गौरवगाथा: आजादी से 90 साल पहले आजाद हो गया था शहर
आजादी की प्रथम क्रांति में महगांव निवासी मौलवी लियाकत अली ने अंग्रेजों से जो जंग जीती वह इतिहास में अमर है। उन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला करके देश को आजादी मिलने के 90 साल पहले शहर को आजाद कराया था।
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देश को आजादी 1947 में मिली थी लेकिन 1857 में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का जो बिगुल बजा उसकी एक निर्णायक जंग खुसरोबाग में लड़ी गई। आजादी की प्रथम क्रांति में महगांव निवासी मौलवी लियाकत अली ने अंग्रेजों से जो जंग जीती वह इतिहास में अमर है। उन्होंने अंग्रेजों से मुकाबला करके देश को आजादी मिलने के 90 साल पहले शहर को आजाद कराया था। इस जंग में वीरांगना दुर्गा भाभी का अदम्य साहस मातृ शक्तियों के लिए अनुकरणीय है।
मौलवी लियाकत पर था पांच हजार का इनाम: मौलवी लियाकत अली को अंग्रेज बागी मानते थे। इसलिए 1857 में उन्हें जिंदा या मुर्दा पकड़ने के लिए पांच हजार रुपए का इनाम रखा गया था। उस समय लियाकत अली मुंबई चले गए और उन्हें गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दे दी गई। मौलवी लियाकत अली की तलवार और कपड़े इलाहाबाद संग्रहालय में संरक्षित हैं।
लियाकत अली ने खुसरोबाग में फहराया था झंडा
मौलवी लियाकत अली की अगुवाई में क्रांतिकारियों ने कचहरी, शमसाबाद, रसूलपुर, सदियापुर, सलोरी, कटरा, कर्नलगंज और फतेहपुर बिछुआ के कुछ भाग तक कब्जा कर लिया था। इतिहासकार प्रो.हेरंब चतुर्वेदी ने बताया कि अंतिम जंग जून 1857 को लड़ी गई। अंग्रेज किले में कैद हो गए। खुसरोबाग में झंडा फहराया गया। राजकीय कोष को क्रांतिकारियों ने कब्जे में ले लिया। शहर 10 दिन तक आजाद रहा। उसके बाद अंग्रेजों का दमन चक्र शुरू हो गया।
क्रांतिकारियों की प्रेरणास्रोत थीं दुर्गा भाभी
जिस दौर में महिलाएं घर की दहलीज नहीं लांघती थीं उस दौर में क्रांतिकारी दुर्गा भाभी क्रांतिकारियों को असलहे सप्लाई करती थीं। कौशांबी के शहजादपुर की रहने वाली दुर्गा भाभी का आजादी के आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी के पूर्व अध्यक्ष हरिमोहन मालवीय ने बताया कि दुर्गा भाभी सरदार भगत सिंह की काफी मदद करती थीं। एक बार भगत सिंह को अंग्रेज खोज रहे थे तो उन्हें कोलकाता ले जाने में अहम भूमिका निभाई थी। दुर्गा भाभी का 15 अक्तूबर 1999 को निधन हो गया।