हिंदी के मशहूर साहित्यकार डॉ. नामवर सिंह का निधन, पढ़ें उनकी ये कविताएं
हिंदी के मशहूर समालोचक और साहित्यकार डॉक्टर नामवर सिंह ने दिल्ली एम्स में मंगलवार रात तकरीबन 11.50 बजे आखिरी सांस ली। 28 जुलाई 1926 को बनारस के गांव जीयनपुर (अब चंदौली) में पैदा हुए नामवर...
हिंदी के मशहूर समालोचक और साहित्यकार डॉक्टर नामवर सिंह ने दिल्ली एम्स में मंगलवार रात तकरीबन 11.50 बजे आखिरी सांस ली। 28 जुलाई 1926 को बनारस के गांव जीयनपुर (अब चंदौली) में पैदा हुए नामवर सिंह ने हिंदी साहित्य में काशी विश्वविद्यालय से एमए और पीएचडी की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने इसी विश्वविद्यालय में पढ़ाया भी। बाद में उन्होंने सागर विश्वविद्यालय में अध्यापन का काम किया, लेकिन सबसे लंबे समय तक वो जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्याल में रहे। यहां से रिटायर होने के बाद भी वे एमिरिटेस प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाते रहे। यहां पढ़ें उनकी ये मशहूर कविताएं:
पारदर्शी नील जल में सिहरते शैवाल
चाँद था, हम थे, हिला तुमने दिया भर ताल
क्या पता था, किन्तु, प्यासे को मिलेंगे आज
दूर ओठों से, दृगों में संपुटित दो नाल ।
मंह मंह बेल कचेलियाँ
मँह-मँह बेल कचेलियाँ, माधव मास
सुरभि-सुरभि से सुलग रही हर साँस
लुनित सिवान, सँझाती, कुसुम उजास
ससि-पाण्डुर क्षिति में घुलता आकास
फैलाए कर ज्यों वह तरु निष्पात
फैलाए बाहें ज्यों सरिता वात
फैल रहा यह मन जैसे अज्ञात
फैल रहे प्रिय, दिशि-दिशि लघु-लघु हाथ !
विजन गिरिपथ पर चटखती
विजन गिरीपथ पर चटखती पत्तियों का लास
हृदय में निर्जल नदी के पत्थरों का हास
'लौट आ, घर लौट' गेही की कहीं आवाज़
भींगते से वस्त्र शायद छू गया वातास ।