पढ़ाई के लिए पीटना नहीं चाहिए, यह क्रूरता है; HC ने आदेश में कही बड़ी बात
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्कूल में बच्चों की शिक्षा को लेकर एक अहम आदेश सुनाया है। कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में किसी बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है।
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने स्कूल में बच्चों की शिक्षा को लेकर एक अहम आदेश सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में किसी बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है।
हाई कोर्ट ने एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने की आरोपी महिला शिक्षक की याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अनुशासन या शिक्षा के नाम पर स्कूल में किसी बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रवींद्र कुमार अग्रवाल की खंडपीठ ने 29 जुलाई को अपने आदेश में कहा कि बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता है। आदेश में कहा गया है कि बच्चे को शारीरिक दंड देना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 द्वारा प्रदत्त जीवन के अधिकार के अनुरूप नहीं है। अदालत ने कहा कि छोटा होने से कोई बच्चा किसी बड़े इंसान से कम मायने नहीं रखता है।
याचिकाकर्ता के वकील रजत अग्रवाल ने बताया कि सरगुजा जिले के अंबिकापुर में कार्मेल कॉन्वेंट स्कूल की शिक्षिका सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ जोस (43) के खिलाफ छठी कक्षा की छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में फरवरी में मणिपुर थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी। जोस को छात्रा द्वारा छोड़े गए सुसाइड नोट में उसका नाम लिखे होने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
हाई कोर्ट ने आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में एफआईआर और आरोपपत्र को रद्द करने की मांग करने वाली जोस की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने कहा कि बड़े पैमाने पर जीवन के अधिकार में वह सब कुछ शामिल है, जो जीवन को अर्थ देता है और इसे स्वस्थ और जीने लायक बनाता है। अनुच्छेद 21 में निहित जीवन का अधिकार जीवन के किसी भी पहलू को शामिल करता है, जो इसे गरिमापूर्ण बनाता है।
आदेश में कहा गया है कि छोटा होने से कोई बच्चा बड़े इंसान से कम महत्व नहीं रखता। स्कूल में अनुशासन या शिक्षा के नाम पर बच्चे को शारीरिक हिंसा का शिकार बनाना क्रूरता है। एक बच्चा, एक बहुमूल्य राष्ट्रीय संसाधन है, उसका पालन-पोषण और देखभाल कोमलता के साथ की जानी चाहिए, न कि क्रूरता के साथ। बच्चे को सुधारने के लिए उसे शारीरिक दंड देना शिक्षा का हिस्सा नहीं हो सकता।
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि घटना के दिन जोस ने छात्रा को केवल डांटा था और स्कूल में अपनाई जाने वाली सामान्य अनुशासनात्मक प्रक्रिया के तहत उसका आईडी कार्ड ले लिया। जोस के वकील ने कहा, "याचिकाकर्ता का कभी भी छात्र को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा नहीं था। पुलिस ने बिना कोई प्रारंभिक जांच किए केवल सुसाइड नोट के आधार पर याचिकाकर्ता के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
हालांकि, राज्य के वकील ने आरोप पत्र और एफआईआर को रद्द करने की याचिका का विरोध करते हुए तर्क दिया कि आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 161 के तहत दर्ज मृतक छात्रा के सहपाठियों के साक्ष्य से पता चलता है कि याचिकाकर्ता का आचरण इतना कठोर था कि छात्र मानसिक आघात में थे।
याचिका को खारिज करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि वह आरोपियों के बचाव में नहीं उतर सकता। मामले में तथ्यों के विवादित प्रश्नों पर इस स्तर पर निर्णय नहीं लिया जा सकता है और केवल प्रथम दृष्टया अभियोजन मामले को ही देखा जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि आरोपी के बचाव को पुख्ता करने के लिए साक्ष्य की आवश्यकता है। आदेश में कहा गया है कि अदालत को याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोपपत्र और प्राथमिकी को रद्द करने का कोई आधार नहीं मिला।