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Hindi Newsकरियर न्यूज़Teachers Day: Retired professor of NIT has been teaching poor children for free for two and a half decades

शिक्षक दिवस : NIT के रिटायर प्रोफेसर ढाई दशक से गरीब बच्चों को फ्री पढ़ा रहे

बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी पटना) से रिटायर प्रो. संतोष कुमार पिछले ढाई दशक से गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं। एनआईटी से रिटायर होने के बाद अब उन्होंने इसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया है।

Pankaj Vijay लाइव हिन्दुस्तान, वरीय संवाददाता, पटनाThu, 5 Sep 2024 04:50 AM
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बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग (अब एनआईटी पटना) से रिटायर प्रो. संतोष कुमार का सपना शिक्षा के माध्यम से समाज की बेहतरी और गैर बराबरी खत्म करने का है। वह उनलोगों के बीच शिक्षा का अलख जगा रहे हैं, जो आर्थिक मजबूरी की वजह से अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाते हैं। पिछले ढाई दशक से वह गरीब बच्चों को निशुल्क पढ़ाते हैं। एनआईटी से रिटायर होने के बाद अब उन्होंने इसी को जीवन का लक्ष्य बना लिया है। प्रत्येक दिन शाम चार से साढ़े छह बजे तक उनके राजेंद्रनगर स्थित आवास में कक्षा चलती है। इसमें आसपास के दाई, धोबी, नाई, मजदूर आदि गरीब परिवारों के बच्चे शामिल होते हैं। वे छठी से दसवीं तक के छात्रों को पढ़ाते हैं। उनका सहयोग पत्नी डॉ. भारती एस कुमार भी करती हैं। अपने दाईं के बेटे की पढ़ाई में मदद की। अब वह इंजीनियर है।

बंदना प्रेयषी ने गांव में बच्चों के लिए खोला कम्प्यूटर सेंटर

पटना। पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग की सचिव बंदना प्रेयषी ने समाज के वंचित बच्चों को तकनीकी तौर पर दक्ष बनाने की पहल की है। वह 2003 बैच की भारतीय प्रशासनिक सेवा की अधिकारी हैं। उन्होंने अपने पैतृक गांव सीतामढ़ी जिले के नानपुर प्रखंड के कोयली गांव में एक सेंटर स्थापित किया है, जहां गरीब और वंचित बच्चों को निशुल्क शिक्षा दी जाती है। यहां खास तौर पर बच्चे कम्प्यूटर की पढ़ाई करते हैं। इसके साथ इस सेंटर में सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के लर्निंग गैप को कम करने के लिए भी कक्षाएं चलती हैं, ताकि वे निजी स्कूलों के बच्चों की बराबरी कर सकें। बच्चों को पठन-पाठन की सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है। सरकारी सेवा के दायित्व से समय बचाकर वंदना प्रेयसी खुद भी वहां जाती हैं और कक्षा लेती हैं। वह कहती हैं- मेरे माता-पिता शिक्षक रहे हैं। मेरी कोशिश है कि संसाधन के अभाव में जो बच्चे पढ़ाई में पीछे छूट जाते हैं, उन्हें तकनीकी रूप से दक्ष बनाया जाये।

शिक्षक नहीं पर दस सालों से बच्चों को कर रहीं शिक्षित

पटेल नगर की रहने वाली कादम्बिनी सिन्हा को बचपन से शिक्षिका बनने का शौक था। लेकिन यह हो नहीं पाया। जब मौका मिला तो बच्चों को बुलाकर घर में ही पढ़ाने लगीं। पिछले दस सालों से कादम्बिनी सिन्हा पटेल नगर के आसपास की स्लम बस्ती के बच्चों को पढ़ा रहीं हैं। हर दिन तीन से चार घंटे वो बच्चों को पढ़ाने में देती हैं। पहले तो केवल स्लम बस्ती के बच्चों को ही पढ़ाती थी, लेकिन कोरोना के बाद कई ऐसे परिवार के बच्चों को भी मुफ्त शिक्षा दे रही हूं जिनके पास बच्चों को स्कूल भेजने के लिए पैसे नहीं है। इससे आत्मसंतुष्टि मिलती है। बचपन से ही मुझे पढ़ाने का बहुत शौक था।

स्लम बस्ती के बच्चों को पढ़ाती हैं घर-घर जाकर

मन में ठाना और स्लम बस्ती के बच्चों को घर-घर जाकर पढ़ाना शुरू किया। इसके बाद पीछे मुड़ कर नहीं देखा। पेशे से क्राफ्ट डिजाइनर वंदना ने बताया कि वह क्राफ्ट बनाने का काम करती थीं। जूट आदि के सामान बनाती थीं। काम तो कर रही थी, लेकिन मजा नहीं आ रहा था। संतुष्टि नहीं मिल रही थी। एक दिन कुछ स्लम बस्ती के बच्चों को ऐसे ही पढ़ाने बैठ गयी। बहुत ही अच्छा लगा। इसके बाद उसने इस काम को जुनून बना लिया। अब उसने अपना एक सेंटर चीना कोठी में खोल लिया है। उस इलाके के बच्चों को इकह्वा कर पढ़ाती हैं। पहले बच्चे नहीं आते थे, लेकिन बाद में अभिभावकों को प्रोत्साहित करके पढ़ाना शुरू किया। अब ढेर सारे बच्चे पढ़ने के लिए आते हैं। वंदना कुमारी ने बताया कि बेसिक जानकारी देने के बाद बच्चों नाम सरकारी स्कूल में लिखवाती हूं। स्कूल के बाद वह खुद बच्चों को पढ़ाती हैं। वंदना कुमारी यह काम पिछले कई वर्षों से कर रही हैं।

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