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Bandaa Review: मनोज बाजपेयी ने लगाई दमदार अदाकारी की मुहर, पूरे परिवार के साथ देखें 'सिर्फ एक बंदा काफी है'

Sirf Ek Bandaa Kaafi Hai Review: मनोज बाजपेयी (Manoj Bajpayee) की फिल्म 'सिर्फ एक बंदा ही काफी है' काफी शानदार फिल्म है। अपूर्व सिंह कार्की का निर्देशन काबिल-ए-तारीफ है, जो आखिर तक बांधे रखता है।

Avinash Singh Pal लाइव हिन्दुस्तान, मुंबईSun, 21 May 2023 03:00 PM
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फिल्म: सिर्फ एक बंदा काफी है
निर्देशक: अपूर्व सिंह कार्की
प्रमुख स्टार कास्ट: मनोज बाजपेयी, अद्रिजा सिन्हा, सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ आदि
कहां देखें: जी5
रिलीज डेट: 23 मई 2023

क्या है कहानी: फिल्म 'सिर्फ एक बंदा काफी है' की कहानी उसके ट्रेलर से ही साफ हो गई थी और उसके बाद काफी विवाद भी देखने को मिला था, हालांकि फिल्म देखने के बाद आप सभी विवाद भूलकर मनोज बाजपेयी और अपूर्व सिंह कार्की की तारीफ करते रह जाएंगे। खैर बात करें कहानी कि फिल्म की शुरुआत होती है 2013 से, जहां नू (अद्रिजा सिन्हा) अपने पिता (जयहिंद कुमार) और मां (दुर्गा शर्मा) के साथ दिल्ली के कमलानगर थाने में उसके बलात्कार की रिपोर्ट लिखवाने आई है। कुछ ही वक्त में पता लग जाता है कि ये शिकायत एक बड़े बाबा (सूर्य मोहन कुलश्रेष्ठ) के खिलाफ है। इस बाबा को उसके भक्त पूजते हैं और भगवान समान दर्जा देते हैं। पुलिस अपना काम करती हैं और मामला आगे बढ़ता है और कोर्ट तक पहुंचता है। इसके बाद कोर्ट कचहरी का काम शुरू होता है और किसी वजह से ये केस पीसी सोलंकी (मनोज बाजपेयी) के पास आता है। सोलंकी, लड़की के पक्ष में केस लड़ता है और जी जान लगा देता है। इस दौरान उसके सामने क्या कुछ समस्याएं आती हैं, कैसे कानून को मोड़ने की कोशिश की जाती है, कैसे सोलंकी की पर्सनल लाइफ पर इसका असर पड़ता है और क्या नू को इंसाफ मिलता है? इन सब सवालों के लिए आपको फिल्म देखनी होगी। 

क्या कुछ है खास और कहां खाई मात: फिल्म की सबसे खास बात है इसकी स्क्रिप्टिंग, इसे काफी सलीके से लिखा गया है और एक भी सीन आपको ऐसा नहीं दिखता है, जो बेवजह हो। स्क्रिप्टिंग के साथ ही फिल्म के डायलॉग्स इतने शानदार हैं कि आखिर तक आपको याद रहते हैं और हर कुछ देर में आप ताली बजाने को मजबूर हो जाते हैं। फिल्म का कैमरा वर्क और एडिटिंग भी सटीक है। फिल्म का पहला पार्ट जितना कमाल है, दूसरा पार्ट उससे भी ज्यादा उम्दा है। वहीं फिल्म में मनोज बाजपेयी की आखिरी क्लोजिंग स्पीच तो सोने पे सुहागा है और जिस तरह से 'रावण' वाली इस स्पीच को लिखा और परफॉर्म किया गया है, वो हकीकत में मंत्रमुग्ध कर देता है। हालांकि फिल्म में एक दो चीजें ऐसी हैं, जो और बेहतर हो सकती थीं, लेकिन वो इतनी बारीक हैं कि बतौर दर्शक आपका ध्यान उस पर जाएगा ही नहीं।

कैसी है एक्टिंग और निर्देशन: बात फिल्म के एक्टर्स की करते हैं और शुरूआत करते हैं मनोज बाजपेयी से। इस फिल्म से एक बार फिर मनोज बाजपेयी ने अपना लोहा साबित कर दिया है। मनोज बाजपेयी की जोरदार एक्टिंग ने इस फिल्म को और भी शानदार बनाने का काम किया है। उनकी डायलॉग डिलीवरी, चेहरे के हाव-भाव और सीन के मुताबिक बॉडी लैंग्वेज, हाथ का कांपना, जुबां का अटकना... सब कुछ काबिल-ए-तारीफ है। फिल्म का हर एक सीन मनोज की दमदार एक्टिंग की गवाही देता है। मनोज के बाद बात करते हैं अद्रिजा की, जिनके एक्सप्रेशन्स से ज्यादा आवाज ने दम दिखाया है। अधिकतर सीन्स में नू बनीं अद्रिजा के चेहरे पर दुपट्टा रहता है, लेकिन बातचीत में जिस बखूबी से उन्होंने आवाज का मॉड्यूलेशन किया है, वो कमाल है। फिल्म में बाकी कलाकारों जैसे सूर्य मोहन, निखिल पांडे, प्रियंका सेतिया, दुर्गा शर्मा और जयहिंद कुमार आदि ने भी बढ़िया काम किया है। बात एक्टिंग के बाद अब अगर डायरेक्शन की करें तो अपूर्व सिंह कार्की का काम दमदार दिखा है। अपूर्व इससे पहले  द आम आदमी फैमिली (2016) , एस्पिरेंट्स (2021) और सास बहू अचार प्राइवेट लिमिटेड (2022) बना चुके हैं, लेकिन 'बंदा' से उन्होंने खुद के लिए ही एक नया लेवल सेट कर दिया है।

देखें या नहीं: मनोज बाजयेपी की इस फिल्म को आपको जरूर देखना चाहिए, बल्कि इस फिल्म को पूरे परिवार के साथ देखना चाहिए। ये फिल्म आपको झकझोर के रख देगी और समाज के बारे में सोचने पर मजबूर कर देगी। बंदा देखने के बाद ये कहना भी बिलकुल गलत नहीं होगा कि काफी वक्त के बाद कोई ऐसी फिल्म आई है, जो प्योर सिनेमा है, जिसका कंटेंट बोलता है, जिसे किसी वीएफएक्स या भारी म्यूजिक की जरूरत नहीं, जो अपने आप में पूरी है।

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