IIT मद्रास को पूर्व छात्र से मिले 228 करोड़ रुपए, देश में अब तक का सबसे बड़ा शैक्षिक दान
IIT Madras: आईआईटी मद्रास को पूर्व छात्र डॉ. कृष्णा चिवुकुला से 228 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा दान मिल है, जो देश में अब तक का सबसे बड़ा शैक्षिक दान है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (आईआईटी मद्रास) को अपने प्रतिष्ठित पूर्व छात्र पुरस्कार विजेता डॉ. कृष्णा चिवुकुला से 228 करोड़ रुपये का अब तक का सबसे बड़ा सिंगल दान मिला है। यह भारत के इतिहास में किसी भी शैक्षणिक संस्थान को मिला अब तक का सबसे बड़ा दान है।
इस ऐतिहासिक योगदान के मद्देनजर आईआईटी मद्रास ने एक एकेडमिक ब्लॉक का नाम 'कृष्णा चिवुकुला ब्लॉक' रखा है। नेमिंग सेरेमनी 6 अगस्त, 2024 को आयोजित की गई, जिसमें डॉ. कृष्णा चिवुकुला, आईआईटी मद्रास के निदेशक प्रोफेसर वी कामकोटि, पूर्व छात्रों और कॉर्पोरेट संबंधों के डीन प्रोफेसर महेश पंचगनुला और अन्य संकाय, शोधकर्ता, कर्मचारी और छात्र शामिल हुए थे।
दान में मिली इस रकम का इस्तेमाल कई उद्देश्यों को पूरा करने के लिए किया जाएगा, जिसमें विदेशी छात्रों को स्कॉलरशिप के जरिए समर्थन, रिसर्च एक्सीलेंस ग्रांट, अंडरग्रेजुएट फेलोशिप प्रोग्राम, स्पोर्ट्स स्कॉलरशिप प्रोग्राम और शास्त्र मैगजीन का विकास शामिल है। इसके अतिरिक्त, कृष्णा चिवुकुला ब्लॉक के रखरखाव और अन्य एक्टिविटी के लिए धन का प्रयोग किया जाएगा।
डॉ. कृष्णा चिवुकुला कौन है:
डॉ. कृष्णा चिवुकुला ने 1970 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में एमटेक के साथ आईआईटी मद्रास से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और 1980 में हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से एमबीए प्राप्त किया है।
उनका करियर बहुत ही शानदार रहा है, उन्होंने शिवा टेक्नोलॉजीज इंक और इंडो एमआईएम प्राइवेट लिमिटेड कंपनी की स्थापना की है। उन्होंने इंजीनियरिंग मैन्युफैक्चरिंग टेक्नोलॉजी में भी महत्वपूर्ण तरक्की हासिल की है।
1997 में डॉ. कृष्णा चिवुकुला ने भारत में अत्याधुनिक मेटल इंजेक्शन मोल्डिंग (एमआईएम) तकनीक पेश की। उनकी कंपनी, INDO US MIM Tec, अब कैपेसिटी और सेल्स के मामले में एमआईएम टेक्नोलॉजी दुनिया में सबसे आगे है, जिसका अनुमानित कारोबार लगभग 1,000 करोड़ रुपये है।
आईआईटी मद्रास ने रिकॉर्ड धनराशि जुटाई-
वित्तीय वर्ष 2023-24 के दौरान आईआईटी मद्रास ने रिकॉर्ड 513 करोड़ रुपये जुटाए, जो पिछले वर्ष से 135% ज्यादा है। यह धनराशि पूर्व छात्रों, सीएसआर फंडों और कॉर्पोरेट फर्मों से अनुदान के माध्यम से जुटाई गई थी।