सहायक अध्यापकों के लिए बनी ट्रांसफर पॉलिसी कानून के मुताबिक नहीं: हाईकोर्ट
बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापकों के संबंध में बनाई गई ट्रांसफर पॉलिसी के 'लास्ट इन फर्स्ट आउट' प्रावधान को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रथम दृष्टया गलत माना है। न्यायालय ने कहा है कि यह...
बेसिक शिक्षा विभाग में सहायक अध्यापकों के संबंध में बनाई गई ट्रांसफर पॉलिसी के 'लास्ट इन फर्स्ट आउट' प्रावधान को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने प्रथम दृष्टया गलत माना है। न्यायालय ने कहा है कि यह प्रावधान प्रथम दृष्टया कानून सम्मत नहीं प्रतीत हो रहा है लिहाजा इस पर विचार की जरूरत है। न्यायालय ने राज्य सरकार को जवाब के लिए एक सप्ताह का समय देते हुए, अगली सुनवाई के लिए 14 सितंबर की तिथि नियत की है।
यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने रीना सिंह व अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर दिया। याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एचजेएस परिहार ने दलील दी कि 20 जुलाई 2018 को शासनादेश के द्वारा, सहायक अध्यापकों के लिए ट्रांसफर पॉलिसी जारी की गई। जिसके शर्त संख्या 2(2)(1) व 2(3)(4) में 'लास्ट इन फर्स्ट आउट' व अध्यापकों और छात्रों का अनुपात निर्धारित किया गया। इनके तहत अध्यापकों और छात्रों का अनुपात 1:40 का होगा व यह 1:20 से कम नहीं होगा।
इस प्रकार 'लास्ट इन फर्स्ट आउट' पॉलिसी के तहत यदि अध्यापकों की संख्या किसी संस्थान में अनुपात से अधिक हो जाती है तो जो अध्यापक संस्थान में लंबे समय से तैनात हैं। वह वहीं तैनात रहेगा और बाद में प्रमोशन से जाने वाले का दूसरे संस्थान में तबादला कर दिया जाएगा। इसके साथ ही याचियों की ओर से यह भी दलील दी गई कि उक्त शासनादेश 5 अगस्त तक के लिए ही था लेकिन निदेशक, बेसिक शिक्षा विभाग ने 16 अगस्त को एक सर्कुलर जारी करते हुए, इसकी समय सीमा 19 अगस्त तक बढ़ा दी जबकि शासनादेश की समय सीमा बढाने का अधिकार सिर्फ राज्य सरकार को है।
सरकार की ओर से अधिवक्ताओं द्वारा जवाब देने के लिए समय दिए जाने की मांग की गई जिसे न्यायालय ने स्वीकार कर लिया। साथ ही न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि याचियों की ओर से दी गई दलील सही लगती है।