पेट पालने को दिहाड़ी मजदूर बनीं नेशनल क्रिकेटर
उत्तराखंड क्रिकेट टीम से राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल चुकी रामनगर की जानकी मेहरा (25) सरकार की उपेक्षा के चलते दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं। गरीबी ने जानकी का पहले मैदान और अब पढ़ाई से भी नाता...
उत्तराखंड क्रिकेट टीम से राष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल चुकी रामनगर की जानकी मेहरा (25) सरकार की उपेक्षा के चलते दिहाड़ी मजदूरी करने को मजबूर हैं। गरीबी ने जानकी का पहले मैदान और अब पढ़ाई से भी नाता तुड़वा दिया है। यह उदीयमान ऑलराउंडर अब मूक बधिर मां और चार परिजनों को पालने के लिए रोजाना 8-10 घंटे होटलों में मजदूरी कर रही है। नैनीताल जिले के रामनगर स्थित ग्राम क्यारी निवासी जानकी मेहरा का क्रिकेट कॅरियर साल 2010 में अंडर-19 स्कूल से शुरू हुआ।
बेहतरीन बल्लेबाजी और गेंदबाजी के दम पर वह 2010, 2011 और 2012 में उत्तराखंड की टीम से राष्ट्रीय मुकाबलों में उतरीं। इस दौरान उसकी टीम ने दिल्ली जैसी मजबूत टीम को बड़े अंतर से हराया। जानकी कहती है कि जीआईसी क्यारी में पढ़ाई के दौरान शिक्षक शैलेंद्र कुमार से सहयोग मिला। इसके चलते वह तीन बार नेशनल खेल सकी। मगर परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने पर उसकी क्रिकेट और पढ़ाई दोनों छूट गईं।
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पूर्व क्रिकेटर जानकी मेहरा का कहना है, ''उत्तराखंड ही नहीं, देश के लिए क्रिकेट खेलने की तमन्ना थी। गरीबी के चलते संभव नहीं हो सका। पिता की मौत के बाद परिवार टूट चुका था। सरकारी मदद मिलती तो क्रिकेट-पढ़ाई दोनों करती। अब मजदूरी कर रही हूं।''
दाखिले को नहीं थे पैसे
जानकी मेहरा ने बताया कि वर्ष 2012 में इंटर पास करने के बाद कॉलेज में दाखिले के लिए उसके पास पैसे नहीं थे। कुछ लोगों से मदद मांगी तो यह कहकर मना कर दिया गया कि कैसे लौटाओगे। साल 2008 में पिता की मौत के बाद परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। भाई की मानसिक स्थिति ठीक नहीं है, मां मूक बधिर है।
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यादगार पारी
जानकी के कोच शैलेंद्र ने बताया कि 2012 में जम्मू में आयोजित अंतरराज्यीय स्कूल टूर्नामेंट में मुकाबले में जानकी ने छत्तीसगढ़ के खिलाफ मैच में 4 विकेट लिए और 25 रन बनाये। इससे पूर्व 2011 में जानकी और उनकी बड़ी बहन अनीता ने नैनीताल टीम से खेलते हुए स्टेट मुकाबले में अल्मोड़ा को भारी अंतर से जीता।