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नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी, एचआरडी मंत्रालय को अब फिर से कहा जाएगा शिक्षा मंत्रालय

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नई शिक्षा नीति(एनईपी) को मंजूरी दे दी, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 6...

नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति को मंजूरी, एचआरडी मंत्रालय को अब फिर से कहा जाएगा शिक्षा मंत्रालय
एजेंसी ,नई दिल्ली Thu, 30 Jul 2020 06:05 AM
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केंद्रीय मंत्रिमंडल ने बुधवार को नई शिक्षा नीति(एनईपी) को मंजूरी दे दी, जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किये गए हैं। साथ ही, शिक्षा क्षेत्र में खर्च को सकल घरेलू उत्पाद का 6 प्रतिशत करने तथा उच्च शिक्षा में साल 2035 तक सकल नामांकन दर 50 फीसदी पहुंचने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। नई नीति में बचपन की देखभाल और शिक्षा पर जोर देते कहा गया है कि स्कूल पाठ्यक्रम के 10 + 2 ढांचे की जगह 5 + 3 + 3 + 4 की नई पाठयक्रम संरचना लागू की जाएगी, जो क्रमशः 3-8, 8-11, 11-14, और 14-18 साल की उम्र के बच्चों के लिए होगी। इसमें 3-6 साल के बच्चों को स्कूली पाठ्यक्रम के तहत लाने का प्रावधान है, जिसे विश्व स्तर पर बच्चे के मानसिक विकास के लिए महत्वपूर्ण चरण के रूप में मान्यता दी गई है।

 


सूचना एवं प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने संवाददाताओं को बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में नई शिक्षा नीति को मंजूरी दी गई। उन्होंने बताया कि 34 साल से शिक्षा नीति में परिवर्तन नहीं हुआ था, इसलिए यह बेहद महत्वपूर्ण है। 
कैबिनेट ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम पुन: शिक्षा मंत्रालय करने को भी मंजूरी दे दी।
गौरतलब है कि वर्तमान शिक्षा नीति 1986 में तैयार की गयी थी। नई शिक्षा नीति का विषय 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले भारतीय जनता पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र में शामिल था । पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के शासनकाल में 1985 में शिक्षा मंत्रालय का नाम बदलकर मानव संसाधन विकास मंत्रालय कर दिया गया था। इसके अगले वर्ष राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू की गयी थी। बुधवार को मंत्रिमंडल की बैठक के बाद उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे और स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता सचिव अनिता करवल ने प्रेस वार्ता के दौरान एक प्रस्तुति दी जिसमें नई शिक्षा नीति के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है । 
नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं । इसमें (लॉ और मेडिकल शिक्षा को छोड़कर) उच्च शिक्षा के लिये सिंगल रेगुलेटर (एकल नियामक) रहेगा। इसके अलावा उच्च शिक्षा में 2035 तक 50 फीसदी सकल नामांकन दर पहुंचने का लक्ष्य है ।
नई नीति में मल्टीपल एंट्री और एग्जिट (बहु स्तरीय प्रवेश एवं निकासी) व्यवस्था लागू की गयी है ।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा मंजूर की गई नई शिक्षा नीति को शिक्षा के क्षेत्र में लंबे समय से अटका और बहुप्रतीक्षित सुधार करार देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि यह आने वाले समय में लाखों जिंदगियों में बदलाव लाएगी।
उन्होंने कहा कि ज्ञान के इस युग में जहां शिक्षा, शोध और नवाचार महत्वपूर्ण हैं, ये नई नीति भारत को शिक्षा के जीवंत केंद्र के रूप में परिवर्तित करेगी।
प्रधानमंत्री ने सिलसिलेवार ट्वीट कर कहा कि नई शिक्षा नीति ''समान पहुंच, निष्पक्षता, गुणवत्ता, समावेशी और जवाबदेही के स्तंभों पर आधारित है। 
उन्होंने कहा, ''राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 को मिली मंजूरी का मैं पूरे मन से स्वागत करता हूं। यह शिक्षा क्षेत्र में लंबे समय से अटका हुआ और बहुप्रतीक्षित सुधार है जो आने वाले समय में लाखों जिंदगियों में परिवर्तन लाएगी।प्रधानमंत्री ने कहा कि छात्रवृत्ति की उपलब्धता के दायरे को बढ़ाने, खुली और दूरस्थ शिक्षा के लिए अधोसंरचना को मजबूती देने, ऑनलाइन शिक्षा और तकनीक के इस्तेमाल को बढ़ावा देने जैसे पहलुओं का नई शिक्षा नीति में बहुत ध्यान रखा गया है।उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र के लिए ये महत्वपूर्ण सुधार हैं। उन्होंने कहा, ''एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना का सम्मान करते हुए नई शिक्षा नीति में संस्कृत सहित अन्य भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देने की व्यवस्था को भी शामिल किया गया है।नकेंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि यह भारतीय शिक्षा प्रणाली के इतिहास में वास्तव में एक ऐतिहासिक दिन है।नमानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा कि नई शिक्षा नीति 'नये भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी और यह भारत को वैश्विक ज्ञान महाशक्ति बनाने की प्रधानमंत्री मोदी की सोच के अनुरूप है।
खरे ने बताया कि आज की व्यवस्था में अगर चार साल इंजीनियरिंग पढ़ने या 6 सेमेस्टर पढ़ने के बाद किसी कारणवश आगे नहीं पढ़ पाते हैं तो कोई उपाय नहीं होता, लेकिन मल्टीपल एंट्री और एग्जिट सिस्टम में 1 साल के बाद सर्टिफिकेट, 2 साल के बाद डिप्लोमा और 3-4 साल के बाद डिग्री मिल जाएगी। यह छात्रों के हित में एक बड़ा फैसला है। वहीं, जो छात्र शोध में जाना चाहते हैं उनके लिए 4 साल का डिग्री कार्यक्रम होगा, जबकि जो लोग नौकरी में जाना चाहते हैं वो तीन साल का ही डिग्री प्रोग्राम करेंगे । नई व्यवस्था में एमए और डिग्री कार्यक्रम के बाद एफफिल करने से छूट की भी एक व्यवस्था की गई है। 
करवल ने कहा, '' स्कूल के पाठ्यक्रम और अध्यापन-कला का लक्ष्यी यह होगा कि 21वीं सदी के प्रमुख कौशल या व्या वहारिक जानकारियां विद्यार्थियों को दे कर उनका समग्र विकास किया जाए तथा आवश्यक ज्ञान प्राप्ति एवं अपरिहार्य चिंतन को बढ़ाने व अनुभव आधारित शिक्षण पर अधिक फोकस करने के लिए पाठ्यक्रम को कम किया जाए। उन्होंने कहा कि विद्यार्थियों को पसंदीदा विषय चुनने के लिए कई विकल्पि दिए जाएंगे। कला एवं विज्ञान के बीच, पाठ्यक्रम व पाठ्येतर गतिविधियों के बीच और व्यावसायिक एवं शैक्षणिक विषयों के बीच कोई भिन्न ता नहीं होगी।
नई नीति के तहत स्कूलों में छठे ग्रेड से ही व्यावसायिक शिक्षा शुरू हो जाएगी और इसमें इंटर्नशिप शामिल होगी। एक नई एवं व्यापक स्कूली शिक्षा के लिए राष्ट्रीय पाठ्यक्रम रूपरेखा 'एनसीएफएसई 2020-21 एनसीईआरटी द्वारा विकसित की जाएगी। नीति में कम से कम ग्रेड 5 तक और उससे आगे भी मातृभाषा/स्थानीय भाषा/क्षेत्रीय भाषा को ही शिक्षा का माध्यम रखने पर विशेष जोर दिया गया है। विद्यार्थियों को स्कूल के सभी स्तरों और उच्च शिक्षा में संस्कृत को एक विकल्प के रूप में चुनने का अवसर दिया जाएगा। त्रि-भाषा फॉर्मूला में भी यह विकल्पे शामिल होगा।
इसके मुताबिक, किसी भी विद्यार्थी पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी। भारत की अन्य पारंपरिक भाषाएं और साहित्य भी विकल्प के रूप में उपलब्ध होंगे। विद्यार्थियों को 'एक भारत श्रेष्ठ भारत पहल के तहत 6-8 ग्रेड के दौरान किसी समय 'भारत की भाषाओं पर एक आनंददायक परियोजना/गतिविधि में भाग लेना होगा।
करवल ने कहा कि कोरियाई, थाई, फ्रेंच, जर्मन, स्पैनिश, पुर्तगाली, रूसी भाषाओं को माध्यमिक स्तर पर पेश किया जायेगा ।
उन्होंने कहा कि स्कूल छोड़ चुके बच्चों को फिर से मुख्य धारा में शामिल करने के लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्रों की स्थापना की जाएगी। एनईपी 2020 के तहत स्कूल से दूर रह रहे लगभग 2 करोड़ बच्चों को मुख्य धारा में वापस लाया जाएगा।
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने कहा, शिक्षा में कुल जीडीपी का अभी करीब 4.43 फीसदी खर्च हो रहा है, लेकिन उसे 6 फीसदी करने का लक्ष्य है और केंद्र एवं राज्य मिलकर इस लक्ष्य को हासिल करेंगे। उन्होंने कहा कि हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं के अलावा आठ क्षेत्रीय भाषाओं में भी ई-कोर्स होगा। वर्चुअल लैब के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया जायेगा। इसके साथ ही नेशनल एजुकेशन टेक्नॉलोजी फोरम बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि नेशनल रिसर्च फाउंडेशन (एनआरएफ) की स्थापना होगी जिससे अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा मिलेगा। स्कूली शिक्षा सचिव अनिता करवल ने बताया कि राष्ट्रीय पाठ्यचर्या 2005 के 15 वर्ष हो गए हैं और अब नया पाठ्यचर्या आयेगा। इसी प्रकार से शिक्षक शिक्षा के पाठ्यक्रम के भी 11 साल हो गए हैं, इसमें भी सुधार होगा। उन्होंने कहा कि बोर्ड परीक्षा के भार को कम करने की नई नीति में पहल की गई है। बोर्ड परीक्षा को दो भागों में बांटा जा सकता है जो वस्तुनिष्ठ और विषय आधारित हो सकता है।उन्होंने बताया कि शिक्षा का माध्यम पांचवी कक्षा तक मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा या घर की भाषा में हो। 
करवल ने कहा कि बच्चों के रिपोर्ट कार्ड के स्वरूप मे बदलाव करते हुए समग्र मूल्यांकन पर आधारित रिपोर्ट कार्ड की बात कही गई है। हर कक्षा में जीवन कौशल परखने पर जोर होगा ताकि जब बच्चा 12वीं कक्षा में निकलेगा तो उसके पास पूरा पोर्टफोलियो होगा। इसके अलावा पारदर्शी एवं ऑनलाइन शिक्षा को आगे बढ़ाने पर जोर दिया गया है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष के कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता वाली समिति ने पिछले वर्ष मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक को नई शिक्षा नीति का मसौदा सौंपा था जब निशंक ने मंत्रालय का कार्यभार संभाला था ।

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