
हमर छत्तीसगढ़;सड़क नहीं, दुर्गम रास्ते; 3000 फीट ऊंची पहाड़ी पर कैसे विराजे गजानन,दिलचस्प कहानी
संक्षेप: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ढोलकल पर्वत पर गणेश जी की एक प्रतिमा स्थापित है और पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम भी फरसपाल रखा गया है। दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा से मानते हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर को धरती का स्वर्ग कहा जाता है। यहां का प्राकृतिक सौंदर्य आपको मन मोह लेगा। वहीं धार्मिक आस्था भी बस्तर में दिखती है। यहां के ऐतिहासिक बस्तर दशहरा की ख्याति पूरे विश्व में फैली हुई है। इसी कड़ी में दंतेवाड़ा जिले की लौह नगरी बैलाडीला (किरंदुल) की एक पहाड़ी। नाम है ढोलकल। इसके शिखर पर ग्यारहवीं शताब्दी की दुर्लभ गणेश प्रतिमा विराजमान है। किवदंती है कि इसकी स्थापना छिंदक नागवंशी राजाओं ने की थी। यह प्रतिमा पूरी तरह सुरक्षित और ललितासन मुद्रा में है। इस प्रतिमा को देख लोग सोच में पड़ जाते हैं कि न तो सड़क है और न कोई आसान पथ फिर भगवान गणेश की इस मूर्ति को पहुंचाया कैसे गया। हमर छत्तीसगढ़ की पांचवी कड़ी में आज हम इस विशेष जगह की बात करेंगे।
भगवान परशुराम और गणेश जी के बीच युद्ध हुआ था। परशुराम भगवान शिव से मिलने गए थे, लेकिन गणेश जी ने उन्हें रोक दिया। इस युद्ध में गणेश जी का एक दांत टूट गया था, जिसके कारण उन्हें एकदंत कहा जाने लगा। इस घटना की स्मृति में छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में ढोलकल पर्वत पर गणेश जी की एक प्रतिमा स्थापित है और पहाड़ी के नीचे के गांव का नाम भी फरसपाल रखा गया है। दक्षिण बस्तर के भोगामी आदिवासी परिवार अपनी उत्पत्ति ढोलकट्टा से मानते हैं। इस घटना को चिरस्थाई बनाने के लिए छिंदक नागवंशी राजाओं ने ही शिखर पर गणेश की प्रतिमा स्थापित की है, चूंकि परशुराम के फरसे से गणेश का दांत टूटा था, इसलिए पहाड़ी की शिखर के नीचे के गांव का नाम फरसपाल रखना बताया जाता है। यह स्थल बचेली वन परिक्षेत्र के फूलगट्टा वन कक्ष में है।
कैसे पहुंचे ढोलकाल पर्वत इसे भी समझे
पांच फीट ऊंची और ढाई फीट चौड़ी काले ग्रेनाइट पत्थर से बनी यह प्रतिमा बेहद कलात्मक है। पहाड़ की ऊंचाई समुद्र तल से 2994 फीट है। यहां पहुंचने सरकार ने न सड़क बनाई है और न प्रचारित किया। ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए दंतेवाड़ा से करीब 18 किलोमीटर दूर फरसपाल जाना पड़ता है। यहां से कोतवाल पारा होकर जामपारा तक पहुंच मार्ग है। जामपारा में वाहन खड़ी कर तथा ग्रामीणों के सहयोग से शिखर तक पहुंचा जा सकता है। जामपारा पहाड़ के नीचे है। यहां से करीब तीन घंटे पैदल चलकर तक पहाड़ी पगडंडियों से होकर ऊपर पहुंचना पड़ता है। बारिश के दिनों में पहाड़ी नाला बाधक है। नक्सल प्रभावित क्षेत्र होने की वजह से भी विकास कार्यों में दिक्कत आई है, लेकिन अब नक्सलवाद सिमट रहा है तो विकास भी होने की उम्मीद है।
सबसे ऊंचे स्थान पर विराजित गणेश प्रतिमा
कांग्रेस और भाजपा सरकार में ढोलकल शिखर तक पहुंचने के लिए पर्यटन विभाग से लेकर जिला प्रशासन दंतेवाड़ा तक कई घोषणाएं की गई, लेकिन न पगडंडियों को दुरुस्त किया गया न ही छत्तीसगढ़ में सबसे ऊंचे स्थल पर विराजमान दुर्लभ गणेश प्रतिमा को प्रचारित करने का प्रयास किया गया। ग्रामीण युवकों की मदद से ही लोग वहां पहुंच पाते हैं। बैलाडीला की पहाड़ियों को लौह अयस्क के कारण कई कंपनियों को लीज पर दिया गया है। बैलाडीला की पहाड़ियों का सर्वे करने वाले भूगर्भशास्त्री ने अपने सर्वे रिपोर्ट में लिखा है कि बैलाडीला की पहाडिय़ों में कई दुर्लभ प्रतिमाएं बिखरी पड़ी हैं। लौह अयस्क की खुदाई से ढोलकल जैसे शिखर नष्ट हो जाएंगे, वहीं पुरातात्विक संपदाओं का भी लोप हो जाएगा।
(रिपोर्ट- संदीप दीवान)

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