बचपन में दूध को नापसंद करने वाले ‘वर्गीज कुरियन’ ने एक-एक लीटर दूध इकट्ठा करके रच दिया इतिहास, जानें किसानों की किस बात से प्रभावित हुई थी सरकार
जीवन में कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई किसी काम को बेमन से करना शुरू करता है लेकिन धीरे-धीरे उस व्यक्ति को उस काम में एक नई दिशा नजर आती है और फिर एक दिन इतिहास रच जाता है। श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज...
जीवन में कभी-कभी ऐसा होता है कि कोई किसी काम को बेमन से करना शुरू करता है लेकिन धीरे-धीरे उस व्यक्ति को उस काम में एक नई दिशा नजर आती है और फिर एक दिन इतिहास रच जाता है। श्वेत क्रांति के जनक वर्गीज कुरियन की कहानी भी कुछ ऐसी ही है, जो बिना किसी भविष्य की योजना के 29 साल की उम्र में बतौर डेयरी इंजीनियर स्थानीय को-ऑपरेटिव से जुड़े थे। वर्गीज कुरियन ने अपने जीवन के अच्छे-बुरे प्रसंगों को ‘I too had a Dream (आई टू हैड ए ड्रीम) नाम की एक किताब में सहेजा है। अपनी किताब में वर्गीज लिखते हैं कि उन्हें बचपन में दूध बिल्कुल भी पसंद नहीं था। वो दूध को देखना भी पसंद नहीं करते थे। यही वजह थी कि अपने कॅरियर के शुरुआती दिनों में वर्गीज को बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था।
ऐसे शुरू हुआ सफर
देश को आजाद हुए 2 साल ही हुए थे। गुजरात के अहमदाबाद से करीब 100 किलोमीटर दूर ‘आणंद’ नाम का एक छोटा सा कस्बा। वर्गीज उस वक्त स्थानीय को-ऑपरेटिव से जुड़े थे। उनकी पढ़ाई के लिए भारत सरकार ने स्कॉलरशिप दिया करती थी, इसलिए वह बॉन्ड की अवधि को जैसे-तैसे काटने के लिए शुरुआत में अनमने ढंग से काम किया करते थे, लेकिन को-ऑपरेटिव के उद्देश्यों को समझने के बाद वे धीरे-धीरे अपने काम को लेकर गंभीर हो गए।
एक-दो लीटर दूध इकट्ठा करते पनपा एक सपना
KDCMPUL की शुरुआत सिर्फ 2 ग्रामीण को-ऑपरेटिव सोसाइटी से हुई। छोटे-छोटे किसानों से 1-2 लीटर दूध इकट्ठा किया जाता था, जिसकी आपूर्ति बॉम्बे मिल्क स्कीम को की जाती थी। धीरे-धीरे और किसान इससे जुड़ते गए। 1948 के आखिर तक तक इससे 432 किसान जुड़ चुके थे। 1949 में वर्गीज कुरियन इससे जुड़े। तबतक KDCMPUL के पास इतना दूध इकट्ठा होने लगा जो बॉम्बे मिल्क स्कीम की खपत क्षमता से ज्यादा था। वर्गीज कुरियन के नेतृत्व में को-ऑपरेटिव की पहले से चौगुनी प्रगति होने लगी।
किसानों की मेहनत देखकर सरकार हुई प्रभावित
आणंद के डेयरी को-ऑपरेटिव की सफलता ने सरकार का ध्यान खींचा। तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री डॉक्टर वर्गीज कुरियन से बहुत प्रभावित थे। साथ ही किसान किस तरह एक-दो लीटर दूध रोजाना इकट्ठा करते थे, उनकी इच्छाशक्ति को देखकर भी सरकार उनसे बहुत प्रभावित हुई। सरकार ने 1965 में राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (NDDB) का गठन किया और डॉ. कुरियन को इस बोर्ड का चेयरमैन बनाया। देश में दूध का उत्पादन बढ़ाने के लिए जिस अभियान को शुरू किया गया, उसका नाम ‘ऑपरेशन फ्लड’ था। डॉक्टर कुरियन की दूरदृष्टि और उनके कुशल नेतृत्व में 70 के दशक में ‘श्वेत क्रांति’ यानी ‘दुग्ध क्रांति’ का आगाज हुआ। अमूल मॉडल पर चलते हुए दूध की कमी वाला एक देश 1998 में अमेरिका को पछाड़कर दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश बन गया।