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Namaste England Review: अर्जुन-परिणीति की फिल्म को ऑडियंस ने दूर से कहा नमस्ते

फिल्म ‘नमस्ते इंग्लैंड’ कलाकार: अर्जुन कपूर, परिणीति चोपड़ा, अलंकृता सहाय, आदित्य सील, सतीश कौशिक निर्देशक: विपुल अमृतलाल शाह स्टार: 1.5 (डेढ़ स्टार) तालियां दो तरह की होती हैं।...

Namaste England Review: अर्जुन-परिणीति की फिल्म को ऑडियंस ने दूर से कहा नमस्ते
राजीव रंजन नई दिल्लीFri, 19 Oct 2018 04:32 PM
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फिल्म ‘नमस्ते इंग्लैंड’

कलाकार: अर्जुन कपूर, परिणीति चोपड़ा, अलंकृता सहाय, आदित्य सील, सतीश कौशिक

निर्देशक: विपुल अमृतलाल शाह

स्टार: 1.5 (डेढ़ स्टार)

तालियां दो तरह की होती हैं। जब कोई प्रस्तुति दर्शकों-श्रोताओं को पसंद आती है, तो आखिर में बजती हैं और जब कोई परफॉर्मेंस दर्शकों के झेलने की क्षमता से बाहर हो जाता है तो बीच में ही बजने लगती हैं- खत्म करो, अब बख्श दो। ‘नमस्ते इंग्लैंड’ दूसरी श्रेणी वाली प्रस्तुति है, जिसे देखते वक्त बार-बार यही ख्याल आता है कि ये फिल्म खत्म कब होगी! सवा दो घंटे का समय भी पहाड़ जैसा लगने लगता है।

एक सवाल मन में अक्सर उठता है कि कोई फिल्म क्यों देखी जाए? इस सवाल के कई जवाब हो सकते हैं, जो हर व्यक्ति के टेस्ट, मानसिक स्तर पर निर्भर करते हैं। लेकिन ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के संदर्भ में इस सवाल का एक भी जवाब जेहन में नहीं आता है, सिवाय इसके कि निर्माता का मन फिल्म बनाने का था और उसके पास पैसे थे, इसलिए उसे निर्देशक, हीरो-हीरोइन, दूसरे कलाकार और तकनीशियन आसानी से मिल गए।

वैसे कहने को इस फिल्म में भी एक कहानी है। उसके बारे में भी थोड़ा बता देते हैं। परम (अर्जुन कपूर) और जसमीत (परिणीति चोपड़ा) पंजाब के एक ही गांव के हैं। परम एक आदर्श बेटा है। वह अपने घर-परिवार, अपनी मिट्टी को बहुत महत्व देता है। जसमीत एक प्रगतिशील विचारों वाली लड़की है, जो चाहती है कि लड़कियों को अपने फैसले लेने की आजादी मिले। वह घर से बाहर निकल कर काम करना चाहती है, लेकिन उसके दादा और पिता बहुत रुढ़िवादी हैं। उनके लिए लड़कियों की अहमियत बस खाना पकाने और बच्चे पैदा करने भर है। परम को जसमीत भा जाती है। वह उससे नजदीकियां बढ़ाने के बहाने ढूंढ़ता रहता है। आखिरकार वह इसमें कामयाब हो जाता है। बात शादी तक पहुंच जाती है। जसमीत के दादा इस शर्त पर दोनों की शादी के लिए तैयार होते हैं कि जसमीत शादी के बाद नौकरी नहीं करेगी। शादी के दिन परम का एक दोस्त उसके पिता के साथ बदतमीजी कर देता है, गुस्से में परम उसे थप्पड़ मार देता है। दोस्त एक रसूखदार परिवार से है और वह परम को धमकी देता है कि वह स्विट्जरलैंड में उसका हनीमून मनाने का सपना कभी पूरा नहीं होने देगा। परम जब भी विदेश जाने के लिए वीजा का आवेदन करता है, उसके दोस्त के रसूख की वजह से आवेदन रद्द हो जाता है।

एक दिन जसमीत की एक दोस्त हरप्रीत (मल्लिका दुआ) उसे मिल जाती है, जो इंग्लैंड में रहती है। वह उसे बताती है कि गुरनाम सिह वीजा (सतीश कौशिक) उसे बाहर भेजने में मदद कर सकता है। गुरनाम के बताए उपाय की बदौलत जसमीत अकेले लंदन चली जाती है। उसके बाद परम भी उसके पीछे-पीछे अवैध तरीके से लंदन पहुंच जाता है। वहां उसकी मुलाकात समीर यानी सैम (आदित्य सील) और आलीशा (अलंकृता सहाय) से होती है। इसके बाद परम और जसमीत की जिंदगी में एक नया मोड़ शुरू होता है।

‘नमस्ते इंग्लैंड’ को 2007 में आई ‘नमस्ते लंदन’ की फ्रेंचाइजी के रूप में प्रचारित किया गया है। लेकिन दोनों फिल्मों में नाम के अलावा कोई
समानता नहीं है। न प्रभाव में, न प्रस्तुति में, न अभिनय में, न निर्देशन में, न संगीत में। यह फिल्म न हंसा पाती है, न रुला पाती है। पहले हाफ में हरबात पर या तो भांगड़ा शुरू हो जाता है या हीरोइन के नारी विमर्श वाले असरहीन संवाद या फिर हीरो-हीरोइन का बेजान रोमांस। इंटरवल के सीन को देख कर एकबारगी लगता है कि दूसरे हाफ में फिल्म में कोई कसाव आएगा, लेकिन ये उम्मीद धरी रह जाती है। ‘नमस्ते लंदन’ की एक खासियत उसका संगीत था, जो काफी लोकप्रिय हुआ था। इस फिल्म का तो संगीत भी याद रह जाने लायक नहीं है।

फिल्म की पटकथा लचर है। उसकी कोई दिशा नहीं है। संवादों में कोई दम नहीं है। ढेर सारे वनलाइनर हैं, लेकिन एकदम घिसे-पिटे। निर्देशक और लेखक ने एक सीन में आज से करीब 50 साल पहले आई ‘पूरब और पश्चिम’ को भी थोड़ा-सा ठूंसने की कोशिश भी की है, लेकिन वह भी अप्रभावी है।
‘नमस्ते लंदन’ के निर्देशक विपुल शाह और ‘नमस्ते इंग्लैंड’ के निर्देशक विपुल शाह में कोई मेल नजर ही नहीं आता। ऐसा लगता है, दोनों फिल्में
अलग-अलग व्यक्तियों ने निर्देशित करती है। विपुल शाह का निर्देशन पटकथा की खामियों को ढकने की बजाय और उभार ही देता है।

अर्जुन कपूर का अभिनय प्रभावित नहीं करता। इसमें उनकी अभिनय क्षमता से ज्यादा दोष पटकथा और निर्देशन का है। उन्हें अपनी फिल्मों के चुनाव केबारे में गंभीरता से सोचने की जरूरत है। परिणीति चोपड़ा भी बेअसर हैं। ऐसी फिल्में उनके करियर को कहां ले जाएंगी, यह अंदाजा लगाना कोई मुश्किल नहीं है। सतीश कौशिक का हर बात में डार्लिंग बोलना, हंसी कम और ऊब ज्यादा पैदा करता है। बाकी कलाकार भी ऐसे ही हैं, वैसे उनके लिए ज्यादा स्कोप भी नहीं था। बस मल्लिका दुआ और अलंकृता सहाय ही थोड़ा प्रभावित करने में कामयाब रही हैं।

सर्वेश्वरदयाल सक्सेना का एक प्रसिद्ध नाटक है ‘बकरी’। नट इसमें नटी से कहता है- कैसी बनाई चटनी/जा तेरी मेरी ना पटनी। ‘नमस्ते इंग्लैंड’ को
देख कर दर्शकों (जो थोड़े-बहुत देखने जाएंगे) का मन भी कुछ ऐसा ही कहने को करेगा।
 

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