छात्रा को खुदकुशी के लिए उकसाने के मामले में नन के खिलाफ कार्यवाही पर रोक, छग में 12 साल की बच्ची ने दी थी जान
- पुलिस की तरफ से इस मामले में आरोपी नन के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 305 (बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत छत्तीसगढ़ की एक अदालत में अंतिम रिपोर्ट दायर की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ के एक स्कूली छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में शिक्षिका के रूप में कार्यरत एक नन के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर शुक्रवार को रोक लगा दी। जस्टिस हृषिकेश रॉय और पी.के. मिश्रा की पीठ सरगुजा जिले के अंबिकापुर के कार्मल कॉन्वेंट स्कूल में शिक्षिका के रूप में कार्यरत नन सिस्टर मर्सी उर्फ एलिजाबेथ की उस अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिसे उन्होंने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ दायर किया था।
इससे पहले छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने सिस्टर मर्सी की उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ आपराधिक मामले में आरोपपत्र रद्द करने की मांग की थी।
राज्य पुलिस ने आरोप लगाया है कि शिक्षिका ने कक्षा छह में पढ़ने वाली 12 साल की छात्रा को दो फरवरी को फांसी लगाकर आत्महत्या करने के लिए उकसाया था। जिसके बाद पुलिस ने इस मामले में उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 305 (बच्चे को आत्महत्या के लिए उकसाना) के तहत अपराध दर्ज करते हुए छत्तीसगढ़ की एक अदालत में अंतिम रिपोर्ट दायर की थी।
आदेश के खिलाफ अपनी अपील में शिक्षिका ने वरिष्ठ अधिवक्ता रोमी चाको के माध्यम से कहा, 'शिक्षक या स्कूल के अन्य प्राधिकारियों द्वारा किसी विद्यार्थी को उसकी अनुशासनहीनता के लिए फटकार लगाने जैसी अनुशासनात्मक कार्रवाई किसी विद्यार्थी को आत्महत्या के लिए उकसाने के समान नहीं है, जब तक कि बिना किसी उचित कारण या वजह के जानबूझकर उत्पीड़न और अपमान के आरोप बार-बार न लगाए जाएं।’
याचिका में कहा गया है कि छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई इरादा नहीं था और अनुशासनात्मक कार्रवाई को उकसाने के रूप में नहीं माना जा सकता। पीठ ने राज्य पुलिस को नोटिस जारी किया और अपीलकर्ता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगा दी।
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