अध्ययन सुमन ने उठाई नेपोटिज्म पर आवाज, कहा- सिर्फ बॉलीवुड में ही नहीं हर जगह यह गंद फैला है
बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही बॉलीवुड इंडस्ट्री में नेपोटिज्म पर जंग छिड़ी हुई है। हर कोई सामने आकर इसपर अपनी राय रख रहा है। नेपोटिज्म पर बात तब उठी जब कंगना रनौत ने इसके खिलाफ...
बॉलीवुड एक्टर सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद से ही बॉलीवुड इंडस्ट्री में नेपोटिज्म पर जंग छिड़ी हुई है। हर कोई सामने आकर इसपर अपनी राय रख रहा है। नेपोटिज्म पर बात तब उठी जब कंगना रनौत ने इसके खिलाफ आवाज उठाई। हालांकि, नेपोटिज्म केवल बॉलीवुड में ही है, इस बात से शेखर सुमन के बेटे अध्ययन सुमन सहमत नहीं होते हैं। अध्ययन सुमन ने बॉलीवुड में फिल्म ‘हाल-ए-दिल’ (2008) से डेब्यू किया था। इसके बाद उन्हें फिल्म ‘राज’ में अच्छा-खासा रोल मिला। ईटाइम्स से बातचीत में अध्ययन सुमन ने अपने पर्सनल स्ट्रगल को लेकर बात की। साथ ही उन्होंने कहा कि नेपोटिज्म सब जगह है, केवल एक जगह ही नहीं।
अध्ययन सुमन कहते हैं कि स्टार किड्स पर भी प्रेशर होता है खुद को साबित करने का। अच्छा काम करने का। उनका भी अपना स्ट्रगल होता है। बॉलीवुड में मूवी माफिया चलता है। हमारे देश में बहुत ही टिपिकल सोच है। हर कोई एक चीज के पीछे भागता है बिना उसका सही और असली मतलब समझे। नेपोटिज्म हर जगह है। मुझे समझ नहीं आ रहा है कि इसे लेकर केवल बॉलीवुड इंडस्ट्री पर ही क्यों सवाल उठाए जा रहे हैं। और जगह भी लोग ग्रुप बनाते हैं, कैंप्स बनाते हैं, अपने लोगों को प्रायॉरिटी देते हैं, और उन लोगों को एंट्री नहीं देते जिन्हें वह नहीं जानते। हर जगह फेवरेटिज्म है। और ऐसा केवल एक आउटसाइडर के साथ नहीं स्टार किड के साथ भी होता है। सबके खेमे बंटे हुए हैं।
आपको बता दें कि इससे पहले एक इंटरव्यू में शेखर सुमन ने कहा था कि मैं सुशांत के पिता का दर्द महसूस कर सकता हूं क्योंकि उनकी तरह मेरा बेटा अध्ययन भी डिप्रेशन से गुजर चुका है। फिल्म इंडस्ट्री ने उसके लिए कई मुश्किलें खड़ी कीं। एक बार उसने मुझसे कहा कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने का विचार आ रहा है। जब अध्ययन ने खुदकुशी की बात कही, तो वह हैरान रह गए। उन्हें डर भी लगने लगा था। तब उन्होंने अध्ययन को समझाया कि जिंदगी लड़ने का नाम है। शेखर ने कहा, 'हमने फिर अध्ययन को अकेला नहीं छोड़ा। परिवार के सदस्य अध्ययन के आसपास रहते हैं।
शेखर ने आगे बताया कि कई बार वह सुबह 4 बजे उठकर अध्ययन के कमरे में जाकर उन्हें देखते थे। उन्होंने कभी हार नहीं मानी और अध्ययन के साथ मजबूती से खड़े रहे। मेरे बेटे को उसकी लाइफ के बुरे दौर से निकालना मेरे लिए काफी मुश्किल था, लेकिन अब, सुशांत की मौत के बाद से मैं डर गया हूं और एक बार फिर चिंतित हो गया हूं।