Independence Day SPL VIDEO:ये 5 फिल्में जो बताती हैं आजादी का नया मतलब
भारत अपनी आजादी की 70वीं वर्षगांठ मना रहा है। इस दौरान भारतीय सिनेमा में भी कई बदलाव आए। सरहदो,
स्वदेश
'आजादी-अपनी बनाई हुई बंदिशों को तोड़ने की' स्वदेश (2004)
फिल्म का मोहन भार्गव उन सारे युवाओं का प्रतीक है जो बेहतर जिंदगी की तलाश में देश छोड़कर पलायन कर रहे हैं। वो रहता तो नासा में है, लेकिन उसकी जड़े भारत में है। जिन्हें वो चाहकर भी खुद से अलग नहीं कर पाता। वो देश की याद दिलाती कावेरी अम्मा को अपने साथ अमेरिका ले जाना चाहता है। मगर इस दौरान वो खुद अपने देश का होकर रह जाता है और उन बुनियादों समस्याओं को ठीक करने की कोशिश करता है। जिनका नाम लेकर लोग देश छोड़कर चले जाते हैं और सुख-सुविधाओं से भरी जिंदगी जीते हैं। ये फिल्म शाहरुख खान के करियर की सबसे शानदार फिल्मों में से एक है।
चक दे इंडिया
'आजादी-खुद को सही साबित करने की' चक दे इंडिया (2007)
एक सताया हुआ कोच, एक बेरुखी की शिकार टीम और एक मौका खुद को सही साबित करने का। इंडियन हॉकी टीम के कोच कबीर खान के लिए ये मौका है बदनामी के दाग से बाहर निकलने का तो हॉकी टीम की लड़कियों के पास मौका है उन सभी लोगों को गलत साबित करने का। जो ये कहते है कि लड़कियां लड़कों की बराबरी नहीं कर सकतीं। बल्कि वो उनसे बेहतर काम कर सकती हैं। इस फिल्म को देखते हुए आप हर किरदार से इस कदर जुड़ जाते हैं कि इनकी लड़ाई आपको अपनी लगने लगती है।
लगान
'आजादी-कभी न हार मानने की' लगान (2001)
फिल्म का नायक भुवन भारत उस आम आदमी का प्रतीक है। जिसके पास अंग्रेजो से लड़ने के लिए कोई भी हथियार नहीं है। लेकिन वो अपने आत्मबल के भरोसे ऐसे लड़ाई लड़ता है। जिसके बारे में कोई सोच भी नहीं सकता। जी हां, भुवन के पास सिर्फ एक मौका है जीतने का और ढेर सारे मौके हैं हारने के। मगर फिर भी वो अपनी मिट्टी, अपने लोगों के लिए आखिरी वक्त तक लड़ता है और अपनी कभी न हार मानने वाली जिद की वजह से ही जीतता है।