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विराट कोहली को क्यों पसंद है ड्यूक बॉल, यह कूकाबूरा और SG से क्यों है बेहतर?

भारतीय क्रिकेट में इन दिनों गेंदों की क्वालिटी को लेकर बहस गरम है। भारतीय कप्तान विराट कोहली, स्टार स्पिनर आर अश्विन से लेकर पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने गेंदों की क्वालिटी को लेकर अपनी राय...

विराट कोहली को क्यों पसंद है ड्यूक बॉल, यह कूकाबूरा और SG से क्यों है बेहतर?
लाइव हिन्दुस्तान टीम,नई दिल्लीSat, 20 Oct 2018 09:37 AM
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भारतीय क्रिकेट में इन दिनों गेंदों की क्वालिटी को लेकर बहस गरम है। भारतीय कप्तान विराट कोहली, स्टार स्पिनर आर अश्विन से लेकर पूर्व कप्तान मोहम्मद अजहरुद्दीन ने गेंदों की क्वालिटी को लेकर अपनी राय जाहिर की है। विराट कोहली और आर अश्विन ने भारत में इस्तेमाल होने वाली एसजी गेंदों की क्वालिटी पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए डॅयूक गेंदों के इस्तेमाल की वकालत की है। एक तीसरा आॅप्शन कूकाबुरा गेंद भी है, जिसका इस्तेमाल आॅस्ट्रेलिया में किया जाता है। माइक अथर्टन, कुमार संगाकारा के साथ ही अधिकतर समय तक कूकाबुरा गेंद से खेलने वाले पूर्व ऑस्ट्रेलियाई कप्तान रिकी पोंटिंग ने भी ऑस्ट्रेलियाई घरेलू क्रिकेट में ड्यूक गेंद के इस्तेमाल की सिफारिश की है। आइए हम आपको बताते हैं कि आखिर एसजी, ड्यूक और कूकाबुरा गेंदों में क्या अंतर होता है...?

ड्यूक गेंद के पीछे है एक भारतीय का दिमाग
73 वर्षीय दिलीप जजोदिया 1962 में भारत से इंग्लैंड पहुंचे। उनकी कंपनी मॉरेंट क्रिकेट का सामान बनाने लगी। इन्होंने 1760 में स्थापित क्रिकेट बॉल बनाने वाल कंपनी ड्यूक को खरीद लिया। जजोदिया टेस्ट क्रिकेटर बनना चाहते थे लेकिन अब वह गेंद बनाने वाली कंपनी के मालिक हैं। एक ऐसी गेंद जो भारतीय क्रिकेट टीम के लिए इंग्लैंड दौरे पर हमेशा समस्या खड़ी करती है। दिलीप जजोदिया अपने हाथों से इंग्लैंड में होने वाले प्रत्येक टेस्ट मैच के लिए 12 गेंदें चुनते हैं। दिलीप जजोदिया ड्यूक गेंद में बदलाव नहीं करना चाहते। वह कहते हैं यह विश्व की सर्वश्रेष्ठ क्रिकेट गेंद है। 

ड्यूक गेंदों की सीम है इसकी सबसे बड़ी खासियत 
इस गेंद की सिलाई, स्विंग और उछाल गेंदबाजों के लिए वरदान और बल्लेबाजों के लिए अभिशाप साबित होती है। तो वहीं, ऑस्ट्रेलिया में कूकाबुरा और भारत में एसजी गेंद से टेस्ट मैच खेले जाते हैं। जब इंग्लैंड में बादल छाए हों तो ये ड्यूक गेंद अंदर और बाहर दोनों तरफ स्विंग करती है और यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। डयूक गेंद की भारतीय उपमहाद्वीप में भी स्विंग कर सकती है। ड्यूक की एक सिंगल गेंद की सिलाई में तीन से साढ़े तीन घंटे का वक्त लगता है। इस गेंद की दूसरी खासियत यह है कि इसकी शाइन बहुत देर तक बनी रहती है। इसलिए इस गेंद से तेज गेंदबाजों को स्विंग तो मिलती है मगर रिवर्स स्विंग नहीं मिलती।

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इंग्लैंड की कंडीशन स्विंग बॉलिंग के अनुकूल होती है और इसलिए ड्यूक गेंद तेज गेंदबाजों की मददगार साबित होती है। लाल ड्यूक गेंद का इस्तेमाल इंग्लैंड में होता है। ड्यूक गेंद फोर क्वार्टर की होती है। यानी चमड़े के 4 टुकड़ों को सिलकर एक गेंद बनाई जाती है। चारों टुकड़े एक ही मोटाई के होते हैं। इनकी मोटाई कम से कम 3.5 मिलीमीटर होती है। भारत में ऐसा चमड़ा नहीं मिलता। भारत में अधिकतम दो या 2.5 मिलीमीटर मोटाई का चमड़ा इस्तेमाल होता है। इंग्लैंड में गाय का चमड़ा आसानी से मिल जाता है। भारत में ऐसा नहीं हो सकता। ड्यूक गेंद बनाने के लिए इस्तेमाल होने वाले चमड़े में ग्रीस लगाते हैं। ग्रीस गेंद को वाटरप्रूफ बना देती है। अगर कोई गेंद ज्यादा गाढ़े रंग की नजर आए तो इसका मतलब होता है कि चमड़े ने ज्यादा ग्रीस सोखी है।

ड्यूक, एसजी और कूकाबुरा गेंदों में अंतर 
कूकाबुरा गेंद ऑस्ट्रेलिया में बनती है और इसका इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया के अलावा दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, न्यूजीलैंड, श्रीलंका, जिम्बाब्वे और न्यूजीलैंड में होता है। एसजी गेंद भारत में बनती है और बीसीसीआई इसी गेंद का इस्तेमाल करता है। कूकाबुरा में लो सीम होती है। इसमें शुरुआती 20 ओवर में अच्छी स्विंग मिलती है लेकिन इसके बाद यह बल्लेबाजों की मदद करती है। जब इसकी सिलाई उधड़ जाती है तो स्पिनरों को भी ग्रिप करने में दिक्कत होती है। ड्यूक बॉल की सीम शानदार होती है और 50-55 ओवर तक यह बनी रहती है। 

ड्यूक गेंद स्विंग गेंदबाजों को काफी रास आती है क्योंकि यह हवा में ज्यादा मूव करती है। एसजी गेंद की सिलाई तो ठीक होती है लेकिन इसकी चमक बहुत जल्दी खत्म हो जाती है। एसजी गेंद में एक और खराबी यह होती है कि यह चमड़े के दो टुकड़ों से ही बनी होती है, जिससे इसका शेप बहुत जल्दी बदल जाता है। भारतीय परिस्थितियों में 10-20 ओवर तक ही इसमें स्विंग मिलती है। एसजी गेंद से रिवर्स स्विंग करना आसान होता है। चूंकी एसजी गेंद जल्दी पुरानी होती है इसलिए स्पिनर्स को ग्रिप बनाने और हवा में घुमाने में काफी आसानी होती है। एसजी गेंद से स्पिनर्स को ज्यादा टर्न मिलता है।

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