
भारत की महिला वर्ल्ड कप जीत 1983 जैसी नहीं…क्या सुनील गावस्कर के लॉजिक में वाकई है दम?
संक्षेप: महान बल्लेबाज सुनील गालस्कर ने भारत की महिला वनडे वर्ल्ड कप जीत पर विस्तार से अपनी राय रखी है। उनका मानना है कि महिला टीम की जीत 1983 जैसी नहीं। यह भारतीय महिला टीम की पहली आईसीसी ट्रॉफी है।
हरमनप्रीत कौर की अगुवाई वाली भारतीय टीम ने आईसीसी महिला वनडे वर्ल्ड कप 2025 का खिताब अपने नाम किया। भारत ने नवी मुंबई में आयोजित फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से रौंदा। यह भारतीय महिला टीम की पहली आईसीसी ट्रॉफी है। भारत ने तीसरे प्रयास में खिताबी सूखा समाप्त किया। कई लोगों ने इस जीत की तुलना भारतीय पुरुष टीम की 1983 वर्ल्ड कप जीत से की। तब कपिल देव की कप्तानी में भारत ने पहला खिताब जीता था। भारत ने तमाम मुश्किलों को पार करते हुए अपने समय की सबसे खतरनाक टीम वेस्टइंडीज को फाइनल में हराया था। यह जीत अभूतपूर्व थी, जिसने आने वाली पीढ़ियों को खेल की ओर आकर्षित किया। हालांकि, महान बल्लेबाज सुनील गावस्कर का मानना है कि महिला टीम की जीत 1983 जैसी नहीं। 1983 वर्ल्ड कप विजेता टीम का हिस्सा गावस्कर ने एक लॉजिक दिया है।

गावस्कर ने द स्पोर्टस्टार में अपने कॉलम में लिखा, “इस जीत ने एक बार फिर इस बात पर जोर दिया कि अगर कभी जरूरत पड़ी तो खेलों में समझदारी से ट्रॉफियां जीती जा सकती हैं, न कि विश्वविद्यालयों की आकर्षक डिग्रियां से। इससे यह भी साबित होता है कि भारतीय कोच ही सबसे अच्छे नतीजे हासिल करेंगे क्योंकि वे खिलाड़ियों को अच्छी तरह जानते हैं। भारतीय कोच अपने खिलाड़ियों की ताकत, कमजरी और स्वभाव और भारतीय क्रिकेट की बारीकियों को किसी भी विदेशी खिलाड़ी से बेहतर समझते हैं, चाहे वह कितना भी अनुभवी क्यों न हो। कुछ लोग इस जीत की तुलना 1983 में पुरुष टीम द्वारा वर्ल्ड कप जीतने से करने की कोशिश कर रहे थे। पुरुष टीम पहले के संस्करणों में कभी भी ग्रुप चरण से आगे नहीं बढ़ पाई थी, इसलिए नॉकआउट चरण से आगे सब कुछ उनके लिए नया था, जबकि महिला टीम का रिकॉर्ड पहले से ही बेहतर था, क्योंकि इस शानदार जीत से पहले वे दो बार फाइनल में पहुंच चुकी थीं।”
महिला टीम ने 2005 और 2017 में वनडे वर्ल्ड कप का फाइनल खेला था, जहां क्रमश: ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड के हाथों हार झेली। हालांकि, गावस्कर का मानना है कि हरमन ब्रिगेड की जीत में बदलाव लाने की क्षमता है। उन्होंने कहा, "जिस तरह 1983 की जीत ने भारतीय क्रिकेट में जोश भरा और उसे दुनिया भर में एक आवाज दी, उसी तरह यह जीत उन देशों को भी एहसास दिलाएगी, जिन्होंने भारत से बहुत पहले महिला क्रिकेट की शुरुआत की थी। 1983 की जीत ने महत्वाकांक्षी क्रिकेटरों के माता-पिता को भी अपने बच्चों को इस खेल से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी तरह, यह जीत महिला क्रिकेट को नए आयाम देगी और भारत के दूर-दराज के इलाकों से और भी लड़कियों को इस खेल में लाएगी। महिला प्रीमियर लीग ने यह प्रक्रिया पहले ही शुरू कर दी है, क्योंकि माता-पिता अब इस खेल को अपनी बेटियों के लिए एक वास्तविक करियर विकल्प के रूप में देखते हैं और उनका सपोर्ट करने के लिए ज्यादा इच्छुक हैं।"






