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14 Phere Review: फुल फैमिली ड्रामा है '14 फेरे', विक्रांत मैसी ने फिर जीता दिल, जानें क्या है खास

फिल्म: 14 फेरे निर्देशक: देवांशु सिंह मुख्य कास्ट:  विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा, गौहर खान, जमील खान ओटीटी: जी5 कहानी जी5 पर रिलीज हुई फिल्म '14 फेरे', संजय लाल सिंह (विक्रांत मैसी)...

Avinash Singh Pal अविनाश सिंह पाल, हिन्दुस्तान, मुंबईFri, 23 July 2021 08:08 AM
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फिल्म: 14 फेरे
निर्देशक: देवांशु सिंह
मुख्य कास्ट:  विक्रांत मैसी, कृति खरबंदा, गौहर खान, जमील खान
ओटीटी: जी5

कहानी
जी5 पर रिलीज हुई फिल्म '14 फेरे', संजय लाल सिंह (विक्रांत मैसी) और अदिति करवासरा (कृति खरबंदा) की लव स्टोरी दिखाती है। दोनों की लव स्टोरी कॉलेज की रैगिंग से शुरू होती है और लिव इन तक पहुंच जाती है। संजय जहां बिहार के हैं तो वहीं कृति राजस्थान की, दोनों के ही परिवार लव मैरिज के एक दम खिलाफ होते हैं। वैसे इतना तो आपने कई फिल्मों में देखा होगा... लेकिन बाकी फिल्मों की तरह संजय और अदिति, ना भागते हैं और न ही परिवार वालों को मनाने में जुटते हैं। वो बिठाते हैं तिकड़म, और करते हैं शादी की प्लानिंग। अदिति के परिवार वालों के लिए संजय नकली फैमिली बनाता है और संजय के परिवार वालों के लिए अदिति नकली फैमिली बनाती है। अब शादी हो पाती है या नहीं और क्या क्या आती हैं समस्याएं, ये तो आपको फिल्म देखने के बाद ही पता लगेगा।

कैसा है निर्देशन और अभिनय
देवांशु सिंह ने फिल्म का निर्देशन किया है। फिल्म का निर्देशन देखकर आपको कुछ बहुत हटकर या बहुत शानदार सा महसूस नहीं होगा, हालांकि वहीं आप ये भी नहीं कहेंगे कि कुछ फीका है। स्क्रिप्ट के हिसाब से देवांशु का काम भी अच्छा है। वहीं बात अगर एक्टर्स की करें तो विक्रांत मैसी एक उम्दा कलाकार हैं और एक बार फिर उन्होंने अपने अभिनय का दम दिखाया है। वहीं कृति, विक्रांत के सामने थोड़ी सी फीकी लगी हैं, लेकिन आपको ऐसा बार- बार महसूस नहीं होगा। विक्रांत और कृति के अलावा गौहर खान को अपने किरदार जुबीना में अधिकतर ओवर एक्टिंग दिखानी थी, तो वो उन्होंने दिखाई है। इसके अलावा जमील खान भी किरदार के साथ इंसाफ करते दिखे हैं। इसके साथ ही संजय की असली मां सारालाल सिंह का किरदार निभा रहीं यामिनी दास कम दिखी हैं, लेकिन बहुत प्यारी लगी हैं। 

क्या कुछ है खास
फिल्म में एक सबसे अच्छी बात ये है कि करीब करीब हर सीन के लिए एक गाना है। दो बार शादी तो उसके लिए अलग गाने, शादी की तैयारी को अलग गाना और यहां तक कि संजय और अदिति की लड़ाई होती है तो भी आपको म्यूजिक मिलता है। वहीं ये गाने इतने लाउड नहीं हैं कि सीन दब जाएं और इतने स्लो भी नहीं कि आप पक जाएं। इसके अलावा विक्रांत के किरदार को इतना प्यारा लिखा है कि आपको उससे प्यार सा हो जाएगा। संजय न सिर्फ एक अच्छा ब्वॉयफ्रेंड है, बल्कि एक अच्छा बेटा और भाई भी है। विदेश नहीं जाना चाह रहा क्योंकि मां अकेली रह जाएगी... ऐसे कुछ और भी पहलू हैं। इन सबके अलावा फिल्म आखिर में ऑनर किलिंग का मुद्दा भी छू देती है।

क्या रह गया...
फिल्म में अदिति और संजय की कॉलेज लाइफ और लिव इन का सफर आपको शुरुआती दस मिनट में ही दिखा दिया जाता है, जो बतौर दर्शक आप थोड़ा अधिक देखने की इच्छा रखते हैं। वहीं फिल्म की स्क्रिप्ट भी कुछ हिस्सों पर पकड़ छोड़ती दिखती है, जहां आप खुद से कह देते हैं कि ऐसा किया जा सकता था, वैसा किया जा सकता था। 

देखें या नहीं
करीब 2 घंटे की फिल्म देखते हुए आपके चेहरे पर मुस्कान बनी रहेगी। वहीं कुछ सीन्स आपके दिल को भी छू जाएंगे। फिल्म की एक सबसे अच्छी बात ये भी है कि इसे जबरदस्ती का लंबा रखने की कोशिश नहीं की गई है। ऐसे में इस फिल्म को आप बेशक अपने परिवार के साथ देख सकते हैं।

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