहीं हैं! जबकि लता की उम्र भी इतनी कम नहीं है कि वह अपने पिता की भावनाओं को समझ न सके। इसी तरह फिल्म संदेश क्या देना चाहती है, इसे लेकर भी इसे बनाने वाले जरा भ्रमित नजर आते हैं।
संगीत और संवाद
संगीत में सफलता के लिए कितनी मेहनत, कितने रियाज की जरूरत है, इस पर फिल्म कोई बात नहीं करती। लता कितनी अच्छी गायिका है, यह हम सिर्फ फिल्म के किरदारों से सुनते हैं। बेहतर होता, दर्शकों को यह विश्वास फिल्म के शुरुआती हिस्से में किसी बेहतरीन गाने (लता पर फिल्माए गए) से दिलाया जाता। ‘फू बाई फू’ गीत से यह कोशिश की गई है, पर यह गीत इतना मजबूत नहीं है कि लता को स्थापित करता। फिर बीच-बीच में कुछ ऑडिशंस के दृश्यों में निर्णायक लता के गाए गानों के बारे में यह भी कहते हैं कि,‘फील नहीं था’। अब यह सुनकर दर्शक यह तो यही सोचेगा न कि लता इतनी प्रतिभाशाली है भी या सिर्फ यूं ही स्टार बनना चाहती है।
फिल्म के एक दृश्य में दिव्या दत्ता अनिल कपूर से पूछती हैं,‘क्या स्टार बनना जरूरी है?’ यह एक बहुत बड़ा सवाल है। ऐसा भी कहा जा सकता है कि क्या स्टार गायक की सिर्फ एक ही परिभाषा है? रोशनी और धुंए से भरे मंच के ऊपर लंबे से माइक पर गाने वाले गायक की? शायद नहीं। फिल्म के ‘हल्का हल्का’, ‘अच्छे दिन’ और ‘मोहब्बत’ जैसे गीत अच्छे हैं।